दलाही. मसलिया के मोहलीडीह गांव में श्रीमद्भागवत कथा श्रवण कराते हुए शिवम कृष्ण महाराज ने गोकर्ण के जन्म प्रसंग की विस्तृत चर्चा की. इससे जुड़े कई मार्मिक प्रसंग सुनाकर भाव विह्वल कर दिया. कहा कि गोकर्ण के पिता आत्मदेव एक विद्वान और धनवान ब्राह्मण थे. आत्मदेव की पत्नी का नाम धुन्धुली था. ये ब्राह्मण दम्पती संतानहीन थे. एक दिन वह ब्राह्मण पुत्र चिंता में निमग्न होकर घर से निकल पड़ा और वन में जाकर एक तालाब के किनारे बैठ गया. वहां उसे एक संन्यासी महात्मा के दर्शन हुए. ब्राह्मण ने उनसे अपनी संतानहीनता का दु:ख बताकर संतान प्राप्ति का उपाय पूछा. महात्मा ने उपदेश दिया कि हे ब्राह्मणदेव. संतान प्राप्ति से कोई सुखी नहीं होता है. तुम्हारे प्रारब्ध में संततियोग नहीं है. तुम्हें भगवान के भजन में मन लगाना चाहिए. आत्म देव ने कहा कि मुझे संतान दिजिये, अन्यथा मैं अभी आपके सामने अपने प्राणों का त्याग कर दूंगा. ब्राह्मण का हठ देखकर महात्माजी ने उसे एक फल दिया और कहा कि तुम इसे अपनी पत्नी को खिला देना. इसके प्रभाव से तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी. आत्मदेव ने वह फल ले जाकर अपनी पत्नी धुन्धुली को दे दिया. किंतु उसकी पत्नी दुष्ट स्वभाव की कलहकारिणी स्त्री थी. उसने गर्भधारण एवं प्रसव कष्ट को सोचकर फल को अपनी गाय को खिला दिया. समय आने पर धुन्धुली की बहन को एक पुत्र हुआ और उसने अपने पुत्र को धुन्धुली को दे दिया. उस पुत्र का नाम धुन्धुकारी रखा गया. इधर, तीन मास के बाद गाय को भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ. उसके शरीर के सभी अंग मनुष्य के थे, केवल कान गाय के समान थी. ब्राह्मण ने उस बालक का नाम गोकर्ण रखा. गोकर्ण थोड़े ही समय में परम विद्वान और ज्ञानी हो गये. धुन्धुकारी दुश्चरित्र, चोर और वेश्यागामी की तरह निकला. आत्मदेव उससे दु:खी होकर और गोकर्ण से उपदेश प्राप्त करके वन में चले गये और वहीं भगवान का भजन करते हुए परलोक सिधारे. गोकर्ण भी तीर्थ यात्रा के लिए चले गये. धुन्धुकारी ने अपने पिता की सम्पत्ति नष्ट कर दी. उसकी माता ने कुएं में गिरकर अपने प्राण त्याग दिये. उसके बाद धुन्धुकारी ने निरंकुश होकर पांच वेश्याओं को अपने घर में रख लिया. एक दिन वेश्याओं ने उसे भी मार डाला. धुन्धुकारी अपने दूषित आचरण के कारण प्रेतयोनि को प्राप्त हुआ. सूर्यदेव के कहने पर व्यासपीठ पर बैठ कर जब गोकर्ण ने श्रीमद भागवत कथा सुनायी, तब जाकर आम लोगों के साथ प्रेतयोनि में पहुंचे धुंधधारी को मुक्ति मिली.
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