इसके पूर्व गाजे-बाजे के साथ माता बेलभरनी को षष्ठी का आमंत्रण देने के बाद सप्तमी को मां की प्रतिमा को पूजा स्थल पर लाया गया. माना जाता है कि बेलभरनी पूजा पारिवारिक रिश्तों के पवित्र बंधन का संदेश देती है.
ननद-भौजाई के मिलन की मान्यता
इस पूजा से ननद-भौजाई का मिलन होता है. लिहाजा इस पूजा को लेकर विशेष चहल-पहल थी. मान्यता है कि गांव की रक्षार्थ मां दुर्गा बेटी के रूप में बेल वृक्ष पर वास करती है, जबकि शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा बहु के रूप में आती हैं. ननद व भौजाई का मिलन बेलभरनी पूजा के माध्यम से होता है. रिश्तों की मर्यादा के तहत ननद मां दुर्गा को षष्ठी में आमंत्रित किया जाता है. फिर सप्तमी को गाजे-बाजे के साथ डोली में लेकर माता को प्रतिमा स्थल पर लाया जाता है.
बेल, धान की बाली, अनार व केला पत्ता से पूजा
पुरोहित भवेश मिश्र ने बताया कि बेल भरनी माता का निर्माण बेल, धान की बाली, अनार व केला पत्ता से किया जाता है. इनकी पूजा-अर्चना एवं इनके सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. बताया जाता है कि प्रखंड के पिहरा दुर्गा मंदिर, माल्डा व नगवां दुर्गा मंदिर, खरसान दुर्गा मंदिर, जमडार दुर्गा मंदिर व बिरने दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा देवी की प्रतिमा स्थापित की गयी है. इन पूजा स्थलों पर माता की आराधना के लिए भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है.
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