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स्टेडियम: खेल से नहीं बन सकी पहचान

स्टेडियम: खेल से नहीं बन सकी पहचान प्रभात खासप्रशासनिक उपेक्षा की वजह से अनशन स्थल में तब्दील हुआ स्टेडियमजिले के खिलाड़ियों को नहीं मिल सकी सौगात कुमार आशीष, सहरसा नगर मुख्यालय स्थित इंडोर स्टेडियम के समीप वर्षों से उपेक्षित आउटडोर स्टेडियम की पहचान अनशन स्थल के रूप में बड़ी तेजी से फैलने लगी है. स्टेडियम […]

स्टेडियम: खेल से नहीं बन सकी पहचान प्रभात खासप्रशासनिक उपेक्षा की वजह से अनशन स्थल में तब्दील हुआ स्टेडियमजिले के खिलाड़ियों को नहीं मिल सकी सौगात कुमार आशीष, सहरसा नगर मुख्यालय स्थित इंडोर स्टेडियम के समीप वर्षों से उपेक्षित आउटडोर स्टेडियम की पहचान अनशन स्थल के रूप में बड़ी तेजी से फैलने लगी है. स्टेडियम के निर्माण की प्रक्रिया बीते आठ साल से विभागीय उपेक्षा का दंश लिए सरकारी फाइल में दब सी गयी है. जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण को लेकर निर्माण कार्य शुरू हुए आज आठ वर्ष बीत गये हैं. बावजूद यह अभी तक अधूरा है. जिला में तैनात अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक अनशन स्थल तक जाते हैं, लेकिन स्टेडियम की दशा सुधारने के लिए सजग नहीं दिखते हैं. वर्ष 2003 में शुरू हुआ निर्माणभवन निर्माण विभाग के कर्मियों की माने तो स्टेडियम के सौंदर्यीकरण के लिये सरकार ने वर्ष 2003 में ही कार्य शुरू करवाया था. धीमी गति से ही सही लेकिन चार सालों तक काम चला. वर्ष 2007 में आवंटन के अभाव में संवेदक ने काम बंद कर दिया. बताया जाता है कि महंगाई ने निर्माण सामग्रियों को भी अपनी चपेट में ले लिया, लेकिन सरकार द्वारा संवेदक को पुराने रेट पर ही भुगतान किया जा रहा था. जिस कारण संवेदक ने काम बंद करवा दिया. फिर से वर्ष 2008 में कल्याण विभाग एवं खेल विभाग ने कार्य शुरू कराने का जिम्मा उठाया. इस बार मैदान को कम से कम खेलने लायक बनाने का काम शुरू करवाया गया. लेकिन कल्याण विभाग ने दो साल के बाद अपनी तरफ से काम बंद करवा दिया. विभागीय सूत्र बताते हैं कि स्टेडियम को जिस प्रकार बनना था, वैसा न होकर दूसरे ही तरीके से बनाया जाने लगा था. नतीजा जिस प्राक्कलन के अनुसार राशि का आवंटन हुआ था, वैसा काम नहीं हो पाने के कारण काम बंद कराना पड़ा.दिलचस्पी नहीं लेते हैंलोगनिर्माण प्रक्रिया को आठ साल होने को है, लेकिन पुनर्निर्माण कार्य अब तक पूरा नहीं हो पाया है. यह विचारणीय है कि स्टेडियम का पुनर्निर्माण कार्य भवन निर्माण विभाग, कल्याण विभाग या फिर खेल विभाग के किस पन्ने पर अटका पड़ा है. ज्ञात हो कि स्थानीय स्तर पर सारे सरकारी कार्यक्रम इसी अधूरे स्टेडियम में किये जाते हैं. लेकिन इसका निर्माण कार्य कराने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा. वर्षवार आवंटित की गयी राशि व खर्च वर्ष आवंटन खर्च2003-04 30 लाख 51 लाख2004-05 नगण्य 29,48,9902005-06 36 लाख 23,5642006-07 33 लाख 36,26,4122008-09 20 लाख 12,58,2472009-10 नगण्य 7,66,7752010-11 17 लाख 3,44,592 फोटो – स्टेडियम 3 व 4- अधूरा पड़ा सहरसा स्टेडियम

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