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झारखंड को वित्त आयोग से उम्मीदें : मिले ज्यादा पैसे, तो तेज होगा विकास, वित्त आयोग से डेढ़ लाख करोड़ अनुदान की मांग

भारतीय वित्त आयोग की स्थापना 1951 में हुई थी. इसका उद्देश्य भारत सरकार एवं राज सरकारों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करना है. आयोग राज्यों की आर्थिक सामाजिक स्थिति का आकलन करने और राज्यों की बात सुनने के बाद केंद्रीय करों में उसकी भागीदारी तय करने के लिए राष्ट्रपति को अनुशंसा करता है. संविधान […]

भारतीय वित्त आयोग की स्थापना 1951 में हुई थी. इसका उद्देश्य भारत सरकार एवं राज सरकारों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करना है. आयोग राज्यों की आर्थिक सामाजिक स्थिति का आकलन करने और राज्यों की बात सुनने के बाद केंद्रीय करों में उसकी भागीदारी तय करने के लिए राष्ट्रपति को अनुशंसा करता है. संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को दिये जानेवाले अनुदान और सहायता की अनुशंसा करता है.
रांची : राज्य सरकार ने 15वें वित्त आयोग को ज्ञापन सौंप कर विकास के लिए कुल 150002.73 करोड़ रुपये अनुदान की मांग की है. सरकार की ओर से अपनी मांगों के समर्थन में राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साथ ही राजस्व और खर्च का हवाला दिया गया.
सरकार की ओर से राज्य को विकास के मापदंड को पूरा करने और राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंचने के लिए अनुदान के इस रकम की मांग की गयी. वित्त आयोग को सौंपे गये अनुदान मांग से संबंधित ज्ञापन में सबसे ज्यादा राशि की मांग आधारभूत संरचना के लिए की गयी है.
इस मद में 88,199.66 करोड़ की मांग की गयी है. इसके बाद कृषि क्षेत्र के लिए 42,598.02 करोड़ रुपये की मांग की गयी है. सरकार ने सामाजिक क्षेत्र के लिए 17001.39 करोड़ रुपये की मांग की है. सरकार ने आयोग से अनुदान की राशि को खर्च करने के लिए लगायी जानेवाली कठोर शर्तों के कम करने की मांग की, ताकि अनुदान की राशि का पूरा पूरा इस्तेमाल किया जा सके.

जीएसटी से नुकसान की भरपाई के लिए 2022 के बाद भी मुआवजे की मांग
रांची : राज्य सरकार ने जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) लागू होने से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे की अवधि समाप्त होने के बाद भी मुआवजा जारी रखने की मांग की है. आयोग के साथ हुई बैठक में राज्य सरकार की ओर से यह कहा गया कि जीएसटी से राज्य को कुल 3492.73 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए कहा गया कि जीएसटी से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए पांच साल तक ही मुआवजा देने का प्रावधान है.
राज्य को होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा 2022 के बाद भी जारी रखना चाहिए. सरकार ने जीएसटी से होनेवाले नुकसान का उल्लेख करते हुए कहा कि कोयला, खानेवाला तेल, रेडीमेड कपड़ा, सिगरेट आदि पर वैट के मुकाबले जीएसटी में टैक्स दर कम होने से राज्य को नुकसान हो रहा है.
टैक्स दर किये गये इस बदलाव से 723.67 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. वैट की अवधि में राज्य को इनपुट टैक्स क्रेडिट मद में 1746 करोड़ रुपये की आमदनी होती थी. पर जीएसटी में राज्य को इसका नुकसान होगा. इसके अलावा सेंट्रल सेल्स टैक्स समाप्त करने की वजह से राज्य को 1023.06 करोड़ का नुकसान होगा. राज्य को होनेवाले इस नुकसान से बचाने के लिए 2022 के बाद भी मुआवजा मिलना चाहिए.

आयोग की अनुशंसा पर राज्य को कभी भी नहीं मिला केंद्रीय करों में पूरा हिस्सा
रांची : वित्त आयोग की अनुशंसा के आलोक में राज्य सरकार को केंद्रीय करों में कभी उसका पूरा हिस्सा नहीं मिला. 15वें वित्त आयोग की बैठक में राज्य सरकार की ओर से इस बात की शिकायत की गयी. 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के आलोक में राज्य ने फिर अपना पूरा हिस्सा नहीं मिलने की आशंका जतायी. साथ ही इससे संबंधित आंकड़े पेश किये.
राज्य सरकार की ओर से वित्त आयोग की अनुशंसाओं और उसकी हकीकत का उल्लेख करते हुए कहा गया कि 10वें वित्त आयोग की अवधि (1995-2000) के अंतिम साल नवंबर 2000 में राज्य का गठन हुआ.
इसके बाद इस नवगठित राज्य को पहली बार 11वें वित्त आयोग से 13वें वित्त आयोग की अवधि में हिस्सेदारी देने की अनुशंसा बढ़ती गयी. पर हर वित्त आयोग की अवधि में राज्य को उसका हिस्सा नहीं मिलने का प्रतिशत बढ़ता रहा. 11वें वित्त आयोग की अनुशंसा के मुकाबले राज्य को 2.4 प्रतिशत हिस्सा कम मिला. जबकि 13वें वित्त आयोग की अवधि में यह बढ़ कर 3.8 हो गया.
11वें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में 29.5 प्रतिशत हिस्सा देने की अनुशंसा की. हालांकि राज्य को केंद्रीय करों में सिर्फ 27.1 प्रतिशत हिस्सा हिस्सा ही मिला. 12वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आलोक में 30.5 प्रतिशत के बदले सिर्फ 26.3 प्रतिशत हिस्सा ही मिला. 13वें वित्त आयोग ने 32 प्रतिशत देने की अनुशंसा की. पर सिर्फ 28.2 प्रतिशत ही मिला.
14 वें वित्त आयोग ने राज्य को केंद्रीय करों में 42 प्रतिशत हिस्सा देने की अनुशंसा की. 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल अगले वित्तीय वर्ष समाप्त हो जायेगा. पर चालू वित्तीय वर्ष में अब तक सिर्फ 34.9 प्रतिशत हिस्सा ही मिल सका है. जो आयोग की अनुशंसा के मुकाबले फिलहाल 7.1 प्रतिशत कम है.

वित्त आयोग की अनुशंसा और हकीकत
वित्त आयोग अनुशंसा मिलाकमी
11वां वित्त आयोग 29.00% 27.4%-1.6%
12वां वित्त आयोग 29.5% 27.1%-2.4%
13वां वित्त आयोग 32.00% 28.2%-3.8%
14वां वित्त आयोग 42.0% 39.9%-7.1%
आधारभूत संरचना के लिए मांगी गयी सबसे ज्यादा राशि
राज्य सरकार ने अपनी मांगों के समर्थन में राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के साथ ही राजस्व और खर्च का दिया हवाला
सरकार ने राज्य को विकास के मापदंड को पूरा करने और राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंचने के लिए आयोग से मांगा अनुदान
सरकार द्वारा आयोग को सौंपे गये अनुदान मांग से संबंधित ज्ञापन में आधारभूत संरचना के विकास के लिए मांगी गयी है सबसे ज्यादा राशि
राष्ट्रीय औसत के मुकाबले कई मामलों में झारखंड पीछे
रांची : राज्य सरकार ने वित्त आयोग की टीम के समक्ष विकास के मापदंड पर झारखंड की स्थिति का उल्लेख किया. इसके लिए सृजित सिंचाई क्षमता, स्वास्थ्य, साक्षरता और गरीबी के आंकड़ों को आधार बनाया गया. सरकार की ओर से विकास के इन मापदंडों का राज्य और राष्ट्रीय औसत का तुलनात्मक ब्योरा पेश किया गया.
सरकार की ओर से आंकड़ों के हवाले से यह कहा गया कि झारखंड में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की एक बड़ी आबादी राष्ट्रीय औसत के मुकाबले गरीब है. राज्य में कुल 49.7 प्रतिशत एसटी और 40.4 प्रतिशत एससी गरीब हैं.
जबकि एसटी की गरीबी का राष्ट्रीय औसत 40.6 प्रतिशत और एससी का 29.9 प्रतिशत है. वहीं, राज्य में बीपीएल आबादी का औसत राष्ट्रीय स्तर से ज्यादा बताया गया है. राष्ट्रीय स्तर पर बीपीएल आबादी का औसत 21.92, जबकि राज्य में बीपीएल आबादी का औसत 36.51 है
आदिवासी आबादी को केंद्रीय करों की हिस्सेदारी में महत्व देने की मांग
रांची : राज्य सरकार ने 15वें वित्त आयोग से केंद्रीय करों में हिस्सेदारी तय करने में आदिवासियों की आबादी को महत्व देने का मांग की है. साथ ही इसके लिए आयोग को फाॅर्मूला के प्रारूप भी सौंपा है. राज्य सरकार ने 15 वें वित्त आयोग से केंद्रीय करों में हिस्सेदारी देने के लिए जारी फाॅर्मूले में बदलाव का अनुरोध किया है.
सरकार की ओर से कहा गया है कि विकास सूचकांक के अंतर को देखते हुए 50 प्रतिशत के महत्व को जारी रखना चाहिए. हालांकि इसमें 12 राज्यों के लिए निर्धारित दो प्रतिशत के फ्लोर में बदलाव करना चाहिए. आबादी के महत्व को 17.5 प्रतिशत से घटा कर 10 प्रतिशत करना चाहिए.
साथ ही आदिवासियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए उनकी आबादी को अलग से 10 प्रतिशत महत्व दिया जाना चाहिए. भौगोलिक स्थिति को 10 प्रतिशत महत्व देने के फाॅर्मूले के समाप्त कर देना चाहिए. इसके बदल खनन और उत्खनन में ग्रास स्टेट वैल्यू एडिशन(जीएसवीए) को 10 प्रतिशत महत्व दिया जाना चाहिए. केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के लिए वन क्षेत्र को दिये जा रहे 7.5 प्रतिशत के महत्व को बढ़ा कर 10 प्रतिशत करना चाहिए.
रांची : राज्य सरकार ने कोयले पर मिलनेवाले सेस को जीएसटी में मिलाने के फैसले पर आपत्ति जतायी है. सरकार का मानना है कि इससे कोयला उत्पादन करनेवाले राज्यों को नुकसान होगा. इस मामले में झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. क्योंकि झारखंड कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है.
आयोग की बैठक में सरकार की ओर से कहा गया कि खनिज संपदा से भरे हुए राज्य पहले औद्योगिकीकरण की वजह से नुकसान उठा चुके हैं. इसके बाद फ्रेट इक्विलाइजेशन पॉलिसी के वजह से और ज्यादा नुकसान हुआ. थर्मल पावर प्लांट दूर के राज्यों में स्थापित हुआ, जो वहां के उद्योगों को शक्ति प्रदान कर रहे हैं. खनन कार्यों से पर्यावरण को होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए कोयले पर सेस लगाया गया था.
हालांकि, इस मद में मिली राशि का एक बड़ा हिस्से का अब तक उपयोग नहीं किया जा सका है. वित्तीय वर्ष 2011-17 तक की अवधि में क्लीन एनर्जी सेस के रूप में 53967.23 करोड़ रुपये की वसूली हुई है. इसमें से सिर्फ 28.69 प्रतिशत यानी 15483.21 करोड़ रुपये ही राज्यों को दिये गये हैं. शेष 71.31 प्रतिशत यानी 38484.02 करोड़ रुपये केंद्र सरकार के पास पड़ा हुआ है. अब इस राशि को जीएसटी से होनेवाले नुकसान बदले दिये जानेवाले मुआवजा राशि में मिलाने का फैसला किया गया है.
इससे कोयला पर मिले सेसे की राशि का उपयोग वैसे राज्य भी करेंगे जो कोयले का उत्पादन नहीं करते हैं. यानी कोयले के खनन से पर्यावरण को होनेवाले नुकसान खनिजों वाले राज्य उठायेंगे. जबकि सेस से मिलनेवाली राशि का इस्तेमाल सभी राज्य करेंगे. इस नीति से झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.

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