जमशेदपुर. कोल्हान की धरती को वैसे तो कंपनियों के लिए जाना जाता है, लेकिन प्रकृति ने इस प्रमंडल को ऐसा तोहफा दिया है, जो पूरे देश को मालामाल कर रहा है. यह रत्नगर्भा कोल्हान के तीनों जिले पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां में है. यहां 20 से अधिक खनिज पाये जाते हैं, जो देश को मजबूती प्रदान करते हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले का यूरेनियम जहां पूरे देश को सामरिक तौर पर मजबूती प्रदान करता है, तो यहां की धरती सोना भी उगलती है. लौह अयस्क के खदान से पूरे देश का स्टील और आयरन की जरूरतें पूरी होती हैं. सरायकेला खरसावां जिले में भी काफी खनिज संपदा है, जो पूरे देश को मजबूत बनाता है. कोल्हान जैसी विविधता कहीं ओर नहीं है, जहां हर प्रखंड बदलते ही नये खनिज का एरिया नजर आता है, जिसका कनेक्शन देश और दुनिया में है. कोल्हान के तीनों जिले में चाइना क्ले भी है, जिसका इस्तेमाल क्राकरी और पाउडर बनाने में होता है. सरायकेला खरसावां जिले में भी खनिजों के बड़े भंडार मौजूद हैं. इसमें काइनाइट, एस्बेस्टस, क्वार्ट्ज आदि मूल्यवान खनिज हैं. इन खदानों के संचालन और उसके फिर से बेहतर रिक्लेमेशन (जमीन का फिर से बेहतर इस्तेमाल करने लायक बनाना) किया जाये, तो इससे बेहतर पृथ्वी की सेवा और नहीं हो सकती है.
पूर्वी सिंहभूम देश को सामरिक तौर पर कर रहा मजबूत
देश को सामरिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए जरूरी यूरेनियम खनिज पूर्वी सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा और आसपास के एरिया में पाया जाता है. यहां यूरेनियम के करीब 7 खदान हैं, जो पूरे देश को सशक्त करते हैं. जमशेदपुर से करीब 20 किमी दूर पोटका के कुंदरूकोचा में सोने का भंडार है, तो करीब 30 किमी दूरी पर जादूगोड़ा में यूरेनियम की खदान है. इसका खनन यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड सालों से करती आ रही है. इसी तरह घाटशिला अनुमंडल में तांबा और पन्ना मौजूद है. जिले के धालभूमगढ़, गालूडीह, बोड़ाम में बड़े पैमाने पर मैगनीज का भी खनिज मौजूद है, जो देश की जरूरतों को पूरा करता है. इसके अलावा पैरॉक्सनाइट का भी भंडार यहां पाया जाता है, जो देश में स्टील का बेस्ट विकल्प माना जाता है. बहरागोड़ा में ज्योति पहाड़ी में बड़े पैमाने पर काइनाइट भी उपलब्ध है. इसका इस्तेमाल ज्वेलरी उत्पाद को तैयार करने में किया जाता है. इसका इंडस्ट्रियल इस्तेमाल होता है, जो मोल्टिंग में काम आता है. पूर्वी सिंहभूम में गुड़ाबांधा के थुरकुगोड़ा, बारुणमुठी, बाहुटिया क्षेत्र में पन्ना का बड़ा भंडार है. पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला को ताम्रनगरी कहा जाता है. अभी दो खदानों से तांबा निकाला जा रहा है. जिले में सोप स्टोन की भी मात्रा पायी जाती है, जिसके जरिये मैसोर सैंडल जैसे कई साबुन तैयार किये जाते हैं. सिलिका और क्वार्टज की उपलब्धता इस जिले में है. एस्बेस्टस भी यहां पाया जाता है. जिले में क्वार्टज, क्वार्टजाइट जैसे खनिज भी पाये जाते हैं.
पश्चिम सिंहभूम जिला को लाल मिट्टी के लिए जाना जाता है
पश्चिम सिंहभूम जिला को लाल मिट्टी के लिए जाना जाता है. यह देश को स्टील जैसा मजबूत बना रहा है. यहां करीब 41 खदानें है, जिससे आयरन ओर निकाला जाता है. इसके अलावा इस जिले में एसबेस्टस, क्वार्ट्ज, सिलिका, क्रोमियम, डोलोमाइट, बेनेडियम, टंगस्टन जैसे खनिज भी पाये जाते हैं. पश्चिमी सिंहभूम में आयरन ओर की 41 खदानें हैं. देश का 26 फीसदी भंडार (हेमेटाइट) यहां है. इस जिले में मैगनीज का भी बड़ा भंडार मौजूद है. इस जिले में लाइम स्टोन का बड़ा भंडार है. यहां करीब 40 मिलियन टन का लाइम स्टोन का भंडार मौजूद है. सीमेंट उद्योगों को यहीं से इसकी आपूर्ति की जाती है.हाथियों का अभ्यारण्य है यहां, एशिया का एमेजॉन कहा जाता है सारंडा
कोल्हान में प्रकृति ने भरपूर प्यार लुटाया है. यहां एशिया का एमेजॉन कहे जाने वाला सारंडा की पहचान होती है. साल के बड़े पेड़ों के लिए इस जंगल को जाना जाता है. करीब 700 छोटी और बड़ी पहाड़ियों से घिरे इस जंगल को समृद्ध बनाया जाता है. सारंडा वन लगभग 850 वर्ग किलोमीटर में फैला सघन वन है. खामोशी में डूबे इस जंगल में हरियाली और खूबसूरती का बेजोड़ मेल देखने को मिलता है. सारंडा का कुछ हिस्सा ओडिशा की सीमा से भी सटा हुआ है. इसके अलावा यहां आम, जामुन, बांस, कटहल एवं पलाश के भी अनेकों पेड़ हैं. यह ऐसा घना जंगल है, कि यहां कई जगहों पर दिन में ही रात हो जाती है. यहां कुछ ऐसा है कि सूरज की किरणें भी आने से घबराती है. वहीं, पलाश के सूरत लाल फूल जब यहां की धरती को छूते हैं तो लगता है कि किसी ने लाल कालीन बिछा दिया हो. ऐसे ही प्रजातियों के पेड़ों के अलावा पशु-पक्षियों का बड़ा साम्राज्य है, जबकि यहां कई झरना मौजूद हैं. टाइबो झरना, झाटीसरिंग झरना, झिंगरा फाल, पंचेरी फाल, पुंडुल फाल, रानी डूबा झरना, बाहुबली झरना है, जो यहां के जंगल को और रमणीक बनाते हैं. झारखंड सरकार इस जंगल को भी अभ्यारण्य बनाने के लिए भारत सरकार के पास प्रस्ताव भेज रही है. इसी तरह पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां जिले में फैले करीब 184 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले दलमा जंगल को हाथियों का अभ्यारण्य के तौर पर जाना जाता है, लेकिन यहां 135 से अधिक प्रजातियों की तितलियां, 225 से अधिक पक्षियां और कई सारे औषधीय पेड़-पौधे हैं, जो इस जंगल को और समृद्धशाली बनाते है. बाघ, भालू समेत कई जानवरों का भी यहां निवास होता है, जो इसके रोमांच को और बेहतर बनाते हैं.
नदियों का जाल है लाइफ लाइन
कोल्हान में नदियों काफी हैं, जो यहां की लाइफलाइन कही जाती हैं. पूर्वी सिंहभूम जिले में सुवर्णरेखा और खरकई नदी है, तो सरायकेला खरसावां और पश्चिम सिंहभूम जिले में भी कई सारी नदियां हैं. सरायकेला खरसावां जिले के नीमडीह में बामनी नदी है, जो दलमा से निकलकर सुवर्णरेखा नदी में समा जाती है. बीच में नीमडीह प्रखंड के चलियामा, बामनी, काठालडीह, सिरका, कुशपुतुल, पितकी, बाना व चांडिल प्रखंड के रावतड़ा, भालुककोचा, चाडिल, हिरमिलि व दालग्राम से गुजरती है. पुरुलिया से निकली घाघरा नदी नीमडीह प्रखंड के गौरीडीह, संगिड़ा, नीमडीह, रघुनाथपुर, दुमदुमि, जामडीह, कुशपुतुल आदि गांव के लिए जीवनदायिनी है. नीमडीह प्रखंड की जीवनरेखा शाखा नदी मई से ही सूखी है और अब यह नदी रास्ता बना गयी है. नदी का उद्गम पुरुलिया के श्रृंगी पर्वत से हुआ है. नीमडीह प्रखंड के बुरुडीह, बागड़ी, लाकड़ी, तिलाइटांड, झिमड़ी, सिंदुरपुर, मुरू, हेबेन आदि ग्रामीणों के लिए यह नदी जीवनरेखा है और अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. चाडिल प्रखंड के चिलगु जुड़िया नदी का उद्गम स्थल दलमा पर्वत है. यह जुड़िया कदमझोर, चाकुलिया, चिलगु, काठजोड़ व शाहरबेड़ा से बहती हुई सुवर्णरेखा में समा जाती है. कुकड़ू प्रखंड क्षेत्र से होकर बहने वाली शोभा नदी अयोध्या पहाड़ की झील से निकलकर सुवर्णरेखा नदी में रामघाट सपादा में मिलती है. तिरुलडीह के पश्चिमी छोर से होकर बहने वाली नदी कारू नदी झारखंड व बंगाल को विभाजित करती है. ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र की नदियां सुवर्णरेखा और करकरी व खरकई नदी पूरी तरह से सूखने की कगार पर हैं. जादूगोड़ा की गुडरा नदी इस समय पूरी सूख गई है. इसके अलावा पश्चिम सिंहभूम जिले में संजय, रोरो और कारो नदियां हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है