पटना : लोकसभा चुनाव होने में अभी देर है, लेकिन सियासत अनवरत चलने वाली प्रक्रिया का नाम है. बिहार की सियासत में इन दिनों अंदर ही अंदर बवाल मचा हुआ है. केंद्र की सत्ता के साथ बिहार की सत्ता पर काबिज एनडीए इसके केंद्र में है. बिहार में एनडीए के मुख्य घटक दलों में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी हैं के साथ लोजपा के रामविलास पासवान और रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा शामिल हैं. गाहे-बगाहे अभी से इन घटक दलों के नेता कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हैं, जिससे सियासी चर्चा शुरू हो जाती है. हाल में उपेंद्र कुशवाहा की शिक्षा में सुधार को लेकर आयोजित मानव कतार में राजद नेता शामिल हुए, तो चर्चा तेज हो गयी कि उपेंद्र का एनडीए से मोह भंग हो चुका है. दूसरी ओर जीतन राम मांझी एनडीए के नेतृत्व में चल रही राज्य सरकार पर कठोर टिप्पणी कर, बीच-बीच में इस हवा को जन्म देते हैं कि वह भी नाखुश चल रहे हैं. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें, तो यह सारी चर्चाएं आगामी आम चुनाव 2019 से ठीक पहले आने वाले तूफान का संकेत है.
बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि आम चुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर सबसे ज्यादा घमसान एनडीए में देखने को मिल सकता है. बिहार की चालीस सीटों पर एनडीए का कब्जा है. अब समीकरण पहले जैसे नहीं हैं, जदयू एनडीए का हिस्सा है. जदयू के साथ आ जाने के बाद लोजपा, रालोसपा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता आपस में तालमेल बिठा पायेंगे, इसमें शक है. हालांकि, लोजपा ने कई बार यह कहा है कि कहीं कोई दिक्कत नहीं है, टिकटों का बंटवारा मिल-जुलकर कर लिया जायेगा, लेकिन प्रमोद दत्त कहते हैं ये बातें बस कहने के लिए है. जब टिकट बंटवारे का समय आयेगा, तब सच्चाई से पर्दा उठ जायेगा. टिकट बंटवारे के संकट से हर दल को गुजरना होगा. बताया जा रहा है कि लोजपा की दिक्कतें ज्यादा है. उसकी तीन सीटें फंस रही है. मुंगेर लोकसभा सीट को लेकर जंग चल रही है. क्योंकि, जदयू यहां से बिहार सरकार में वर्तमान जल संसाधन मंत्री ललन सिंह को टिकट दे सकती है. इस मामले से भाजपा किनारे कर लेगी, क्योंकि यह सीधे तौर पर नीतीश कुमार से जुड़ा हुआ है.
खगड़िया के लोजपा सांसद पूरी तरह तस्वीर से इन दिनों गायब हैं और इसे पार्टी भी पूरी तरह जानती है. उन्हें भी इस बात का आभास है, इस बार टिकट की राह आसान नहीं है. खगड़िया सीट पर भाजपा की नजर है, क्योंकि पूर्व राजद नेता सम्राट चौधरी भाजपा में इस शर्त के साथ शामिल हुए थे कि उन्हें पार्टी खगड़िया से लोकसभा चुनाव लड़वाएगी. मुंगेर की तरह खगड़िया भी लोजपा के हाथ से निकलता दिख रहा है. लोजपा की तीसरी सीट वैशाली है, जहां से मौजूदा सांसद रामा सिंह पार्टी से नाराज चल रहे हैं. भाजपा के सूत्रों की मानें, तो इस सीट से भी भाजपा वीणा शाही को उतार सकती है और कहीं अन्य लोजपा को तीन सीट देकर संतोष करने की बात कह सकती है. जहानाबाद सीट के लिए रालोसपा, हम और भाजपा के बीच घमसान होना तय है. यह सीट पिछले चुनाव में रालोसपा को मिली थी. अरुण सिंह के रालोसपा से हट जाने के बाद उपेंद्र कुशवाहा इस सीट पर अपना प्रत्याशी उतारने का दावा करेंगे.
जानकारी के मुताबिक नाखुश जीतन राम मांझी को खुश करने के लिए भाजपा उनके बेटे संतोष मांझी को गया से लोकसभा का सीट दे सकती है. जानकारों की मानें, तो एनडीए में अभी सबकुछ वैसे ठीक चल रहा है, लेकिन अंदर ही अंदर आग सुलग रही है. सीमांचल में पूर्णिया की सीट को लेकर अलग घमसान है, जदयू वहां संतोष कुशवाहा को उतारने के मूड में रहेगी, वहीं भाजपा के उदय सिंह भी अपनी दावेदारी नहीं छोड़ेंगे. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें, तो अमित शाह ने अपने रणनीतिकारों को बिहार में अभी से निर्देश जारी कर दिया है कि वह जदयू के साथ आ जाने के बाद 25 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ें. उधर, उदय सिंह का भाजपा में प्रभाव ज्यादा है और वह पूर्णिया से लड़ने का मौका छोड़ने वाले नहीं हैं. प्रमोद दत्त कहते हैं कि भाजपा के साथ जदयू के आ जाने के बाद एनडीए की ताकत बढ़ी है, भाजपा नीतीश को नाराज नहीं करेगी और ऐसे में नुकसान एनडीए के घटक दलों को उठाना पड़ेगा, जिसमें लोजपा, रोलोसपा और हम शामिल हैं.
दूसरी ओर राजद और कांग्रेस के बीच भी पेंच कम नहीं हुआ है. अररिया सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए अभी से बयानबाजी का दौर शुरू है, फिर आम चुनाव में टिकट को लेकर क्या होगा, यह आने वाला वक्त बतायेगा. वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि कांग्रेस का एक गुट चाहता है कि अररिया से उनकी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव लड़े. राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई इस सीट पर राजद का स्वाभाविक दावा भले बनता हो, लेकिन इस सीट पर राजनीति शुरू हो गयी है. दोनों पार्टियों में टिकट को लेकर बवाल जारी है. वहीं दूसरी ओर जदयू की नजर भी अररिया सीट पर है और तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम अभी जदयू से विधायक हैं. जदयू इस मंशा से भी सरफराज को वहां से लोकसभा उम्मीदवार बनाने की फिराक में है कि सहानुभूति वोट के जरिये सरफराज जीत जायेंगे और जदयू लोकसभा में सीट बढ़ाने के अपने दावे को दमदार तरीके से एनडीए के सामने रखेगी.
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