पटना : देश की सांस्कृतिक चेतना सुप्तावस्था में है. इसे जगाना पड़ेगा और यह काम इप्टा ही कर सकती है. क्योंकि, राजनीति तो दिशाहीन है. राजनीति को भी इप्टा के माध्यम से ही दिशा मिल सकती है. जब तक सांस्कृतिक चेतना जागृत नहीं होगी, तब तक हमारा लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा. हमारा संविधान मात्र एक किताब है. यह बात प्रख्यात अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने भारतीय नृत्य कला मंदिर के दीना पाठक-रेखा जैन सभागार में बुधवार को आयोजित संगोष्ठी के दौरान रंगमंच, सिनेमा और समाज विषय पर अपने संबोधन के दौरान कही. संगोष्ठी को इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह के अंतिम दिन आयोजित किया गया था. इसे फिल्म और नाट्य निर्देशक एमएस सथ्यू ने भी अपने विचार व्यक्त किये.
हमें सिर्फ अधिकारों की ही नहीं, जिम्मेदारी की भी करनी होगी बात : अखिलेंद्र मिश्रा
अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि जब यह सांस्कृतिक चेतना जागृत होगी, तभी संविधान का महत्व सामने आयेगा. हमें केवल अधिकारों की बात ही नहीं जिम्मेदारी की बात भी करनी चाहिए. क्योंकि, जिम्मेदारी की बात भी हमारी सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा है. उन्होंने इप्टा को उसकी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए कहा कि सांस्कृतिक जागरण की जिम्मेदारी इप्टा और उसके जैसे संगठनों की है.
रंगमंच है चित्रकला का बड़ा कैनवास
शांति निकेतन के प्राध्यापक संचयन घोष ने कहा कि चित्रकला का सबसे बड़ा कैनवास रंगमंच है. रंगमंच में एस्थेटिक बहुत महत्वपूर्ण है और पेंटिंग में दखल रखने वाले रंगकर्मी नाटक की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं. वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सवी सावरकर ने रंगमंच और चित्रकला की व्याख्या की. संगोष्ठी का संचालन करते हुए डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर मेघनाथ ने कहा कि ज्यादातर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनानेवाले जीवन की सच्चाई को सामने लाते हैं.
रोज हुआ कविताओं का पाठ
आयोजन में रोज एक या दो कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया. जिनमें कवि राजेश जोशी, शायर गौहर रजा, कवि आलोक धन्वा, हरिओम राजोरिया और फरीद खां प्रमुख रूप से शामिल रहे. इसके अलावा आयोजन में इंदौर इप्टा द्वारा कविता पोस्टर की प्रदर्शनी भी लगायी गयी. समारोह के समापन सत्र में उपस्थित प्रतिनिधियों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों ने घोषणा पत्र व संकल्प को सर्वसम्मति से पारित किया.