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जहां कभी हुआ करते थे जेलर, आज वहां के बंदी

सीतामढ़ी जेल में ‘हाइप्रोफाइल’ कैदी सीतामढ़ी : जेल की परिकल्पना अपराधियों के लिए की गयी थी. सूबे के तमाम जिलों के जेल में बड़ी संख्या में शातिर अपराधी से लेकर विभिन्न अपराध में लिप्त लोग बंद हैं. सीतामढ़ी जेल सूबे के अन्य जेलों से अलग है. वर्तमान में जेल की तसवीर अजीबोगरीब है. वजह साल […]

सीतामढ़ी जेल में ‘हाइप्रोफाइल’ कैदी
सीतामढ़ी : जेल की परिकल्पना अपराधियों के लिए की गयी थी. सूबे के तमाम जिलों के जेल में बड़ी संख्या में शातिर अपराधी से लेकर विभिन्न अपराध में लिप्त लोग बंद हैं. सीतामढ़ी जेल सूबे के अन्य जेलों से अलग है. वर्तमान में जेल की तसवीर अजीबोगरीब है.
वजह साल भर पूर्व जिस जेल में अरुण कुमार जेलर के रूप में ड्यूटी करते थे, आज उसी जेल में बंदी की तरह रह रहे हैं. सिर्फ जेलर ही नहीं दारोगा रामचंद्र प्रसाद, अधिवक्ता मधु शंकर सिंह व अधिवक्ता लिपिक नागेंद्र राय भी इसी जेल में बंद हैं. इसके अलावा कई अधिकारी व कर्मचारी भी सीतामढ़ी जेल में बंद हैं. इन अधिकारियों की जिंदगी जेल में बंद शातिर अपराधियों के साथ कट रही है. शायद यहीं वजह है कि जेलर, दारोगा, अधिवक्ता व अधिवक्ता लिपिक के जेल में होने को लेकर चर्चाओं का दौर थम नहीं रहा है. उल्लेखनीय है कि चारों एक ही मामले में जेल में बंद है.
पूर्व जेलर अरुण कुमार, दारोगा रामचंद्र प्रसाद, अधिवक्ता मधु शंकर सिंह, अधिवक्ता लिपिक नागेंद्र राय हैं जेल में बंद
क्या है मामला
रून्नीसैदपुर पुलिस ने 10 दिसंबर, 2013 को रून्नीसैदपुर में छापेमारी कर आर्म्स के साथ मुजफ्फरपुर के चार बदमाशों को गिरफ्तार किया था. मामले को लेकर रून्नीसैदपुर थाने में कांड दर्ज कराया गया था. इसमें मुजफ्फरपुर के औराई थानेे के विशनपुर निवासी वीरेंद्र सहनी व हरेंद्र सहनी, राम खेतारी निवासी दिलीप कुमार व परसामा निवासी जितेंद्र कुमार को आरोपित किया गया था. मामले की जांच का जिम्मा अवर निरीक्षक रामचंद्र प्रसाद को मिला था. मामले की कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. इसी बीच आर्म्स एक्ट समेत कई संगीन मामलों में जेल में बंद बथनाहा थाने के मदनपट्टी निवासी रणधीर राय ने सीजेएम कोर्ट में अपने वास्तविक नाम रणधीर राय के नाम से जमानत की अर्जी दी.
अधिवक्ता लिपिक नागेंद्र राय की पहचान पर अधिवक्ता मधु शंकर सिंह ने शपथ पत्र दायर किया था, जिसे सीजेएम ने रिजेक्ट कर दिया था. इसके बाद रणधीर राय ने कांड संख्या 496/2013 के तहत हरेंद्र सहनी के नाम पर जमानत के लिए अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम के कोर्ट में अर्जी दी. वहीं पटना हाइकोर्ट में भी 31 मार्च, 2015 को हरेंद्र सहनी के नाम जमानत की अर्जी दायर की गयी. इस बार भी अधिवक्ता मधु शंकर सिंह व अधिवक्ता लिपिक नागेंद्र राय ने मिल कर उसका शपथ पत्र तैयार किया.
पटना हाइकोर्ट में जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान शक होने के बाद न्यायाधीश ने सात सितंबर, 2016 को सीआइडी के एडीजी को व्यक्तिगत स्तर पर मामले की जांच का आदेश दिया. जांच में पाया गया कि रणधीर राय ने हरेंद्र सहनी के नाम से कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत कर जालसाजी व षड्यंत्र रच कर जमानत लेने की कोशिश की. जमानत के अलग-अलग आवेदनों, शपथ पत्रों, वकालतनामा, जेल से अग्रसारित पहचान पत्र व अन्य कागजात की बिंदुवार जांच में एडीजी सीआइडी ने पाया कि रणधीर ने खुद को हरेंद्र सहनी बता जमानत लेकर जेल से निकलने की कोशिश की. वजह रणधीर राय के नाम बथनाहा थाने में आर्म्स एक्ट समेत कई संगीन मामले दर्ज हैं.
आपराधिक षड्यंत्र रच कर कोर्ट व पुलिस को धोखा देने के लिए जेल से छूटने व जमानत लेने के लिए रणधीर राय ने दो-दो बार अलग-अलग नाम से कोर्ट में जमानत की अर्जी दायर की. जेल से निर्गत दोनों ही बार अलग अलग नाम से वकालतनामा प्राप्त करने में उसे जेल कर्मियों ने भी सहयोग किया था. एडीजी ने जांच रिपोर्ट में बताया कि जब्ती सूची के गवाह सतेंद्र कुमार व मिथिला बिहारी सिंह को अनुसंधानक ने रणधीर राय उर्फ हरेंद्र सहनी के खिलाफ गवाही नहीं देने का दबाव बनाया था, वहीं धमकी भी दी थी. इस बाबत मिथिला बिहारी सिंह ने 19 दिसंबर, 2013 को तत्कालीन एसपी को आवेदन भी दिया था. मुजफ्फरपुर के औराई थाने के विशनपुर निवासी चौकीदार विश्वनाथ ने एडीजे प्रथम के कोर्ट में लिखित आवेदन देकर बताया था कि विशनपुर गांव में संतोष कुमार नाम का कोई व्यक्ति नहीं है. दारोगा ने भी संतोष की पहचान की थी.
सीआइडी के एडीजी की जांच रिपोर्ट के आधार पर पटना हाइकोर्ट ने न्यायालय को गुमराह करने व दारोगा तथा अधिवक्ता के साथ मिल कर जालसाजी करने के इस मामले में प्राथमिकी का आदेश दिया था.
इसके आलोक में एसपी के आदेश पर बेलसंड अंचल इंस्पेक्टर रामाकांत सिंह ने नौ दिसंबर, 2016 को रून्नीसैदपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी. बाद में हाइकोर्ट ने मामले में सीतामढ़ी के तत्कालीन सहायक जेल अधीक्षक व सासाराम में सहायक जेल अधीक्षक के पद पर तैनात अरुण कुमार के खिलाफ भी प्राथमिकी का आदेश दिया था. इसके आलोक में सीतामढ़ी पुलिस ने 15 अप्रैल को सासाराम में छापेमारी कर सहायक जेल अधीक्षक को गिरफ्तार कर 16 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया था, जहां से कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया था.
इसके पूर्व 19 मार्च को पुलिस ने सीतामढ़ी कोर्ट हाजत प्रभारी सह दारोगा रामचंद्र प्रसाद, अधिवक्ता मधुशंकर सिंह व अधिवक्ता लिपिक नागेंद्र राय को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में पेश किया था, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया था.

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