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गुमला : शहीद के घर में शौचालय नहीं, खेत में जाने को मजबूर हैं परिजन

हाल : शहीद तेलंगा खड़िया के परिजनों का. दुर्जय पासवान, गुमला अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले वीर शहीद तेलंगा खड़िया के वंशज के घरों में शौचालय नहीं है. शहीद का पोता जोगिया खड़िया व उसके परिवार के सदस्य खेत में शौच जाते हैं. यहां दिक्कत महिलाओं को […]

हाल : शहीद तेलंगा खड़िया के परिजनों का.

दुर्जय पासवान, गुमला

अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले वीर शहीद तेलंगा खड़िया के वंशज के घरों में शौचालय नहीं है. शहीद का पोता जोगिया खड़िया व उसके परिवार के सदस्य खेत में शौच जाते हैं. यहां दिक्कत महिलाओं को है, जो लाज-शर्म छोड़कर खेत में जाने को मजबूर हैं. शहीद के घर में शौचालय नहीं है. इसकी जानकारी जनप्रतिनिधि यहां तक कि प्रशासन को भी है. लेकिन अभी तक शौचालय बनवाने की दिशा में कोई पहल नहीं की गयी है.

सबका साथ, सबका विकास का जो ढिंढोरा पीटा जा रहा है. यह शहीद के वंशज के गांव घाघरा में महज जुमला साबित हो रही है. घाघरा गांव सिसई प्रखंड के रेड़वा पंचायत में आता है. नागफेनी गांव से यह करीब तीन किमी दूर है. ग्रामीणों के अनुसार घाघरा गांव में करीब 200 परिवार रहते हैं. जिसमें 16 परिवार शहीद तेलंगा खड़िया के वंशज हैं.

शहीद का पोता जोगिया खड़िया का घर ठीक पहाड़ के किनारे जंगल के समीप है. वहां पास और छह परिवार रहते हैं. जबकि एक बड़ी आबादी गांव के दूसरे छोर पर रहते हैं. जिस स्थान पर जोगिया का घर है. वहां तक सड़क गयी है. लेकिन कच्ची मिटटी की सड़क है. बरसात में आवागमन में दिक्कत होती है.

शहीद के पोता संतोष खड़िया ने बताया कि हमलोग कहने को शहीद के वंशज है. सरकार की जो सुविधा हमें मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है. पूर्वजों ने एक कुआं खोदा था. आज भी उसी कुआं का पानी पीते हैं. बरसात के मौसम में कुआं का पानी पीकर बीमार भी पड़ते हैं. लेकिन मजबूरी है. कोई दूसरा उपाय नहीं है.

इसलिए कुआं का पानी पीते हैं. हमारे टोला में न तो चापानल है न सोलर सिस्टम से पानी मिल रही है. शहीद के 16 परिवार में से पांच को शहीद आवास व दो को पीएम आवास मिला है. सरकार जरूर वादा कर रही है. लेकिन शहीद के परिवार के लिए वादा महज दिखावा साबित हो रहा है.

शहीद की पोती पुनी खड़ियाईन ने कहा कि शहीद आवास के नाम से एक घर मिला है. जिसे अभी बनवा रहे है. पूरा नहीं बना है. अभी कच्ची मिट्टी के घर में रहते हैं. घर में शौचालय नहीं है. खेत जाना पड़ता है. प्रशासन ने भी शौचालय बनवाने की पहल नहीं की है. पक्की सड़क नहीं है. कच्ची सड़क में सफर करते हैं.

बसंत गुप्ता, निदेशक, मयूरी ट्रस्ट ने कहा कि शहीद तेलंगा खड़िया के परिजन गुमनाम जिंदगी जी रहे थे. सबसे पहले वर्ष 2007 में मयूरी ट्रस्ट ने शहीद के परिजनों को खोजा और मान सम्मान दिलाने का काम किया. प्रशासन की नजर में शहीद के परिजन आये. लेकिन जो सुविधा मिलनी चाहिए. अभी तक नहीं मिली है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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