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बिहार के नियोजित शिक्षकों का यह दर्द जानकर हैरान हो जायेंगे आप, पढ़ें

आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना पटना : सूबे में शारदीय नवरात्र की धूम है. चारों ओर हर्ष उल्लास और उमंग का वातावरण है. मां दुर्गा की प्रतिमा सजी हुई है, पंडाल के पट खुल गये हैं. माता रानी का दर्शन कर लोग, अपनी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद ले रहे हैं. उत्साह से लवरेज लोगों […]

आशुतोष कुमार पांडेय @ पटना

पटना : सूबे में शारदीय नवरात्र की धूम है. चारों ओर हर्ष उल्लास और उमंग का वातावरण है. मां दुर्गा की प्रतिमा सजी हुई है, पंडाल के पट खुल गये हैं. माता रानी का दर्शन कर लोग, अपनी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद ले रहे हैं. उत्साह से लवरेज लोगों का झुंड माता रानी के दर्शन को आतुर है, अपने पूरे परिवार के साथ लोग नवरात्र और विजयादशमी की खुशियां मनाने निकल पड़े हैं, लेकिन इसी भीड़ मेंशामिल बिहार के प्रारंभिक स्कूलोंके 3.23 लाख नियोजित शिक्षकों का दर्द काफी दर्दनाक है. जी हां, बिहार के शिक्षा मंत्री ने 21 सितंबर को मीडिया में बयान दिया कि दशहरा के बीच में ही नियोजित शिक्षकों का वेतन उनके खाते में चला जायेगा. मंत्री का बयान अखबारों की सुर्खियां भी बन गया. शिक्षक आशा और उम्मीद से लवरेज होकर अपने बैंक खातों को निहारते रहे, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी वेतन नहीं आया औरशिक्षकोंका दशहरा खाली हाथ बीत रहा है. सूबे के दर्जन भर स्कूलों के नियोजित शिक्षकों से प्रभात खबर डॉट कॉम ने बातचीत की. बातचीत के बाद उनके अंदर से निकली असहाय पीड़ा कोहमशब्दोंके जरिये आपके सामने रख रहे हैं.

शिक्षकों का दर्द

हम भी इंसान ही हैं साहब.बिहार के नियोजित शिक्षक हैं. हम हाड़-मांस से बनेइंसानहैं. बिल्कुल किसी लोक कल्याणकारी राज्य में रहने वाले सभ्य नागरिक की तरह, लेकिन एक बात हमें कचोटती है. खासकर,तब जब पर्व त्योहारकामौसम हो. हम अपने परिवार में,मां-बाप और बच्चों से नजर नहीं मिला पाते हैं. नजरें चुराते हैं. हम बिना नींद के भी बिस्तर की सिलवटों को मस्तिष्क की रेखा समझकर पढ़ रहे होते हैं. इस दौरान मेहमानों से भी बचते हुए नजरें चुराते हैं. खासकर शादीशुदा अपनी बहनों और बहनोई से डर लगता है.दशहरा, दीपावली और छठ से पहले अखबारों मेंहमारीमजदूरी मिलने की बात छप जाती है. बैंक अकॉउंट और एटीएम को हमलोग मंदिर में रखी भगवान की मूर्ति मानकर रोजाना चेक करते हैं, ताकि कहीं वेतन आ न गया हो. जब पर्व नजदीक आ जाता है और चारों ओर उत्साहऔर उमंग का माहौल होता है. रोशनी और चकमक लाइट हमारी आंखों में चुभनेसेलगते हैं. हम अपने बच्चों के साथ जब बाहर निकलते हैं और उन चमकती रोशनी को निहारते हैं, तो हमारे साथ खड़े बच्चे हमारी उंगली पकड़कर हमें झकझोरते हैं.वहकहनाचाहते हैं, देखिए न पापा कितनी सुंदररोशनी है. जब हम निगाहें ऊपर से नीचे कर कातर निगाहों से अपने बच्चों को देखते हैं, तो बच्चों का जवाब होता है. नहीं पापा लाइट अच्छी नहीं है, अब घर चलते हैं. सरकार, बच्चों को पता चल जाता है कि पापा का वेतन इस बार भी नहीं आया है.

हमारे दर्द को समझिए सरकार

साहब, परिवार और बच्चों का दिल टूटते देखकर अपना मन अवसाद और टीस से भर उठता है. बच्चों का चेहरा बार-बार सपने में भी आता है. शुरुआत मेंजबस्कूल में पढ़ाते वक्त कुर्सी पर बैठते थे, तो यह सोचकर खुश होते थे कि अब गांव-जवार में बाहर-भीतर निकलेंगे,तो लोग दोनों हाथ जोड़कर हमेंप्रणाम कहेंगे. अब किराने का दुकानदार भी नमस्ते नहीं करतासरकार. आशा, उम्मीद, विश्वास और लोक कल्याणकारी राज्यसे आस्थाउसवक्त टूट कर बिखरजाती है, जब संवैधानिक पद पर बैठे मंत्री जी के वायदे के बाद भी वेतननहींमिलता. सभी लोग गांव-शहर, आस-पड़ोस दूसरे विभाग में काम करने वाले लोग और उनके बच्चे नवरात्र में खुशियों से झूम रहे हैं. हम घरों में अपने परिवार के साथ उदास चेहरे लिए बैठे हुए हैं, काश हमें भी समय पर वेतन मिल गया होता. हम घर में बैठकर अपनों से आंखें चुराकर अधखुली आंखों से अपना और अपने बच्चों का सपना मरते हुए देख रहे हैं सरकार. हमारी एक ही गुजारिश है, हमें और कुछ दें या नहीं दें. कम से कम समय पर वेतन जरूर दें.

नहीं मिला दशहरा का वेतन

बिहार के प्रारंभिक स्कूलोंमें 3.23 लाख नियोजित शिक्षकहैं.सूबेमें शिक्षा की अलख जगा रहे हैं और साथ ही गाहे-बगाहे सरकार के सरोकारी अभियान मेंजरूरतपड़ने पर, जीजानसेजुट जाते हैं. नियोजित शिक्षकों ने शराबबंदी के समर्थन में विश्व की सबसे बड़ी मानव श्रृंखला बनाने में सरकार को भरपूर सहयोग दिया. गाहे-बगाहे अन्य सरकारी कार्यक्रमों में इनकी भूमिका सर्वोपरि होती है. ऐसे कार्यों के लिए इन्हें सीधे जिलामुख्यालय से आदेश स्कूलतक पहुंचता है और यह उसे ईश्वर का आदेश मानकर उसका पालन करने में जुट जाते हैं. सरकार की कोई भी कल्याणकारीयोजनाबिनानियोजित शिक्षकों की मदद के सफल नहीं होती है. वैसे तो संविधान में वर्णित लोक कल्याणकारी राज्य के नागरिक में नियोजित शिक्षक भी शामिल हैं. कहते हैं कि वेलफेयर स्टेट शासन की वह संकल्पना है, जो राज्य के नागरिकों के आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अंतर्गत वेलफेयर स्टेट लोगों को अवसर की समानता, धन-संपत्ति के समान वितरण, तथा जो लोग अच्छे जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को स्वयं जुटा पाने में असमर्थ है, उनकी सहायता करने जैसे सिद्धांतों पर आधारित है.

मंत्री ने किया था वायदा

इसी महीने की 21 तारीख कोशिक्षामंत्री कृष्णनंदनप्रसादवर्मा ने दावा किया था कि नियोजित शिक्षकों का पर्व फीका नहीं रहेगा, दशहरा से पहले उनके एकाउंट में वेतन की राशि आ जायेगी. शिक्षा मंत्री ने कहा था कि नियोजित शिक्षकों को सातवें वेतनमान का भी लाभ दिया जायेगा. इसकी शुरुआत 35 हजार माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्कूलों के नियोजित शिक्षकों से की जायेगी. विभाग दशहरा के पहले दिये जानेवाले वेतन में सातवें वेतनमान का लाभ जोड़ कर देने की तैयारी कर रहा है. प्रारंभिक स्कूलों के 3.23 लाख नियोजित शिक्षकों को दशहरा के बाद सातवें वेतनमान का लाभ दिया जायेगा. जब मंत्री जी यह बयान दे रहे थे, उस दिन तक नियोजित शिक्षकों के वेतन के लिए जिलों को राशि भी नहीं भेजी गयी थी.बक्सरजिले के डुमरांव प्रखंडके नियोजित वरिष्ठ शिक्षक संजय सिंह, पूर्णांााद पूर्णानंद मिश्रा, उपेंद्र पाठक, धीरज पांडेय और नवनीत के साथ करीब दर्जन भर शिक्षकों ने कहा कि हर बार ऐसा ही होता है, पर्व से पहले सरकार कहती है कि वेतन खाते में चला जायेगा, लेकिन वेतन नहीं आता है.

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