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Gumla : 118 साल पहले अंग्रेज जमाने में बना अनुमंडल भवन टूटेगा, अब बनेगा तीन मंजिला भवन

दुर्जय पासवान, गुमला 118 साल पहले अंग्रेज जमाने में बना भवन टूटेगा. उस भवन के स्थान पर अब तीन मंजिला भवन बनेगा. हम बात कर रहे हैं गुमला कचहरी परिसर स्थित अनुमंडल कार्यालय के पुराने भवन की. 1902 ईस्वी में बने अनुमंडल कार्यालय के पुराने भवन को तोड़कर नया भवन बनाया जायेगा. नये भवन का […]

दुर्जय पासवान, गुमला

118 साल पहले अंग्रेज जमाने में बना भवन टूटेगा. उस भवन के स्थान पर अब तीन मंजिला भवन बनेगा. हम बात कर रहे हैं गुमला कचहरी परिसर स्थित अनुमंडल कार्यालय के पुराने भवन की. 1902 ईस्वी में बने अनुमंडल कार्यालय के पुराने भवन को तोड़कर नया भवन बनाया जायेगा. नये भवन का डिजाइन तैयार है. छह करोड़ रुपये की लागत से जी प्लस-टू भवन का निर्माण किया जायेगा. डिजाइन आकर्षक होगा.

भवन प्रमंडल विभाग गुमला द्वारा भवन का निर्माण किया जायेगा. इसबार जी प्लस-टू के डिजाइन में जो नया भवन बनेगा. उसी भवन की छत के नीचे कई विभागों के कार्यालय का संचालन होगा और वरीय अधिकारी बैठेंगे. भवन प्रमंडल गुमला के सहायक अभियंता शिवशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन मंजिला भवन बनाने का टेंडर हो गया है. छह करोड़ रुपये की लागत से भवन बनेगा.

फिलहाल में पुराने भवन में ही कई विभागों के कार्यालय का संचालन किया जा रहा है. सभी कार्यालय को हटाने की मांग की गयी है. जिससे पुराने भवन को तोड़कर वहां नया भवन बनाया जायेगा.

पुराने भवन में है कई कार्यालय

पुराने अनुमंडल कार्यालय के भवन को तोड़ना है. लेकिन फिलहाल यहां कई सरकारी विभागों के कार्यालय संचालित है. गुमला एसडीओ जीतेंद्र कुमार देव पुराने भवन से कार्यालयों को हटाने में लगे हुए हैं. इसके लिए उन्होंने सभी विभाग को कार्यालय खाली करते हुए दूसरे भवनों में शिफ्ट करने के लिए कहा है.

नया भवन बनने के बाद पुन: कार्यालय का संचालन एक साथ एक ही छत पर किया जायेगा. वहीं पुराना भवन जहां है. उसके बगल बगल में कई अधिवक्ता भी प्लास्टिक बांधकर बैठते हैं. जबतक नया भवन नहीं बन जायेगा. अधिवक्ताओं को भी बैठने में परेशानी होगी.

अनुमंडल भवन के बनने का इतिहास

गुमला जिला, बिहार सरकार की अधिसूचना दिनांक 16 मई 1983 के द्वारा रांची जिले से काटकर बनाया गया था. स्वाभाविक रूप से इसका रिकॉर्ड इतिहास अधिसूचना से पहले रांची जिले के भीतर निहित है. 1899 में गुमला जिला का नाम लोहरदगा से रांची तक बदल दिया गया था. प्राचीन काल में पड़ोसी पश्चिम मार्ग के साथ जिले का क्षेत्र मुंडा और उरांव के निर्विवाद कब्जे में था.

आर्यों के समय क्षेत्र को झारखंड या वन क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. संभवतः यह क्षेत्र अशोक (273-232 बीसी) के शासनकाल के दौरान मगध साम्राज्य के अधीन आया था. अंग्रेज जमाने में लोहरदगा के अंतर्गत गुमला आता था. बाद में गुमला अलग अनुमंडल बना. इसके बाद इसे 1983 में जिला का दर्जा बना. कहा जाता है कि जब इस क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन था. उसी समय 1902 ईस्वी में अंग्रेजों ने गुमला में अनुमंडल भवन का निर्माण कराया था.

बिना पीलर दिये बना था भवन

पुराने अनुमंडल कार्यालय का भवन बिना पीलर दिये बनाया गया था. बताया जाता है कि अंग्रेजों ने अपने कुशल कारीगरों के माध्यम से इस भवन का निर्माण कराया था. यहां पत्थर का ज्यादा उपयोग हुआ है. भवन को सामने से अंग्रेज जमाने का डिजाइन दिया गया है. 20 पीलर में यह खड़ा जरूर नजर आता है. लेकिन जो पीलर है. वह दरअसर एक पत्थर के ऊपर दूसरे पत्थर को रखकर बनाया गया है.

साथ ही छत पर मोटे लोहे को रखकर छत बनाया गया है. जमीन व सीढ़ी में भी चिकना पत्थर रखा गया है. यही वजह है कि यह भवन 118 साल पुराना होने के बाद भी अभी तक मजबूत नजर आता है. परंतु वर्तमान में भवन की आवश्यकता को देखते हुए इस पुराने भवन को तोड़कर वहां तीन मंजिला भवन का निर्माण कराया जायेगा.

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