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आज होगी भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा

पूर्णिया : गुरुवार को शहर के श्रद्धालु भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करेंगे और व्रत रखेंगे. गुरुवार को अनंत चतुर्दशी है जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व माना गया है. इस पर्व को लोग अनंत चौदस भी कहते हैं. शहर में इसके पूजन की तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं. इसके लिए बाजारों […]

पूर्णिया : गुरुवार को शहर के श्रद्धालु भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करेंगे और व्रत रखेंगे. गुरुवार को अनंत चतुर्दशी है जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व माना गया है. इस पर्व को लोग अनंत चौदस भी कहते हैं. शहर में इसके पूजन की तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं.

इसके लिए बाजारों में खरीदारी भी की जा रही है. इसमें अनंत सूत्र और फल व दूध का महत्व है और इसी दृष्टि से पूजन अनुष्ठान की तैयारी की जा रही है. बुधवार को नहाय-खाय के साथ इसकी प्रक्रिया शुरू हो गयी. दरअसल, भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है.
इस दिन उपवास कर श्रद्धालु अनंत भगवान यानी विष्णु भगवान के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी हो जाती हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन जहां घरों में श्रद्धालु व्रत रखते हैं वहीं मंदिरों में विशेष पूजन का आयोजन होता है. मंदिरों में पंडित मंत्रोच्चार के साथ पंचद्रव्य के बीच अनुष्ठान करते हैं.
इसमें भगवान की पूजा के बाद हाथ पर अनंत सूत्र बांधा जाता है जिसमें 14 गांठें होती है. कहा जाता है कि ये गांठें हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों चौदह लोगों तल, अतल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव आदि की रचना की उत्पति को दर्शाती हैं. इसके पूजन अनुष्ठान के लिए बाजारों में अनंत सूत्र के साथ प्रसाद के लिए फलों की खरीदारी करते हैं.
शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर इसकी दुकानें सज गयी हैं जहां लोग खरीदारी भी कर रहे हैं. वैसे, इस पर्व को लेकर फलों के दामों में हल्का उछाल आ गया है पर श्रद्धा के आगे महंगाई फीकी पड़ रही है. अनंत चतुर्दशी को लेकर श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है. इसका बड़ा बाजार शहर का खुश्कीबाग है जहां सुबह से ही खरीदारी के लिए लोग जुट रहे हैं.
पौराणिक कथाओं में है वर्णन
अनंत चतुर्दशी को लेकर पौराणिक कथाओं के मुताबिक सुमंत नाम का एक विद्वान ब्राह्मण था. जिसकी पत्नी दीक्षा धार्मिक विचारों वाली महिला थी. उनकी एक बेटी सुशीला थी. वह जब बड़ी हुई तो मां दीक्षा का निधन हो गया. सुशीला की परवरिश हेतु सुमंत ने कर्कशा नामक एक महिला से विवाह कर लिया.
बाद में सुशीला की शादी कौणिडन्य नामक ऋषि से हुई. दोनों माता-पिता के साथ रहने लगे. लेकिन सुशीला की दूसरी मां कर्कशा का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं था. जिसके कारण इन दोनों ने घर छोड़ दिया और जंगल में भटकने लगे. उनका जीवन काफी कष्ट भरा हो गया. इसी बीच सुशीला भटकते हुए नदी के तट पर गयी जहां सजी-धजी स्त्रियां एक-दूसरे को रक्षा सूत्र बांध रही थी.
उसके बारे में जानकारी हासिल करने के बाद सुशीला ने भी व्रत रख कर अनंत सूत्र धारण किया. जिसके बाद उसका जीवन धीरे-धीरे खुशहाल हो गया. लेकिन एक दिन ऋषि कौणिडन्य की नजर सुशीला के अनंत सूत्र पर पड़ी और उसने अपने विद्वता के मद में उस सूत्र को तोड़ कर फेंक दिया. जिसके बाद दोनों की स्थिति धीरे-धीरे काफी चिंताजनक हो गयी.
काफी दिनों बाद एक ऋषि ने उन्हें ज्ञान दिया और बताया कि अनंत सूत्र तोड़ कर उन्होंने भगवान का अपमान किया. जिसका परिणाम उन्हें झेलना पड़ रहा है. दोनों की आंखें खुल गयी और उन दोनों ने फिर से व्रत रख कर 14 वर्षों तक भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना की. उसके बाद भगवान प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया. फिर उनके घर खुशियां लौट आयी.

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