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लीड :::6::: आदिम जनजाति गांवों का विकास नहीं

लीड :::6::: आदिम जनजाति गांवों का विकास नहीं धीरे-धीरे अपना धर्म छोड़ रहे आदिम जनजातिबीडीओ को मालूम नहीं, कितना विकास हुआ है12 गुम 6 में लुपुंगपाट गांव का दृश्य व सड़क की हालत12 गुम 7 में झरना से पानी भरती असुर लड़कियांप्रतिनिधि, गुमलाहम आजाद भारत में रहते हैं. संविधान में हमारा हक व अधिकार तय […]

लीड :::6::: आदिम जनजाति गांवों का विकास नहीं धीरे-धीरे अपना धर्म छोड़ रहे आदिम जनजातिबीडीओ को मालूम नहीं, कितना विकास हुआ है12 गुम 6 में लुपुंगपाट गांव का दृश्य व सड़क की हालत12 गुम 7 में झरना से पानी भरती असुर लड़कियांप्रतिनिधि, गुमलाहम आजाद भारत में रहते हैं. संविधान में हमारा हक व अधिकार तय है. इसके बाद भी जिले के आदिम जनजाति अपने हक व अधिकार से वंचित हैं. आदिम जनजाति बहुल गांवों का अभी तक विकास नहीं हुआ है. आज भी आदिम जनजाति पहाड़ व जंगलों के बीच रहते हैं. इन गांवों में पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य व रोजगार की समस्या है. सरकारी योजना चल रही है, पर आदिम जनजातियों तक नहीं पहुंच रही है. यहां तक जिले के अधिकारियों को भी पता नहीं है कि इन गांवों में विकास के क्या काम हुए हैं. हालात यह है कि आदिम जनजाति असुर, बिरहोर व बिरिजिया अपना मूल धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिये हैं. 30 वर्ष पहले शुरू हुआ ईसाई बनने का सिलसिला पाट क्षेत्रों में अभी भी जारी है. इसका मुख्य वजह शिक्षा, स्वास्थ्य व मूलभूत समस्या है. सरकारी स्कूल में नहीं जाते बच्चेचैनपुर प्रखंड के पहाड़ पर स्थित लुपुंगपाट, बेसनापाट, भड़ियापाट व डोकापाट असुर बहुल गांव है. 300 से अधिक परिवार रहते हैं. डोकापाट में कल्याण विभाग द्वारा संचालिक आवासीय स्कूल है. यहां एक से छह तक पढ़ाई होती है. सात में चार मैट्रिक प्रशिक्षित शिक्षक हैं. लेकिन यहां शिक्षा का स्तर काफी खराब है. इसलिए अधिकांश बच्चे डोकापाट चर्च स्थित स्कूल में जाते हैं. डोकापाट स्कूल से ही पढ़ कर कई असुर बच्चे मैट्रिक व इंटर पास किये हैं.अभी भी ईसाई बन रहे हैं लोगलुपुंगपाट गांव के जवाकिम असुर ने बताया कि कई परिवार 30 वर्ष पहले ईसाई बने. ईसाई बनने के बाद शिक्षा का स्तर बढ़ा. इसके बाद अन्य लोग भी धीरे-धीरे ईसाई धर्म अपनाये. अभी पूरा गांव ईसाई धर्म को मानता है.सिर्फ बिजली पहुंची है गांव मेंबुनियादी सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली पहुंची है. सड़क नहीं है. पहाड़ी इलाका है. सफर करना बड़ी मुश्किल है. पर गांव के लोग घाटी सड़क में चल कर आदि हो चुके हैं. पीने का पानी नहीं है. झरना व चुआं का पानी पीते हैं. अभी तक खुले में शौच करने से मुक्त नहीं हो सके हैं. स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. रोजगार के साधन नहीं है. मनरेगा से काम नहीं हो रहा है.समस्या रखी, पर दूर नहीं हुईआदिम जनजाति के लोगों ने कई बार जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक गांव की समस्याओं को रखा. पर आश्वासन मिला, समस्या दूर नहीं हुई. आदिम जनजाति युवक युवतियों की सीधी नियुक्ति भी आश्वासनों तक सिमटा हुआ है. अभी भी मैट्रिक व इंटर पास युवक आगे की पढ़ाई व नौकरी के लिए भटक रहे हैं. अपना धर्म छोड़ कर ईसाई बन रहे हैं. गुमला में 30 हजार आदिम जनजाति हैं. इसमें 25 हजार लोग ईसाई बन गये हैं. सिर्फ गुरदरी क्षेत्र के अजजा ईसाई नहीं बने हैं. सरकार नहीं सुन रही, इसलिए धर्म बदल रहे हैं. वर्ष 2008 में सीधी नियुक्ति की घोषणा हुई थी. लेकिन सात वर्षो में मात्र एक युवती अनीता असुर को बिशुनपुर में कर्मचारी पद पर नौकरी लगी है.विमल असुर, अध्यक्ष, जागृति अभियानचैनपुर प्रखंड के पाट क्षेत्रों में निवास करनेवाले आदिम जनजाति बहुल गांवों में सरकारी योजना के तहत कितना विकास हुआ है, इसकी जानकारी नहीं है. पंचायत सेवक, रोजगार सेवक व जनसेवक से बात करने के बाद ही गांवों में हो रहे काम की जानकारी दे सकते हैं.किशोर बंधु कच्छप, बीडीओ, चैनपुर

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