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खेतों में जलने वाला डंठल बना किसानों की आमदनी का जरिया

Sasaram news. कुछ साल पहले तक गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे डंठलों को किसान आग के हवाले कर दिया करते थे. इससे एक ओर जहां फसलें जलती थीं, वहीं दूसरी ओर वातावरण भी जहरीले धुएं से भर जाता था.

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गुड न्यूज. जागरूकता, तकनीक और बाजार की मांग ने बदली तस्वीर

राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में रोहतास से हो रही भूसे की सप्लाइ

खेतों में डंठलों के जलाने से मिट्टी व पर्यावरण को होता था नुकसान

फोटो-6- गेहूं कटे खेतों में बचे डंठल से भूसा बनाती रैपर मशीन.प्रतिनिधि, बिक्रमगंज.

कुछ साल पहले तक गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे डंठलों को किसान आग के हवाले कर दिया करते थे. इससे एक ओर जहां फसलें जलती थीं, वहीं दूसरी ओर वातावरण भी जहरीले धुएं से भर जाता था. लेकिन, अब वही डंठल किसानों के लिए कमाई का जरिया बन चुका है. संझौली प्रखंड के औराई गांव के किसान संजय सिंह कहते हैं कि पहले हम डंठल को बेकार समझते थे, लेकिन अब हर टाली भूसा दो हजार रुपये तक बिकता है. पिछले सीजन में मैंने करीब 15 टाली भूसा बेचा और इससे 30 हजार रुपये की अतिरिक्त कमाई हुई. अब तो खुद व्यापारी गांव आकर भूसा खरीदते हैं.

दरअसल, इस बदलाव के पीछे जागरूकता, तकनीक और बाजार की मांग है. गांव-गांव भूसा व्यापारी सक्रिय हो चुके हैं, जो किसानों से भूसा खरीदकर उसे राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में भेज रहे हैं, जहां इसका उपयोग पशुचारे और बायोफ्यूल के लिए बड़े पैमाने पर होता है. वहां भूसे की बड़ी डिमांड है. इससे न केवल प्रदूषण पर रोक लगी है, बल्कि किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है. बिक्रमगंज के घुसियांखुर्द गांव में स्थित उत्कर्ष बायो पल्स नामक कंपनी भी भूसे की बड़ी खरीदार बन चुकी है. कंपनी के निदेशक संतोष सिंह बताते हैं कि हम गेहूं के डंठल से तैयार भूसा किसानों से 2000 से 2200 रुपये प्रति टाली की दर से खरीदते हैं. यह भूसा बायो-सीएनजी गैस उत्पादन में अहम भूमिका निभाता है.

एक पोषक चारा है गेहूं का भूसा

कृषि विज्ञान केंद्र बिक्रमगंज के वैज्ञानिक डॉ आरके जलज बताते हैं कि गेहूं का भूसा एक पोषक चारा है. इसे दाना, खली और नमक मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है, जिससे उनका पाचन बेहतर होता है. साथ ही यह बिछावन के तौर पर सर्दी में गर्माहट देता है. कृषि वैज्ञानिक डॉ रामाकांत सिंह कहते हैं कि डंठल जलाना अब पुरानी बात हो चुकी है. यह एक ऐसा संसाधन है, जिसे सही तरीके से इस्तेमाल कर किसान आर्थिक रूप से सशक्त बन सकते हैं. इस परिवर्तन ने न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ायी है, बल्कि खेतों की उर्वरता बचाने और पर्यावरण की रक्षा में भी बड़ी भूमिका निभायी है. जरूरत है कि इस जागरूकता को और फैलाया जाये, ताकि हर किसान डंठल को कमाई में बदल सके.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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