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jharkhand@18: इस बार पढ़िए, जैविक खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे नरेश किस्कू की कहानी

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह 11वीं कड़ी है. इस कड़ी […]

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह 11वीं कड़ी है. इस कड़ी में पढ़ें साथी दशमत सोरेन के द्वारा लिखी नरेश किस्कू की कहानी जिन्होंने जैविक खेती को इस इलाके में अलग पहचान दी. किसान कम मुनाफे की वजह से परेशान हैं. कभी फसल के दाम नहीं मिलते तो कभी फसल खराब होने के कारण नुकसान होता है. पढ़ें नरेश ने कैसे जैविक खेती के दम पर अपनी आर्थिक स्थिति बदल दी.

आज के इस डिजिटल युग में पूरी दुनिया मुट्ठी में कैद है. आज भी देश की करीब 70 फीसदी जनसंख्या आजीविका के लिए पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है. आधुनिकता के इस दौर में भी कृषि के प्रति युवाओं का ये लगाव सामान्य नहीं है. एक वक्त था जब युवा डॉक्टर, इंजीनियर या एमबीए करना चाहते थे. बदलते वक्त के साथ- साथ करियर को लेकर भी युवाओं का रुझान बदलने लगा है. एक समय था जब लोग अधिक उपज के लिए रासायनिक खाद को ज्यादा तरजीह देने लगे थे, लेकिन अब जैविक व कंपोस्ट खाद का चलन तेजी से बढ़ रहा है.
पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर शहर से सटे गांव बालीगुमा, गोड़गोड़ा टोला के रहनेवाले नरेश किस्कू करीब 10 एकड़ में खेती-बारी करते हैं. वे अपने खेतों में जैविक खाद का उपयोग करते हैं. जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देने की वजह से उन्हें देश व दुनिया में अलग पहचान मिली है. वे लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गये हैं.
चार से पांच लाख का वार्षिक मुनाफा
नरेश किस्कू का कहना है कि जैविक खेती से उन्हें सालाना करीब चार से पांच लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है. पहले मेहनत भी काफी ज्यादा करनी पड़ती थी. अब कम मेहनत में ज्यादा पैदावार हो रही है. आनेवाले दिनों में वो अपनी दूसरी खाली पड़ी जमीन पर केला व पपीता की खेती करने का मन बना रहे हैं. वो सालों भर खेती-बारी करते हैं. भिंडी, साग-सब्जी, ओल, फूल, नींबू, नेनुआ, सीम आदि की खेती करते हैं.
अच्छी खेती के लिए मिला सम्मान
अच्छी खेती के लिए नरेश किस्कू को गुजरात में आयोजित ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट में शामिल होने का मौका मिला. इसमें कृषि के क्षेत्र में किये गये सराहनीय काम के लिए इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मानित भी किया. पूर्वी सिंहभूम जिले में भी बेहतर कृषि कार्य के लिए सम्मानित हो चुके हैं. कृषि के क्षेत्र में निरंतर बेहतर कार्य करने के कारण उन्हें एक्पोजर विजिट के लिए इजराइल जाने का भी मौका मिला.
ड्रिप एरिगेशन सिस्टम से करते हैं खेती
नरेश किस्कू पानी की कीमत को भी भली-भांति समझते हैं. खेतों में पानी की खपत कम से कम हो, इस लिहाज से वे ड्रिप एरिगेशन सिस्टम से खेती-बारी करते हैं. ड्रिप एरिगेशन सिस्टम के संबंध में उन्हें रांची में ट्रेनिंग भी मिली. इस सिस्टम से बूंद-बूंद पानी का बेहतर उपयोग होता है. इसके लिए खेत में सबसे पहले पाइप लाइन बिछायी जाती है. इसके बाद मिट्टी को पाइप पर डाल दिया जाता है. पाइप को मोटर से जोड़ दिया जाता है. इसके बाद पाइप के माध्यम से पौधों की जड़ों में पानी बूंद-बूंद पहुंचता है. इससे पानी की खपत तो कम होती है. साथ ही खर-पतवार भी कम उगते हैं. मैनपावर की जरूरत भी कम होती है.
खर-पतवार व गोबर से बनाते हैं खाद
नरेश किस्कू खर-पतवार व गोबर से अपने खेतों के लिए खाद तैयार करते हैं. अपने खेत के पास ही उन्होंने तीन-चार बड़े-बड़े गड्ढे खोद रखे हैं. उसमें मवेशियों का गोबर, पुआल, घास-फूस आदि प्रतिदिन रखते हैं. अपने घर के पास के लोगों से भी मवेशियों का गोबर, पुआल आदि वहीं जमा करवाते हैं. इससे वहां कुछ ही दिनों में काफी गोबर व खर-पतवार जमा हो जाता है, जो कुछ महीनों में ही अच्छी खाद बन जाती है. इस तरह से उन्हें सालोंभर खाद मिलती रहती है.

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