सुपौल : इस्लामी कैलेंडर का अंतिम महीना जिल्हिज्ज़ा की शुरुआत होते ही इस्लामी धर्मावलंबियों को पैग़म्बरे इस्लाम हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके होनहार लखते जिगर हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम द्वारा अरब की सरजमींन मक्का शरीफ के मेना की उस मैदान की याद ताजा होने लगती है जहां जिल्हिज्ज़ा की 10वीं तारीख को वह हैरत अंगेज नजारा […]
सुपौल : इस्लामी कैलेंडर का अंतिम महीना जिल्हिज्ज़ा की शुरुआत होते ही इस्लामी धर्मावलंबियों को पैग़म्बरे इस्लाम हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके होनहार लखते जिगर हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम द्वारा अरब की सरजमींन मक्का शरीफ के मेना की उस मैदान की याद ताजा होने लगती है जहां जिल्हिज्ज़ा की 10वीं तारीख को वह हैरत अंगेज नजारा पेश आया था. उसी सरजमींन पर पैगंबरे इस्लाम ने अल्लाह ताला के हुक्म और ख़ुशनुदी के लिए अपने बुढ़ापे का एक मात्र सहारा प्यारे पुत्र हजरत इस्माईल की कुर्बानी को अंजाम देने का काम किया था.
जिसको लेकर मुस्लिम समुदाय प्रत्येक जिल्हिज्ज़ा महीने की 10वीं तारीख को ईदुल अजहा बक़रीद की नमाज अदा करने के बाद सुन्नते इब्राहिम के पद चिह्नों पर चलते हुए बकरे की कुर्बानी करते आ रहे हैं. आलमेदिन हजरत मौलाना मुफ़्ती मेराज सईद काशमी कहते हैं कि हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को आखरी उम्र बुढ़ापे में अल्लाह ताला ने एक होनहार पुत्र हजरत इस्माईल अता किया था.
एक दौर ऐसा भी आया जब अल्लाह ताला के हुक्म से नन्हे इस्माईल और पत्नी बीबी हाजरा को मक्का की रेतीली मैदान में छोड़ दिया था. जहां खाने पीने का कोई सामान नहीं था. परन्तु उसी सरजमींन पर भूखे प्यासे हजरत इस्माईल के पांव रगड़ने से आब जमजम नमूदार हुआ था. जिससे हर साल हाजी और मक्कावासी आब जमजम से लाभान्वित हो रहे हैं. दूसरा नजारा उस समय पेश आया जब अल्लाह ताला ने हजरत इब्राहीम को सख्त परीक्षा में आजमाते हुए अपने सबसे अजीज और महबूब चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था.
इस्लामी इतिहासकारों ने बताया है कि जवानी में कदम रखने पर हजरत इस्माईल को भी एक सख्त परीक्षा से गुजरना पड़ा था. जब उनके पिता हजरत इब्राहीम को एक रात सपना में अल्लाह ताला ने दुनिया में सबसे बेहतरीन और पसंदीदा चीज की कुर्बानी मांगी थी. सपना को साकार बनाने को लेकर हजरत इब्राहीम ने दो दिन उंटों की कुबानी दी. लेकिन अल्लाह ताला ने ऊंटों की कुर्बानी को पसंद नहीं किया. तीसरी रात को अल्लाह ताला ने सबसे अजीज चीज की कुर्बानी मांग ली.
हजरत इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने का किया था फैसला
तब हजरत इब्राहिम को एहसास हुआ कि दुनिया में उसके लिए एक मात्र पुत्र ही तो है. लिहाजा अपने सपने के बारे में जब अपने पुत्र हजरत इस्माईल को अल्लाह ताला के हुक्म के बारे में बताया तो होंनहार और पिता के हुक्मों पर चलने वाला पुत्र हजरत इस्माईल ने बिना हिचकिचाहट के खुशी से इजाजत दे दी. पुत्र की इजाजत मिलते ही हजरत इब्राहिम ने अपनी वफादार पत्नी बीबी हाजरा को अपने पुत्र को स्नान कर उम्दा लिबास पहना कर अपने साथ ले चलने की बात कहा. वफादार पत्नी ने अपने शौहर के हुक्म के अनुसार पुत्र को स्नान कर उम्दा लिबास पहना कर पिता के साथ भेज दिया. इधर शैतान ने बीबी हाजरा को बताया कि पिता द्वारा पुत्र की हत्या करना चाहता है और यह काम उसके खुदा का है तो बीबी हाजरा ने शैतान को फटकार लगाते हुए भगा दिया.
यहां बात बनते नहीं देख शैतान ने उसके पुत्र हजरत इस्माईल को बहकाते हुए कहा कि तुम्हारा बाप तुमको मारने ले जा रहा है और यह काम अपने खुदा के हुक्म पर कर रहा है. पिता का वफादार पुत्र हजरत इस्माईल ने शैतान पर कंकड़ फेंकते हुए भगा दिया. मेना के मैदान पहुंचने पर जब हजरत इब्राहीम ने पुनः पुत्र इस्माईल को अल्लाह ताला का हुक्म सुनाते हुए कुर्बानी की बात रखा तो तो पुत्र इस्माईल ने इजाजत देते हुए अपने पिता से कुर्बानी से पहले अपने आंखों पर पट्टी बांधने एवं उसके शरीर को मोटी रस्सी से बांधने का आग्रह किया. ताकि कुर्बानी के दौरान अल्लाह ताला के हुक्म की खिलाफ वर्जी न हो जाये. पिता इब्राहिम ने पुत्र की बात मानते हुए वैसा ही किया. परन्तु जब अपने पुत्र इस्माईल के गला पे छुरी चलाया उसी समय अल्लाह ताला ने छुरी को सख्त हुक्म दिया कि खबरदार हजरत इस्माईल का एक बाल भी कटा तो अंजाम बुरा होगा.
लिहाजा छुरी ने खुदा के हुक्म से इस्माईल के गर्दन को काटने से इन्कार कर दिया. वहीं दूसरी ओर अल्लाह ताला के हुक्म से फरिश्ता हजरत जिब्राईल द्वारा जन्नत से एक उम्दा दुम्बा अर्थात बकरा ले जाकर इस्माईल को कुर्बानी स्थल से हटा कर उसके स्थान पर दुम्बा बकरा को लिटा दिया. उधर छुरी ने दुम्बा की कुर्बानी को अंजाम दे डाला. अल्लाह ताला ने पिता और पुत्र को सख्त परीक्षा में कामयाब होने पर जहां हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को खलीलुल्लाह एवं पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम की जबिहुल्लाह की उपाधि से नवाजने का काम किया. इसी दिन को ध्यान में रखते हुए मुसलमान सुन्नते इब्राहिम के पद चिह्नों पर चलते हुए बकरे की कुर्बानी देते आ रहे हैं.
कुर्बानी के बकरा के गोश्त को तीन भागों में बांटना बेहतर बताया गया है. एक भाग अपने दोस्तों व चाहने वालों का, दूसरा भाग गरीबों व लाचारों का तथा तीसरा भाग को अपने परिवार के लिए रखने को कहा गया है.