उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने फिर एकबार सियासी करवट वाला फैसला लिया है. जदयू में बगावत के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी छोड़ दिया है. वहीं अब नयी पार्टी बनाने का फैसला उपेंद्र कुशवाहा ने लिया है. राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से नयी पार्टी का गठन कुशवाहा करेंगे. उपेंद्र कुशवाहा का यह फैसला खुद उनके लिए और बिहार के सियासी तापमान में कितना असरदार दिखेगा, ये आने वाला वक्त ही तय करेगा. कुशवाहा 14 साल में तीन पार्टी बना चुके हैं. एक नजर उनके सियासी सफर पर...
उपेंद्र कुशवाहा जब 2004 में विधायक बने...
उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के साथ समता पार्टी के समय से रहने वाले नेताओं में एक हैं. पहली बार वो 2004 में विधायक बने जब समता पार्टी ने उन्हें नेता विरोधी दल बनाया. इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार में बड़ा बदलाव हुआ लेकिन उपेंद्र कुशवाहा तब चुनाव हार गये.
NCP में भी गए कुशवाहा, राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई
2005 में हार के बाद कुशवाहा ने वर्ष 2007 में एनसीपी का साथ पकड़ लिया और उसके प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. लेकिन एनसीपी के साथ उनका रिश्ता बहुत कम समय तक चल सका. वर्ष 2008 में वो पार्टी से अलग हो गये और 2009 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. राष्ट्रीय समता पार्टी बनाकर वो जदयू के खिलाफ ही मैदान में उतर गए थे.
2009 में उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के साथ आ गए...
नवम्बर 2009 में उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के साथ आ गए. जिसके बाद वर्ष 2010 में नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी की ओर से राज्यसभा भेज दिया. उपेंद्र कुशवाहा इसे बहुत आगे लेकर नहीं चल सके और 2011 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया.
2013 में रालोसपा नाम से पार्टी बनाई..
उपेंद्र कुशवाहा ने वर्ष 2013 में तब रालोसपा नाम से एक पार्टी बनाई. एनडीए का हिस्सा बनकर वो 2014 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे. उनकी पार्टी तीन सीटों पर जीत गयी. उपेंद्र कुशवाहा केंद्र सरकार में मंत्री बनाए गए. लेकिन 2015 में एनडीए में रहते ही उनकी पार्टी 23 में महज 2 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी. 2016 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में टूट हुई. फरवरी 2018 में उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
महागठबंधन का दामन थामा..
एनडीए से अलग होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन का दामन थाम लिया. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से रालोसपा को पांच सीटें मिली लेकिन एक भी सीट पर उनका उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर सका.
गिरता गया सियासी ग्राफ, जदयू के साथ आए थे वापस
वर्ष 2020 में उन्होंने बसपा, एआइएमआइएम समेत कई दलों के साथ मिलकर मैदान में उतरे लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके. जिसके बाद फिर से उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कराया था और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए थे. अब कुशवाहा एकबार फिर से नयी पार्टी बना रहे हैं.
Posted By: Thakur Shaktilochan