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पढ़ें बिहार बजट 2018 पर एक्सपर्ट व्‍यू : सरकार की नीतियों का ”दिशासूचक” है बजट

रोजगार व गरीबी निवारण के लिहाज से बहुत कुछ होना चाहिए था. लेकिन यह नहीं हुआ. फसल की ऋणात्मक वृद्धि दर चिंताजनक 6.4 प्रतिशत है सार्वजनिक बजट सरकार के संसाधन जुटाने का जरिया है. इसमें सार्वजनिक व्यय का लेखा-जोखा के साथ-साथ सरकार की नीतियों की दिशा भी एकदम साफ है. हालांकि, इस बजट को केवल […]

रोजगार व गरीबी निवारण के लिहाज से बहुत कुछ होना चाहिए था. लेकिन यह नहीं हुआ.
फसल की ऋणात्मक वृद्धि दर चिंताजनक 6.4 प्रतिशत है
सार्वजनिक बजट सरकार के संसाधन जुटाने का जरिया है. इसमें सार्वजनिक व्यय का लेखा-जोखा के साथ-साथ सरकार की नीतियों की दिशा भी एकदम साफ है. हालांकि, इस बजट को केवल सरकार की आर्थिक-सामाजिक नीति का ही दिशा सूचक कहा जा सकता है. रोजगार और गरीबी निवारण के लिहाज से इसमें अभी बहुत कुछ होना चाहिए था.
बिहार सरकार के वित्तमंत्री ने 2018–19 का बजट पेश करने से पूर्व 2017–18 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की. इसमें साफ हो गया कि वर्ष 2011–12 के स्थिर मूल्य पर राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 2016–17 में 10.3 फीसदी के दर से बढ़ा है.
हालांकि 2017–18 के आकलन के विषय में यह दस्तावेज मौन है, जबकि यह समीक्षा 2017–18 की है. वर्ष 2011–12 से 2015–16 के बीच मात्र 4.9 फीसदी की दर से बढ़ा है.
इस अवधि में खेती, वानिकी एवं मत्स्यपालन की वृद्धि दर ऋणात्मक 1.7 प्रतिशत रही है. फसल की ऋणात्मक वृद्धि दर तो और भी चिंताजनक 6.4 प्रतिशत है.
इसलिए कृषि, वानिकी और मत्स्यपालन के क्षेत्र में 2016–17 में 6.9 फीसदी और फसल में 8.2 फीसदी की बढ़ोतरी ऋणात्मक आधार के कारण बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं है.
कृषि और उद्योग को नहीं दिया गया तवज्जो: बिहार ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश है, जहां लगभग 73 फीसदी श्रमशक्ति खेती पर आश्रित हैं.
दो कृषि रोडमैप बीत चुकने के बाद यह चिंताजनक स्थिति है. इस पर मात्र 2749.78 करोड़ का बजटीय प्रावधान कुल बजट का मात्र 1.55 फीसदी है.
उसमें भी 578.43 करोड़ स्थापना व्यय है. उद्योग सहित द्वितीयक क्षेत्र का विकास दर ऋणात्मक है. इसके बाद भी उद्योग विभाग का व्यय बजट मात्र 622 करोड़ ही रखा गया है. अत: कृषि और उद्योग को तो कोई खास तवज्जो बजट में नहीं दी गयी है.
स्वास्थ्य पर भी घटाया गया बजट
स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुल व्यय 7793.82 करोड़ का प्रावधान है, जो कुल व्यय का 4.4 फीसदी है. इसमें 4071.24 करोड़ स्थापना व्यय है. वर्ष 2016–17 में कुल व्यय का 5.69 प्रतिशत स्वास्थ्य मद में बजट था, जो घटकर 4.4 प्रतिशत हो गया है. जाहिर है कि सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था लचर ही रहेगी. यद्यपि ग्रामीण विकास के मद में कुल व्यय का 2017–18 के 6.07 प्रतिशत से बढ़ा कर 8.74 प्रतिशत कुछ आशा बंधाती है.
ऊर्जा के क्षेत्र में
ऊर्जा के क्षेत्र में पिछले साल 10,905 करोड़ का बजट था, जो इस साल घटकर 10,257 करोड़ कर दिया गया है और हर घर में बिजली पहुंचाने के लक्ष्य के प्रति सरकार गंभीर होने का दावा भी कर रही है.
इस प्रकार यह बजट कथनी और करनी में समरूप नहीं दिखता है. मेरी राय में यह बजट में बतायी गयी विकास दर रोजगार और गरीबी निवारण के लक्ष्य को पाने में समर्थ नहीं दिखता है.
प्रोफेसर डीएम दिवाकर
पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, पटना
Prabhat Khabar Digital Desk
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