Uyghur Brothers Detained In India: भारत और चीन की सीमा दुनिया की सबसे मुश्किल जगहों में से एक है. ऊंचे पहाड़, पतली हवा और अनिश्चित रास्ते. ऐसे ही रास्तों पर चलते हुए तीन उइगर मुस्लिम भाई 2013 में चीन के दमन से बचने के लिए निकले थे लेकिन गलती से भारतीय बॉर्डर क्रॉश करके भारत घुस गए. वो तीनों भाई अभी तक भारतीय जेल में बंद और बाहर जाने की उम्मीद लिए बैठे हुए हैं. आज 12 साल बाद भी वे वहीं बंद हैं. यह कहानी सिर्फ तीन लोगों की नहीं, बल्कि एक ऐसी त्रासदी की है जिसमें इंसानियत, राजनीति, डर और उम्मीद सब शामिल हैं.
भारत-चीन बॉर्डर दुनिया की सबसे मुश्किल जगहों में से एक है. ऊंचे पहाड़, पतली हवा और अनिश्चित रास्ते. इन्हीं सड़कों से 2013 में तीन उइगर मुस्लिम भाई चीनी ज़ुल्म से बचने के लिए निकले थे, लेकिन गलती से भारतीय बॉर्डर पार करके भारत में आ गए और तब से वह भारतीय जेल में बंद है बारह साल बाद भी वे वहीं हैं. यह सिर्फ तीन लोगों की कहानी नहीं है, बल्कि एक ऐसी दुखद घटना है जिसमें इंसानियत, राजनीति, डर और उम्मीद सब कुछ शामिल है.
Uyghur Brothers Detained In India in Hindi: चीन से भागकर लद्दाख पहुंच गए तीन भाई
12 जून 2013 की शाम को भारतीय सेना ने लद्दाख के सुल्तान चुश्कू नाम की वीरान जगह पर तीन लोगों को पकड़ा. अदालत के दस्तावेजों में उन्हें चीनी घुसपैठिए कहा गया. ये तीनों थे थुर्सुन भाई आदिल (23), अब्दुल खालिक (22) और सलामू (20). ये लोग 13 दिनों तक बस और पैदल यात्रा करते हुए शिनजियांग से पहाड़ों को पार कर यहां तक आए थे. उन्हें पता ही नहीं था कि वे भारत की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं. तीनों ने भारतीय सेना को बताया कि वे कश्गर के पास अपने घर से इसलिए भागे क्योंकि चीन में उइगर मुसलमानों पर दमन तेज हो गया था. उनके कई रिश्तेदार डिटेंशन सेंटर में ले जाए जा चुके थे.
पिछले दशक में एक करोड़ से ज्यादा उइगर मुसलमानों को री-एजुकेशन कैंप में बंद किया गया है. सिर्फ मस्जिद जाने या हिजाब पहनने जैसी वजहों से भी उन्हें सजा दी जाती रही है. चीन इसे अवैध धार्मिक गतिविधि पर नियंत्रण कहता है लेकिन अमेरिका समेत कई देश इसे जनसंहार बताते हैं. सेना ने दो महीने पूछताछ की और फिर उन्हें पुलिस के हवाले किया गया. उन पर गैर-कानूनी तरीके से सीमा पार करने का मामला लगा. लेकिन समस्या यह थी कि वे किसी भी भारतीय भाषा को नहीं जानते थे. उनका वकील भी उनसे ठीक से बात नहीं कर पाता था. एक साल बाद, जेल के कैदियों से भाषा सीखकर वे जज के सवालों का जवाब दे सके. इसके बाद उन्हें 18 महीने की सजा सुनाई गई.
सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई नहीं
द गार्जियन के अनसार, जब फैसला आया तब तक वे एक साल जेल में रह चुके थे. इसका मतलब था कि छह महीने बाद उन्हें रिहा होना चाहिए था. लेकिन इसी बीच भारत में सरकार बदल गई. सजा पूरी होने पर रिहाई की जगह उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) लगा दिया गया. यह कानून किसी भी व्यक्ति को छह महीने तक रोक सकता है और आदेश दोबारा जारी कर अनिश्चित काल तक जेल में रखा जा सकता है. सरकार हर बार नया आदेश जारी करती रही और वे 12 साल से जेल में हैं. इन तीनों का एकमात्र सहारा बने वकील मुहम्मद शफी लासू, जो कोर्ट की टीम के साथ जेल निरीक्षण में उनसे मिले थे. उनका कहना है कि ये लोग अपराधी नहीं, बल्कि डर के मारे भागे हुए थे. उन्हें मालूम भी नहीं था कि वे भारत में आ गए हैं. वे 10 साल से बिना किसी फीस लिए इनकी पैरवी कर रहे हैं. हर महीने अपने पैसों से इन्हें जेल में खाने, दवा और जरूरतों के लिए पैसे भेजते हैं.
बीमारी, गर्मी और अलग-अलग जेलों में बिखरे भाई
इन 12 वर्षों में तीनों भाइयों को कई जेलों में घुमाया गया. आज वे हरियाणा के करनाल जेल में हैं, लेकिन एक-दूसरे से अलग रखे गए हैं. जहां उन्हें रखा गया है, वे जगहें आमतौर पर गंभीर अपराधों वाले कैदियों के लिए होती हैं. गर्मी से वे परेशान हो जाते हैं क्योंकि वे ठंडे इलाके के रहने वाले हैं. खाने में ज़्यादातर दाल होती है जो उन्हें सूट नहीं करती. दो भाइयों को पाइल्स की समस्या हो गई है. एक भाई को डॉक्टर ने सर्जरी की सलाह दी है, लेकिन जेल प्रशासन ने अनुमति नहीं दी है.
जेल में सीखी चार भाषाएं और अंग्रेजी भी
जेल में रहते-रहते तीनों भाइयों ने चार स्थानीय भाषाएं और अंग्रेजी सीख ली है. बड़ा भाई अंग्रेजी में बोलने की कोशिश करता है, लेकिन गार्ड उसे हिंदी बोलने को कहते हैं क्योंकि वे अंग्रेजी समझ नहीं पाते. वकील बताते हैं कि वे उनसे मजाक में कहते हैं कि जेल से निकलकर वे भाषा शिक्षक बन जाएंगे. लद्दाख (जो 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था) के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी लतीफ उ जमान देव का कहना है कि इन तीनों को जेल में रखना कानून का उल्लंघन है.
उनका कहना है कि PSA का इस्तेमाल उन लोगों पर होना चाहिए जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों या गंभीर अपराधों में शामिल हों, न कि उन पर जो उत्पीड़न से भागकर शरण ढूंढ रहे हों. वकील शफी का कहना है कि भारत ने पहले भी हजारों शरणार्थियों को जगह दी है, जैसे तिब्बती. अगर सरकार इन्हें भारत में रहने नहीं देना चाहती, तो उन्हें किसी ऐसे देश में जाने की अनुमति दे सकती है जो उन्हें शरण दे सके. भाइयों को अपने परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
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