पटना : सियासत में सामूहिक भोज का अपना एक अलग महत्व है. सत्ता भोज के बहाने ही सही सामूहिकता में दिखती है. राजनीतिक गलियारों के लोग एक पांत में बैठकर भोजन का आनंद लेते हैं.वैसे तो समकालीन सियासत में सामूहिक भोज का अपना एक अलग इतिहास रहा है. मकर संक्राति के पावन अवसर पर बिहार की सियासत में भी सामूहिक भोज का एक दौर चलता है. इस दौर के प्रखर अगुवा बनते हैं समाजवादी नेता और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह. इस बार हर साल की तरह 14 जनवरी को भी चूड़ा- दही के भोज का आयोजन किया गया है. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह की ओर से दिये जाने वाला भोज पटना के 36, हार्डिंग रोड स्थित आवास में होगा. इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत पार्टी के सभी वरीय नेता, सांसद, मंत्री, विधायक, विधान पार्षद, पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल होंगे.
इस भोज में भाजपा के प्रदेश के नेताओं समेत मंत्रियों के अलावा केंद्रीय मंत्रियों को भी आमंत्रित किया जायेगा. भाजपा के नेता पांच साल बाद जदयू के दही-चूड़ा भोज में शामिल होंगे. इससे पहले एनडीए की सरकार में 2013 के भोज में सभी शामिल हुए थे. दही-चूड़ा भोज तैयारी जदयू ने शुरू कर दी है. भोज में भागलपुर का कतरनी चूड़ा, पश्चिमी चंपारण के मर्चा धान का चूड़ा समेत गया का तिलकुट परोसा जायेगा. इसके साथ-साथ भूरा-चीनी के अलावा आलू-गोभी-मटर-टमाटर की मिक्स सब्जी का भी नेता-कार्यकर्ता लुत्फ उठा पायेंगे. इसमें दियारा समेत ग्रामीण क्षेत्रों से दही आयेगी. साथ ही सुधा डेयरी से भी दही मंगाया जायेगा. मकर संक्रांति के भोज की तैयारी के लिए जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने निर्देश दे दिये हैं. उन्होंने कहा कि इस भोज में सभी लोगों को बुलाया जायेगा. इससे आपसी मिल्लत का भाव पैदा होता है. सौहार्द का माहौल में इसे त्योहार के रूप में मनाते हैं. 2017 में गंगा नदी में नाव हादसा होने की वजह से आयोजित दही-चूड़ा भोज को अंतिम समय में स्थगित कर दिया गया था.
बिहार की राजनीति के शीर्षस्थ सियासी चेहरे, पत्रकार, चिकित्सक और अधिवक्ताओं के अलावा सड़क के दिहाड़ी मजदूर भी गाढ़ी दही और चूड़ा खाकर वशिष्ठ नारायण सिंह उर्फ दादा को दुआ देते हुए निकलते हैं. दादा बताते हैं कि 1999 में दिल्ली के बीपी हाउस और नार्थ एवेन्यू से शुरूहुई सामूहिक भोज की यह परंपरा आज पाटलिपुत्र की धरती पर पहुंच कर वर्तमान पटना को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रही है. राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह इस भोज को सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदना से उपजी सामूहिक परंपरा की पवित्रता के नजरिये से देखते हैं. उन्हें इस भोज में राजनीति नहीं दिखती. उन्हें भोज में सिर्फ अपनापन और सामूहिक मिलन की वह परंपरा दिखती है जो समाज को जोड़े रखे. दादा अपनी स्मृतियों में से भोज की चंद तस्वीरें आंखों के सामने लाकर बताते हैं कि कैसी दिल्ली में हिंदी के मूर्धन्य पत्रकार स्व0 प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय के साथ उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत भी प्रेम से चूड़ा-दही का आनंद लेते थे.
वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि इतना ही नहीं भोज में सामूहिक कंट्रीब्यूसन भी इसका एक रोचक पहलू है. साथ ही इस भोज के लिए किसी को निमंत्रण नहीं दिया जाता है. इस भोज में किसी एक पार्टी, किसी एक समुदाय को नहीं बुलाया जाता है. यहां सर्वजन समभाव की भावना से चूड़ा दही परोसा जाता है. एक तरफ रिक्शा चालक भोजन करता है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भी बैठे होते हैं. वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि यह कप-प्लेट की संस्कृति से उपजा भोज नहीं है. यह भोज सियासत के साथ सामाजिक संबंधों का मिलन बिंदू है. वशिष्ठ नारायण सिंह के चाहने वाले उनके यहां सब्जियों से लेकर चूड़ा तक लेकर आते हैं. कोई पोटली में लेकर आता है तो कोई बोरी में. सियासत में सत्ता के नजदीक रहने वाले राजनेता भी इस भोज के दिन सारी कटुता भूलाकर जमी हुई दही की तरह जमकर चूड़ा-दही का आनंद उठाते हैं.
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