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व्यावसायिक स्तर पर रजनीगंधा पुष्प की खेती लाभकारी

शृंगार सज्जा के लिए मशहूर है रंजनीगंधाप्रतिनिधि, पूसाराजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के अधीनस्थ तिरहुत कृषि महाविद्यालय ढोली के उद्यान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ हरि प्रसाद मिश्र के अनुसार रजनीगंधा पुष्प की खेती राज्य में व्यावसायिक स्तर पर लाभकारी है. फिलवक्त बिहार राज्य के सैकड़ों किसान रजनीगंधा के उम्दा प्रजाति की खेती कर सालाना लाखो रुपये […]

शृंगार सज्जा के लिए मशहूर है रंजनीगंधाप्रतिनिधि, पूसाराजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के अधीनस्थ तिरहुत कृषि महाविद्यालय ढोली के उद्यान विभाग के वरीय वैज्ञानिक डॉ हरि प्रसाद मिश्र के अनुसार रजनीगंधा पुष्प की खेती राज्य में व्यावसायिक स्तर पर लाभकारी है. फिलवक्त बिहार राज्य के सैकड़ों किसान रजनीगंधा के उम्दा प्रजाति की खेती कर सालाना लाखो रुपये मुनाफा कमा रहे हैं. रजनीगंधा एक अति आकर्षक फूल है. इसका सफेद रंग का सुगंधयुक्त सिंगल एवं डबल होता है. इसके फू लमाला, गजरा, ,लरी, वेनी, गुलदस्ता बनाने व सज्जा के प्रयोग में मुख्य रूप से लगाये जाते हैं. व्यावसायिक स्तर पर खेती करने वाले किसान पुष्प को तोड़कर प्रति किलोग्राम की दर से बेचते हैं. यह फूल लगभग पूरे वर्ष खिलते रहते हैं. इसके कंद को फरवरी से मई के बीच में लगाने से 2-3 वर्ष तक पुष्प प्राप्त होते रहते हैं. इसे मुख्यत: चार भागों में बांटा गया है. एकहरी, दोहरी, अर्द्ध दोहरी एवं धारीदार ये राज्य के किसी भी हिस्से में लगाया जा सकता है. व्यावसायिक स्तर पर दोहरी प्रभेद अत्यंत लाभकारी होता है. इसके अलावा इस पुष्प से तेल भी निकाला जाता है. एक पौधे से 20-30 कंद तैयार होता है. इसके फूल में थ्रीप्स नामक कीड़े का आक्रमण अक्सर होते रहता है. इसके रोक थाम के लिए सेविन नामक दवा का 0.3 प्रतिशत की दर से दो से तीन दिन पर छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें. इस फसल पर किसी भी तरह के रोग का प्रभाव नहीं देखा गया है. ताजा फूल प्रति हेक्टेयर लगभग 80-100 क्विंटल प्रतिवर्ष प्राप्त होता है. जबकि सुगंधित द्रव्य के रूप में कंकरीट 27.5 किलोग्राम प्रति हेक्टयेर तक प्राप्त होता है. इससे 5.50 किलोग्राम शुद्ध द्रव्य तैयार किया जा सकता है. वहीं स्पाइक अर्थात कटे हुए फूल की उपज लगभग गिनती के अनुसार 2 लाख से 4 लाख प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है.

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