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दीपावली पर खिले कुम्हारों के चेहरे, मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग

परंपराओं से जुड़ाव और आस्था आज भी बनाए हुए है दीयों का महत्व

पोड़ैयाहाट प्रखंड के अमवार गांव के कुम्हारों के चेहरे पर इस दीपावली रौनक लौट आयी है. जैसे-जैसे दीपोत्सव का पर्व नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे मिट्टी के दीयों की मांग में भी इजाफा हो रहा है. कुम्हार मनोज पंडित और सिताराम पंडित ने बताया कि आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चकाचौंध के बावजूद लोग आज भी पारंपरिक मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं. उनका कहना है कि दीपावली से दो-तीन महीने पूर्व ही मिट्टी एकत्र कर दीये बनाने का कार्य शुरू कर दिया जाता है. दीपावली के दौरान परिवार के सभी सदस्य इस कार्य में जुट जाते हैं. कुछ लोग दीये बनाते हैं, तो कुछ उन्हें बाजारों में बेचते हैं. कुम्हारों के अनुसार, मिट्टी का बर्तन और दीया ही उनका मुख्य रोजगार का साधन है. उनका मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक रोशनी चाहे जितनी हो, लेकिन मिट्टी के दीयों की चमक और पवित्रता का कोई मुकाबला नहीं है.

पंचतत्वों का प्रतीक है मिट्टी का दीप : फंटूश झा

कुल पुरोहित फंटूश झा ने बताया कि शास्त्रों में मिट्टी का दीया पंचतत्वों जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी का प्रतीक माना गया है. यह ब्रह्मांड की संरचना के मूल तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने कहा कि दीयों में रूई की बाती और घी या तेल से प्रज्वलित दीपक घर में सुख, शांति, समृद्धि और सौभाग्य लाते हैं. दीपावली के दिन मिट्टी के दीये जलाना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है. इस प्रकार दीपावली न केवल रौशनी का पर्व है, बल्कि यह परंपरा, रोजगार और आस्था से जुड़ा सामाजिक उत्सव भी है, जो हर वर्ष कुम्हारों के जीवन में नयी उम्मीदें और रोशनी लेकर आता है.

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