Police: देश में पुलिस द्वारा हिंसा और यातना की अक्सर शिकायत आती रहती है. कुछ मामलों में शिकायत के बाद कार्रवाई होती है और कई मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ सरकार की ओर से कदम नहीं उठाया जाता है. पुलिस हिंसा और यातना के कारणों का पता लगाने के लिए कॉमन कॉज ने सीएसडीएस के लोक नीति कार्यक्रम के तहत देश के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में मध्यम और शहरी इलाकों के 82 स्थानों जैसे पुलिस स्टेशन, पुलिस लाइन और अदालतों में तैनात लगभग 8276 पुलिस कर्मी का सर्वेक्षण किया गया. सर्वेक्षण में पुलिस के हेड कांस्टेबल, डीएसपी से लेकर आईपीएस अधिकारी को शामिल कर ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2025: पुलिस टॉर्चर एंड अकाउंटेबिलिटी’ नाम से तैयार की गयी है.
इस रिपोर्ट में डॉक्टरों, वकीलों और न्यायाधीशों का भी साक्षात्कार किया गया. सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गयी रिपोर्ट में सामने आया कि डयूटी के दौरान तैनात अधिकांश पुलिसकर्मी हिरासत में लोगों के साथ अत्याचार को उचित मानते हैं. पुलिस वालों का मानना है कि इस अत्याचार के खिलाफ उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. रिपोर्ट के अनुसार 20 फीसदी पुलिसकर्मियों ने माना कि जनता के बीच कानून का डर पैदा करने के लिए सख्त तरीका अपनाना जरूरी है, जबकि 35 फीसदी पुलिस वालों ने माना कि सख्ती कुछ हद तक जरूरी है. हैरान करने वाली बात है कि बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा और अपहरण के खिलाफ भीड़ की हिंसा को 25 फीसदी पुलिस वाले सही मानते हैं.
गिरफ्तारी के दौरान प्रक्रिया का पालन
रिपोर्ट में बताया गया है कि आधे से कम लगभग 41 फीसदी पुलिस वाले मानते हैं कि गिरफ्तारी के दौरान कानूनी प्रक्रिया का सही तरीके से पालन किया जाता है, जबकि 24 फीसदी ने माना कि कभी-कभी नियमों का पालन नहीं होता है. अगर राज्यों की बात करें तो केरल में 94 फीसदी गिरफ्तारी मामलों में नियमों का सही तरीके से पालन होता है. वहीं 62 फीसदी ने कहा कि जमानती अपराध के मामले में आरोपी को थाने से ही रिहा कर दिया जाता है. सिर्फ 56 फीसदी पुलिसकर्मियों ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर न्यायिक अधिकारी के समक्ष पेश किया जाता है. गंभीर अपराध के मामलों में 30 फीसदी पुलिसकर्मियों ने माना कि अपराधी के खिलाफ थर्ड डिग्री टॉर्चर करना जरूरी है. वहीं 11 फीसदी ने कहा कि आरोपी और उसके परिवार के सदस्य को थप्पड़ मारना जरूरी है, जबकि 30 फीसदी ने कहा कि यह कभी-कभी जरूरी हो जाता है. अधिकांश पुलिसकर्मियों ने माना कि मानवाधिकार, यातना पर रोक लगाने और साक्ष्य आधारित पूछताछ के लिए तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है. रिपोर्ट में पुलिस हिरासत के दौरान मौत और अन्य कई बातों का जिक्र किया गया है.
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