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मधुबनी-दरभंगा के किसान आंदोलन की लपट चंपारण पहुंची
बंगाल सरकार द्वारा 1860 में निलहों के विरुद्ध गठित आयोग ने तिरहुत के किसान की कठिनाइयों पर कोई विचार नहीं किया. लेकिन, निलहों के अवैध कारनामों की फेहरिस्त उजागर हो चुकी थी. ‘दि नदिया सेटलमेंट रिपोर्ट’ ने लिखा कि निलहों को नाजायज अबवाव दिये बिना यहां पर कोई बच्चा जन्म नहीं ले सकता, कोई अपना […]
बंगाल सरकार द्वारा 1860 में निलहों के विरुद्ध गठित आयोग ने तिरहुत के किसान की कठिनाइयों पर कोई विचार नहीं किया. लेकिन, निलहों के अवैध कारनामों की फेहरिस्त उजागर हो चुकी थी. ‘दि नदिया सेटलमेंट रिपोर्ट’ ने लिखा कि निलहों को नाजायज अबवाव दिये बिना यहां पर कोई बच्चा जन्म नहीं ले सकता, कोई अपना बाल नहीं मुंड़ा सकता, किसी की शादी नहीं हो सकती, यहां तक कि कोई चैन से मर भी नहीं सकता है. तिरहुत के किसानों की समस्या भी कमोबेश यही थी. बंगाल में फैली अशांति एवं सरकार द्वारा किये गये उपाय का कुप्रभाव सबसे अधिक पंडौल नील फैक्टरी क्षेत्र के किसानों के ऊपर पड़ा.
जनवरी, 1867 में यहां के किसानों ने नील की खेती का बहिष्कार कर दिया. मौजा एकबाड़ी, परगना भौर के रैयत की जमीन को पंडौल कोठी के मैनेजर एचएल गेल द्वारा जबरन हथिया लिया गया था. पहले यह जमीन गोविंद झा की थी. लेकिन, वह मालगुजारी देने में विफल रहे. निलहों ने ठेकेदार देवी प्रसाद के माध्यम से मालगुजारी जमा करवा दिया और उस पर नील की खेती करवाना चाह रहे थे. किसान इसे असामीवार जमीन कहते थे और फैक्टरी वाले इसे जिरात कहते थे. विवाद संघर्ष में बदल गया. तिरहुत के कमिश्नर एटी मैक्लेन के निर्देश पर मधुबनी के सहायक मजिस्ट्रेट एम बार्बर ने सीआरपीसी की धारा-62 के तहत फैक्टरी मालिक को नोटिस जारी कर दिया कि रैयत की सहमति के बिना ‘असामीवार’ जमीन पर खेती नहीं होगी. इससे किसानों में हर्ष व्याप्त हो गया और उन्हें लगा कि सरकार और कानून भी उनके पक्ष में ही है.
लोहट फैक्टरी क्षेत्र के मालिक को भी एक नोटिस जारी किया गया कि किसान की सहमति से ही वे बटलोहिया गांव में नील की खेती करवा सकते हैं, अन्यथा नहीं. स्थिति विस्फोटक होती जा रही थी. क्षेत्र में पुलिस बंदोबस्ती की गयी. निलहे गेल के विरुद्ध रैयत लक्ष्मण पासवान और माधो राउत द्वारा मुकदमा दायर कर दिया गया और सरकार से मांग की गयी कि पूरे मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन कर दिया जाये. लेकिन, दोनों किसान मुकदमा हार गये और उन्हें जेल जाना पड़ा. दरभंगा के जिला पदाधिकारी जॉन बीम्स ने सरकार को जो प्रतिवेदन भेजा, वह किसानों के हित में ही था. लेकिन, सरकार यह मानने के लिए तैयार नहीं थी कि निलहे जबरदस्ती कर रहे हैं.
1880 में दरभंगा महाराजा ने घोषणा कर दी कि उनके राज में नील की खेती नहीं होगी. पंडौल के किसान आंदोलन की लहर चंपारण भी पहुंची. 30 मार्च, 1868 को टप्पा, मधौली, नुनौर के मीर इनायत करीम, दउलीशाह कलवार, हरि राऊत कुर्मी आदि ने सरकार को निलहों के विरुद्ध आवेदन दिया. निलहे आक्रामक हो गये. लाला हरचरण पटवारी को बरखास्त कर दिया गया. किसान भी आक्रोशित हो गये. पटना के कमिश्नर के समक्ष लगभग बीस हजार किसानों ने प्रदर्शन किया. लेकिन, सरकारी अधिकारी निलहों के पक्ष में ही थे.
किसानों पर अत्याचार आरंभ हो गये. उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जाने लगा. वे गरीब तो थे ही, न्यायालय का चक्कर लगाने में तबाह होते गये. 1868 में बंगाल के गवर्नर को हरि राउत, राम सहाय महतो, शिवचरण महतो, बदूर महतो, शेख हुसैन, भोला सहाय, प्रयाग लाल आदि ने आवेदन देकर मांग रखी कि मजदूरी की दर में वृद्धि हो और बैलगाड़ी और हलवाहों की मजदूरी में भी वृद्धि हो. लेफ्टिनेंट गवर्नर ने जवाब दिया कि ये सभी मांग उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं. कई किसानों को जेलों में बंद कर दिया गया. भिखारी महतो, झोंटी साहू, खोबारी महतो एवं परमेश्वर पांडेय ने जेल से ही पुन: आवेदन भिजवाया. इनकी एक ही शिकायत थी कि निलहों ने उनकी जमीन हथिया ली है और उनसे नील की खेती जबरदस्ती करवायी जा रही है.
किसान आवेदन देते-देते थक चुके थे. चंपारण के लाल सरैया कोठी का निलहा मालिक मैक्लिऑड था, जिसे निलहे अपना राजा मानते थे. इसके अस्तबल में 120 घोड़े थे. मौजा जौकटिया में रैयतों ने नील की खेती नहीं करदूसरी फसल लगा दी. निलहों एवं रैयतों में संघर्ष आरंभ हो गया. 1867 में रैयतों ने मैक्लिऑड के बंगले में आग लगा दी. रैयतों एवं निलहों के बीच संघर्ष जारी रहा. पटना के कमिश्नर ने 1875 में प्रस्ताव दिया कि जांच के लिए कमीशन नियुक्त किया जाये, परंतु बंगाल के छोटे लाट रिचर्ड कैंबेल ने इससे इनकार कर दिया और कहा कि इससे अशांति ही बढ़ेगी. सरकार ने निलहों पर दबाव बनाना शुरू किया, तो निलहों ने 1877 में बिहार इंडिगो प्लांटर्स एसोसिएशन की स्थापना कर ली.
हाथी चले बजार कुत्ता भूंके हजार
गांव–घर में प्रचलित कहउत एक पर एक हे, जेकर प्रयोग आम बोलचाल के भाषा में पढल–लिखल के साथे अनपढवो खूब करऽ हथन. हाथी चले बजार, कुत्ता भूंके हजार कहउत आज आम लौक रहल हे. राज्य में देशी दारू बंद करे के बात चार–पांच महीना पहिलहीं से चल रहल हल आउ 01 अप्रील के लागू भी हो गेल.
बाकि 03 अप्रील के जउन होएल, ओकर कल्पना साइदे कोई करलन होएत. देशी के साथे विदेशी दारू पर भी प्रतिबंध लगा देवल गेल आउ अप्पन राज्य देश के चौथा अइसन राज्य बन गेल, जहां दारू पर एकदम से रोक हे. देशी दारू बंद होवे के सूरत में केतने विदेशी दारू दोकान खोले के जोगाड़ लगा लेलन हल, बाकि एक झटका में सब गुड़ गोबर हो गेल. विदेशी दारू के नया दोकान का खुलत, पहिले से खुलल विदेशी दारू दोकान के भी शटर डाउन हो गेल. केतने दारू माफिया के करेजा पर सांप लोट गेल.
उलोग के दिने में जइसे तरेगन लौके लगल. दारू माफिया के शह पर केतने जगह पर दारू दोकान में काम करे वालन कर्मचारी इ बात लेल धरना–प्रदर्शन कर रहलन हे कि उ बेरोजगार हो गेलन. राह चलते लोग कहऽ रहलन हे– इ निमन नऽ होएल. केतने निशेबाज सरकार गिरावे तक के बात कर रहलन हे. निमन–निमन लोग अपने में गप्पिया रहलन हे, अब इ सरकार बेसी दिन नऽ चले वाला हे. एतने नऽ साथे–साथे एहूं कह रहलन हे कि कइसहूं इ पांच बच्छर सरकार टना भी गेल तऽ अगिला बेर हारे के मुंह देखत. अब जउन कसइया के सरापला से गाय मर जाए तऽ इ तो बड़ जुलूम के बात हे.
दारू बंद होवे से केतने निशेबाज अप्पन आपा खो रहलन हे, तऽ बेसी करके झूठमूठ के उड़ामा भी उड़ावल जा रहल हे, जेकरा से बचे के जरूरत हे. जउन निशेबाज के तबियत सचो में बिगड़ रहल हे, ओकरा लेल सरकार इंतजाम करके पहिलहीं से रखले हे. देशी–विदेशी दारू के साथे ताड़ी पर भी सरकार के रूख सख्त हे. गांव–देहात में लोग बेसी करके ताड़ी पी के बरबाद हो रहलन हल. ताड़ी के नाम पर ढेरे जगह जहर परोसल जा हल. लोग सरेआम झुण्ड बनाके ताड़ी पीऽ हलन. चइत के ठीक बात बइसाख महीना आवऽ हे आउ बइसाख में भर बइसाख ताड़ी पीताहर ताड़ी के निशा में बउर रहऽ हलन. अब बड़ी हद तक लगाम लगेवाला हे. ताड़ी के ममला पर बड़े–बड़े नेताजी सवाल खाड़ करलन, काहे ला, से बात कहे के जरूरत नऽ हे. अब दारू माफिया इया पीताहर के जे मन में आवे कह लेथन, उनकर मुंह रोकल तो नऽ जा सकऽ हे, बाकि इ बात सच हे कि अप्पन राज्य बिहार लेल एगो बड़का काम होलक हे, जेकर सभे कोई तारीफ कर रहलन हे. निशा नाश के जड़ी हे. इ केतने घर–परिवार उजाड़ के रख देलक हे.
अब जउन इ पर रोक लगल हे, तऽ अभी तो कुछ लोग के तकलिफ बुझाएत, बाकि आगे पर सब ठीक हो जाएत. दारू माफिया भर दम जोड़ अजमाइस करतन, इ बात सही हे. बाकि सरकार के चाही शराबबंदी सख्ती से लागू रहे. मुट्ठी भर लोग हथ, जिनकरा सरकार के शराबबंदी निमन नऽ लग रहल हे. इ बोल–भूंक के अपने चुप हो जएतन. समाज के बड़ा वर्ग जेकरा में समूले महिला वर्ग शामिल हे–शराबबंदी के समर्थन कर रहलन हे. अब पड़ोसी राज्य के भी चाही कि उ भी अपना हिआं शराबबंदी लागू करथन. राह चलते कुत्ता के भूंकला से हाथी बजार नऽ जाए, इ भला बइसे हो सकऽ हे. आवऽ हमनी सभे मिलजुल के एकर दिल खोल के समर्थन करि जा. सरकार के साथे हमनी सभे ही, फिन डर कउन बात के. हाथी चले बजार कुत्ता भूंके हजार–कउनो नया बात थोड़े हे.
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