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बिहार : पशुपालन विभाग में सबकुछ ठीक नहीं, अंदर ही अंदर चल रहा है बड़ा खेल, जानें

पटना : बिहार सरकार के पशुपालन विभाग में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. इसका ताजा प्रमाण है चारा घोटाले की परत-दर परत का खुलासा कर उसे दुनिया के सामने लाने वाले पशुपालन विभाग के एक वरीय पदाधिकारी को उसकी सच्चाई और ईमानदारी की कठोर सजा दी जा रही है. उक्त अधिकारी ने बताया है […]

पटना : बिहार सरकार के पशुपालन विभाग में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. इसका ताजा प्रमाण है चारा घोटाले की परत-दर परत का खुलासा कर उसे दुनिया के सामने लाने वाले पशुपालन विभाग के एक वरीय पदाधिकारी को उसकी सच्चाई और ईमानदारी की कठोर सजा दी जा रही है. उक्त अधिकारी ने बताया है कि पशुपालन विभाग में विभिन्न कंपनियों से कमीशन खोरी के चक्कर में सरकार को कई करोड़ के राजस्व का चूना लगाने का काम किया जा रहा है. बिहार पशु चिकित्सा संघ के प्रधान महासचिव और विभाग में वरीय पशु चिकित्सक धमेंद्र सिंह ने विभाग पर बेवजह प्रताड़ित करने और जान बूझकर जूनियर अधिकारी के नीचे काम करने को मजबूर करने का आरोप लगाया है. धमेंद्र सिंह के मुताबिक पशुपालन विभाग में निदेशक रहते हुए वैक्ट्रीयल वैक्सीन प्रोडक्शन प्लांट की स्थापना के लिए मशीनों के खरीद का टेंडर क्रय और तकनीकी समिति के सहयोग से निकाला गया.जुलाई2014 में पशुपालनविभाग एवं संस्थान द्वारा निविदा पूर्ण होने के बाद बिना किसी निविदादाता के शिकायत के निविदा को रद्द कर दिया गया. धमेंद्र सिंह की मानें, तो जानकारी के मुताबिक जो योजना की स्वीकृति के उद्देश्य को बाधित किया गया.

वैक्ट्रीयल वैक्सीन प्रोडक्शन प्लांट की स्थापना से पूरे बिहार को फायदा होता और निजी संस्थानों द्वारा वैक्सीन की सप्लाई बंद हो जाती. वैक्सीन के प्लांट से स्वयं सरकार उच्च कोटि का वैक्सीन बनाने लगती, जिससे प्राइवेट संस्थानों से वैक्सीन की खरीद फरोख्त और सप्लाइ बंद हो जाती. अंदर के सूत्रों की मानें तो निजी सप्लायरों को लाभ पहुंचाने के लिए वैक्सीन प्रोडक्शन प्लांट की स्थापना को बाधित किया गया. धमेंद्र सिंह ने बताया कि जब निविद रद्द हो गयी और इसमें कोई वित्तीय लेने देन भी नहीं हुई, तो फिर उन्हें निलंबित क्यों किया गया. उन्होंने विभाग के वरीय अधिकारियों से सवाल पूछते हुए कहा है कि निविदा निकालने में क्रय समिति और तकनीकी समिति दोनों शामिल थे, फिर उन पर बेवजह विभागीय कार्रवाई क्यों चलायी गयी. धमेंद्र सिंह ने आरोप लगाया है कि उन्हें सेवा से विमुक्त करने की साजिश रची जा रही है. पशुपालन विभाग की गड़बड़ियों को उजागर करने की वजह से उनकी जान को कई लोगों से खतरा है.

धमेंद्र सिंह को 98 में दिये गये हाइकोर्ट के आदेशानुसार पशुपालन विभाग के निदेशक पद पर तैनात होना चाहिए था. उनकी तैनाती भी नियमानुसार हो जाती, लेकिन इस बीच पशुपालन विभाग के विकास के लिए उनके द्वारा किये जा रहे एक प्रयास पर विभागके भ्रष्ट लोगों और कमीशनखोरों की नजर पड़ गयी. उसके बाद उन्होंने धमेंद्र सिंह पर बिल्कुल उल्टे आरोप लगाकर उन्हें निलंबित करवा दिया, ताकि कमीशन खोरी का खेल जारी रह सके. उन्होंने कहा कि मेरे साथ विभाग ने बहुत अशोभनीय कृत्य, जो संविधान के मूल धारणा के विपरीत है, वही किया है और निर्दोष को बिना कारण इतने दिन तक प्रताड़ित किया जाना संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लंघन है, जिसमें निर्दोष को किसी प्रकार की सजा देने की उचित नहीं ठहरायी गयी है. इतना ही नहीं इस बीच इस तरह की दुर्भावनासेप्रेरित होकर कार्रवाई नहीं हुई होती, तो मैं पशुपालन विभाग के निदेशक के पद पर होता और राज्य को एक नयी पशुपालन विकास की रूप रेखा सौंप चुका होता.

वर्ष 1996 में जब चारा घोटाला की चर्चा हुई, उसके बाद वैक्टिरियल वैक्सिन प्लांट का मशीन का ऑटोक्लेव खराब हो गया और उसके क्रय की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और काफी जद्दोजहद के बाद 2010-11 में वैक्टरियल वैक्सिन प्लांट के क्रय के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत, योजना राशि स्वीकृत की गयी. इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य राज्य को वैक्टरियल वैक्सिन में स्वालंबी बनना एवं गुणवत्तापूर्ण टिका औषधि से यहां के पशुधन की जानलेवा बीमारियों से रक्षा करना था. इसके लिए यह यथोचित इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए तकनीकी सहायक के रूप में सहायता भी उपलब्ध थी. आज इस योजना कार्यान्वयन अगर किया गया होता, तकरीबन दस करोड़ से अधिक के राजस्व की बचत होती. वहीं दूसरी ओर इस विद्या में कुछ तकनीकी सामर्थ्य वाले पशु चिकित्सक प्रशिक्षित भी होते, जिससे इस तकनीकी का विस्तार होता. लेकिन कमिशन खोरी के चक्कर में इस पूरी व्यवस्था को मृत प्राय कर दिया गया.

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