देवेश कुमार
जामताड़ा : नि:शक्त कल्पना ने जीवन के संघर्ष के बीच ना सिर्फ स्वयं को स्थापित किया, बल्कि अपनों दोनों बेटों को भी एक सुंदर भविष्य दी. गरीबी के बीच पली-बढ़ी कल्पना वर्तमान में बालिका उच्च विद्यालय में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के रूप में कार्यरत है.
लेकिन उसने कभी अपने काम को छोटा नहीं समझा. उसने बहुत ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभायी.
कल्पना का जीवन संघर्ष:
कास्तपाड़ा की रहने वाली कल्पना दत्ता नि:शक्त है. एक पैर नहीं होने के कारण वो बचपन से ही वैशाखी का सहारा लेती है. हालांकि इससे वो कभी निराश व शरमिंदा नहीं हुई. शिक्षा को महत्व देने वाली कल्पना ने इंटर तक की शिक्षा प्राप्त की. इसी दौरान 1985 में कल्पना की शादी दीनदयाल वर्णवाल से हुई. इससे उसे दो बेटे है. अपनी नौकरी में रहते हुए कल्पना ने दोनों बेटों को पढ़ाया. आज बड़ा बेटा सेंट्रल बैंक में अच्छे पद पर कार्य कर रहा है.
वही दूसरा बेटा अभी अपनी पढ़ाई पूरी करने में जुटा है. कल्पना कहती है कि नि:शक्ता को कभी अभिशाप नहीं समझना चाहिए. यदि इच्छाशक्ति हो तो आप नामुमकिन को भी मुमकिन कर सकते है. वे कहती है कि अब तो सरकार भी मदद के लिए कई योजनाएं चल रखी है. जरूरत सिर्फ खुद के हौसले का है.