खेतिहर मजदूर मैमून खातून इंसानियत की मिसाल बन कर अपने परिवार से बिछुड़ी एक महिला और उसके बच्चे को परिवार से मिलाने की मिशन में जुटी हुई है. अररिया जिले के जोगबनी थाना क्षेत्र के घुसकीपट्टी रहमानगंज वार्ड नंबर दो निवासी मैमून खातून मानसिक रूप से कमजोर इस भटकी हुई महिला व उसके बच्चे को करीब एक साल से अपने घर में रख कर न सिर्फ पालन पोषण कर रही है. बल्कि उन्हें उनके परिवार से मिलाने के प्रयास में भी जुटी हुई है.
कौशल
सुपौल : बदलते दौर में जहां खून के रिश्ते भी अपने किसी मजबूर के साथ चार कदम चलने के तैयार नहीं होते हैं. वहीं खेतिहर मजदूर मैमून खातून इंसानियत की मिसाल बन कर अपने परिवार से बिछुड़ी एक महिला और उसके बच्चे को परिवार से मिलाने की मिशन में जुटी हुई है. अररिया जिले के जोगबनी थाना क्षेत्र के घुसकीपट्टी रहमानगंज वार्ड नंबर दो निवासी मैमून खातून मानसिक रूप से कमजोर इस भटकी हुई महिला व उसके बच्चे को करीब एक साल से अपने घर में रख कर न सिर्फ पालन पोषण कर रही है. बल्कि उन्हें उनके परिवार से मिलाने के प्रयास में भी जुटी हुई है.
इस एक वर्ष के दौरान महज संभावना पर मैमून अपने खून पसीने से कमाई हजारों रुपये को खर्च कर इस महिला व बच्चे को लेकर परोसी राष्ट्र नेपाल सहित पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज सहित सहरसा जिले के कई गांवों की खाक छान चुकी है. लेकिन अभी तक इस महिला का कोई ठोर ठिकाना नहीं मिल पाया है. अब जब महिला ने मरीचा गांव का नाम लिया तो मैमून अपनी बहन शबरुण खातून और बिछुड़ी महिला को लेकर सुपौल की सड़कों पर भटक रही है. हालांकि मैमून का यह भागीरथी प्रयास भी अब तक कामयाब नहीं हो पाया है, लेकिन 40 वर्षीया अनपढ़ मैमून की ठोस इच्छा शक्ति देख कर लगता नहीं कि मंजिल अब दूर होगी.
पुलिस ने नहीं की मदद
मैमून ने बताया कि करीब सात माह पूर्व ठंड के समय वह इस बिछुड़ी महिला को लेकर जोगबनी के रास्ते नेपाल गयी थी. लेकिन नेपाल पुलिस ने मदद करने के बजाय दुत्कार दिया. और तो और रात होने पर एक महिला पुलिस अधिकारी ने पुलिस थाना में इन्हें रात गुजारने से भी मना करते हुए खदेड़ दिया था. कुछ यही स्थिति बिहार पुलिस की भी रही. मैमून बिछुड़ी महिला को लेकर कई बार अररिया के महिला हेल्प लाइन और थाना गयी, लेकिन पुलिस कुछ करने के बजाय बस उन्हें बहलाती रही.