Bihar Teacher News: बिहार में नियोजित शिक्षकों के प्रमाण–पत्रों की जांच वर्षों से चल रही है, लेकिन प्रक्रिया की धीमी गति के कारण अब तक हजारों सर्टिफिकेट लंबित पड़े हैं. कई जिलों में आज भी ऐसे शिक्षक काम कर रहे हैं, जिनकी योग्यता की पुष्टि पूरी नहीं हो सकी है. हालात यह हैं कि जिस रफ्तार से वेफिकेशन का काम चल रहा है, उसे देखते हुए अगले दस वर्षों में भी यह प्रक्रिया पूरी होना मुश्किल लगती है. तब तक कई शिक्षक नौकरी से रिटायर भी हो जाएंगे. शिक्षा विभाग ने स्वयं माना है कि अभी भी 72287 शिक्षकों के दस्तावेज बोर्ड और विश्वविद्यालयों में अटके हुए हैं.
क्यों हो रही जांच
सचिवों के पास नियुक्ति से जुड़े सभी कागजात रखे जाते हैं. कई बार सचिव समय पर दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाए, जिसे विभाग ने गंभीरता से लिया था और उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मन भी बनाया था, लेकिन यह जमीन पर लागू नहीं हो पाया. पिछले वर्ष जनवरी तक कुल 352927 शिक्षकों और लाइब्रेरियन की नियुक्ति से जुड़ी जांच बाकी थी. इससे पता चलता है कि वेरीफिकेशन का काम शुरू से ही ठीक से नहीं हो रहा है .
इसी बीच प्राथमिक शिक्षा सचिव दिनेश कुमार ने राज्य के सभी जिलों के डीपीओ को एक नया पत्र भेजकर निर्देश दिया है कि वे विभिन्न बोर्डों और विश्वविद्यालयों से लंबित सर्टिफिकेट की जांच जल्द से जल्द कराएं. सचिव ने बताया कि 2014 में हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के आधार पर 2006 से 2015 तक नियुक्त शिक्षकों के एजुकेशनल और ट्रेनिंग प्रमाण-पत्रों की जांच की जा रही है. इस दौरान यह सामने आया है कि बड़ी संख्या में दस्तावेज अलग-अलग बोर्डों में अटके हुए हैं और अभी तक उन पर कार्रवाई पूरी नहीं हुई है.
बार-बार निर्देश के बावजूद समय पर नहीं हो रहा काम
सबसे ज्यादा लंबित सर्टिफिकेट बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पास हैं, जहां 46681 प्रमाण-पत्र जांच के इंतजार में पड़े हैं. इसके अलावा संस्कृत बोर्ड, मदरसा बोर्ड, तिलका मांझी विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और अन्य कई संस्थानों में भी हजारों दस्तावेज लंबित हैं. पूरे राज्य में नियुक्त शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों की जांच अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है और विभाग बार-बार निर्देश देने के बावजूद प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं हो पा रही है.
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