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आदिवासी का अपना धर्म, इसे न बदलें
पालोजोरी : आदिवासी परंपरा व संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी परंपराओं से संस्कृतियों में से एक है. वर्तमान परिवेश में आदिवासी परंपरा लुप्त हो रही है. आज इसे सहेजने की जरूरत है. यह बातें विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी जागृति मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झारखंड आंदोलनकारी सोनालाल हेंब्रम ने कही. […]
पालोजोरी : आदिवासी परंपरा व संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी परंपराओं से संस्कृतियों में से एक है. वर्तमान परिवेश में आदिवासी परंपरा लुप्त हो रही है. आज इसे सहेजने की जरूरत है. यह बातें विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी जागृति मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झारखंड आंदोलनकारी सोनालाल हेंब्रम ने कही.
उन्होंने कहा कि समाज को आधुनिकता के पीछे नहीं भागते हुए संस्कृति सहेजना चाहिए. आदिवासी संस्कृति को समाप्त करने में लोग जुटे हुए हैं. आदिवासियों का अपना धर्म है और हमें इस धर्म के मार्ग पर ही चलना चाहिए. पिछले कुछ दिनों से अन्य समुदाय के लोग भी अपने को आदिवासी बनाने पर तुले हुए हैं.
इससे हमारे आरक्षण पर काफी असर पड़ेगा. कार्यक्रम में समाजसेवी शिवेश्वर बेसरा ने कहा कि आदिवासी संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुरानी है. आदिवासियों को अपनी पहचान बचाए रखने के लिए मुहिम छेड़ने की जरूरत है. इस अवसर पर जरमुंडी मुखिया बाबूराम मुर्मू, समाजसेवी मोतीलाल हांसदा ने भी संबोधित किया.
स्वागत भाषण लाल किशोर सोरेन ने दिया. मंच के गोकुल सोरेन, प्रेम हेंब्रम, सोनालाल मुर्मू ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम में आदिवासी समुदाय की महिलाएं अपने पारंपरिक वेशभूषा में कार्यक्रम में भाग लेने पहुंची थी. कार्यक्रम में मंच संचालन ललित चंद्र सोरेन ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में मंच के राजू चौड़े, बालकिशोर मुर्मू, सोनालाल मुर्मू, योगेन्द्र किस्कू, गिरीश मुर्मू, अशोक बास्की, परिमल टुडू, टिकेश्वर हांसदा, जियाराम मुर्मू, सुशील मुर्मू, बैजल टुडू, मनोज मुर्मू, सुशील मुर्मू आदि जुटे हुए थे़
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