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लोटिया जलाशय का 80 फीसदी हिस्सा सूखा, 25 गांवों के किसान परेशान

इचाक और पदमा प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित 220 एकड़ में फैले लोटिया डैम का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा सूख गया है, जिसमें अब केवल 15 से 20 प्रतिशत ही पानी बचा है.

पदमा. इचाक और पदमा प्रखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित 220 एकड़ में फैले लोटिया डैम का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा सूख गया है, जिसमें अब केवल 15 से 20 प्रतिशत ही पानी बचा है. वर्षों से विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के कारण डैम का तीन चौथाई से अधिक भाग मिट्टी के कटाव से भर गया है और पानी निकासी के मुख्य द्वार में वर्षों से रिसाव हो रहा है. इसके चलते डैम में पानी का जमाव नहीं हो पाता है. बरसात में लबालब भरा रहनेवाला वाला यह डैम, बरसात खत्म होते ही तीन चौथाई सूख जाता है. मिट्टी भरने के कारण बरसात के जमा पानी का दबाव डैम के पानी निकासी के दो गेटों पर बढ़ जाता है. गेटों में रिसाव होने से पानी बह जाता है, जिससे जरूरत के समय 25 गांवों के किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता है. वर्ष 1979 में बने इस डैम का 46 वर्ष में एक बार भी गहरीकरण नहीं किया गया है. यह जलाशय पदमा प्रखंड के छह पंचायतों के 25 गांवों के सैकड़ों किसानों के खेतों में सिंचाई का एकमात्र साधन है. इसी जलाशय के पानी से सिंचाई कर किसान धान, गेहूं, आलू, सब्जी और रबी की फसलें उगाकर अपना जीवन यापन करते थे. लेकिन, पिछले कुछ सालों से किसानों को साल भर पानी नहीं मिल पा रहा है, जिसका सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ रहा है. किसानों द्वारा लोटिया जलाशय के गहरीकरण और जीर्णोद्धार की मांग लंबे समय से की जा रही है. हालांकि, जलाशय की मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं, लेकिन इससे न तो जलाशय का उद्देश्य पूरा हुआ और न ही किसानों को कोई लाभ मिला. डैम से सटे जीहू गांव के किसान भुवनेश्वर मेहता ने बताया कि लोटिया जलाशय किसानों के लिए जीवन रेखा है. लगभग 50 वर्ष होने को है, लेकिन विभाग के अधिकारी इसे सुरक्षित रखने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने बताया कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद डैम के मुख्य द्वार का रिसाव ठीक नहीं किया गया, जिससे बरसात का पानी बह जाता है. डैम का अधिकांश भाग मिट्टी के कटाव से भर गया है, जिसका गहरीकरण अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष किसानों ने विभाग को लिखित आवेदन भी दिया था, लेकिन जांच करने आये अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में डैम के 80 प्रतिशत हिस्से में पानी भरा होने की बात लिखी, जिसके कारण गहरीकरण नहीं हो सका. अब किसानों को केवल धान की खेती के लिए ही पानी मिल पाता है, जबकि पहले साल भर पानी उपलब्ध रहता था. गेहूं की फसल लगाने के बाद पानी मिलना बंद हो जाता है.

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