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AES : क्या है चमकी बुखार?, क्या हैं संभावित कारण और लक्षण, …जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

नयी दिल्ली : बिहार के मुजफ्फरपुर क्षेत्र के बच्चों पर कहर बनकर टूट रहा चमकी बुखार (एक्यूट एनसिफेलाइटिस सिंड्रोम) तंत्रिका संबंधी गंभीर बीमारी है, जो मस्तिष्क में सूजन पैदा करती है. एईएस के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, भ्रम की स्थिति, गर्दन में अकड़न और उल्टी शामिल है. यह बीमारी ज्यादातर बच्चों और नाबालिगों को निशाना […]

नयी दिल्ली : बिहार के मुजफ्फरपुर क्षेत्र के बच्चों पर कहर बनकर टूट रहा चमकी बुखार (एक्यूट एनसिफेलाइटिस सिंड्रोम) तंत्रिका संबंधी गंभीर बीमारी है, जो मस्तिष्क में सूजन पैदा करती है. एईएस के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, भ्रम की स्थिति, गर्दन में अकड़न और उल्टी शामिल है. यह बीमारी ज्यादातर बच्चों और नाबालिगों को निशाना बनाती है और इससे मौत भी हो सकती है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) के अनुसार, एईएस बीमारी ज्यादातर विषाणुओं से होती है. लेकिन, यह जीवाणुओं, फफुंदी, रसायनों, परजीवियों, विषैले तत्वों और गैर-संक्रामक एजेंटों से भी हो सकती है. एनएचपी के अनुसार, जापानी बुखार का विषाणु भारत में एईएस का मुख्य कारण है. पोर्टल ने कहा कि भारत में एईएस के फैलने के कुछ अन्य कारण हरपीज, इंफ्लुएंजा ए, वेस्ट नील और डेंगू जैसे विषाणु हैं. हालांकि, एईएस के कई मामलों के कारणों का पता अब तक नहीं चल पाया है.

गुड़गांव के कोलंबिया एशिया अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुदीप दास ने कहा, ‘मुजफ्फरपुर में हाल में फैला चमकी बुखार वायरल जैसा मालूम पड़ता है. हालांकि, हमें अब तक यह पता नहीं चला है कि यह कौन सा विषाणु है.’ गुड़गांव के पारस अस्पताल में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉक्टर मनीष मन्नान ने कहा कि इस बीमारी को लेकर दो अलग अलग बातें सामने आ रही हैं. एक कारण लू लगना, जबकि दूसरा कारण लीची का विषैला तत्व है. मन्नान ने कहा, ‘कहा जा रहा है कि कुपोषण से ग्रस्त बच्चे जो लीची खाने के बाद भोजन किये बगैर सोने चले जाते हैं, वे सुबह चार से सात बजे तक मानसून से पहले के मौसम में बीमार पड़ जाते हैं.’

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित 2017 के अध्ययन में कहा गया कि 2008 से 2014 के बीच इस रोग के 44 हजार से अधिक मामले सामने आये और इससे करीब छह हजार मौतें हुईं. पत्रिका में कहा गया कि 2016 में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक अस्पताल में 125 से अधिक मौतें हुई थी.

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