मधुबनी : बाढ़ में हुए तबाही का मंजर आज टूटे सड़क, गिरे हुए झोंपड़ी, कपड़े नहीं रहने के कारण फटे पुराने कपड़े पहन कर किसी तरह तन ढंकने की कोशिश करती महिलाओं की आंखों से साफ झलक रहा है. जो हाथ कभी अपने मजदूरों, गरीबों के दान के लिये उठा करते थे आज वह हाथ खुद मजदूर के बीच उनके साथ साथ राहत पाने के लिए उठ रहे हैं.
मजदूरों के बीच ये संभ्रांत लोग आज राहत पाने के लिये आपा धापी कर रहे हैं. मधेपुर के जानकीनगर की बात हो या फिर बेनीपट्टी के पाली गांव की या बिस्फी के इलाकों की. सैकड़ों की संख्या में हर दिन लोग राहत पाने की उम्मीद में रहते हैं. जिस दिन राहत आया खाना मिला नहीं तो भूखे पेट ही सो गये अगले दिन का इंतजार. हम अपने सहयोगी के साथ किसी तरह मधेपुर के जानकीनगर घाट पर पहुंचे.
यहां से हमे भूतही बलान नदी को पार करना था. हमे देखते ही एक नाव खेने वाला आया और हम उस पर चढ गये. पानी की तेज धारा को चीरता यह नाव दूसरे घाट तक हमें ले गया. नाविक इसी गांव का था. नाम शनीचद सदा. नाव खेने के दौरान ही उसने बताया कि गांव में भारी तबाही मची है. दर्जनों घरों में मोईन हो गया है. अनाज पानी कुछ नहीं बचा. अचानक पानी आने के कारण भारी तबाही हुई है. खैर अब क्या किया जा सकता था. हम लोग शनिचर के साथ ही गांव की ओर बढे.
जैसे जैसे आगे बढ़ते गये हमें शनिचर के कही बातों की हकीकत का रूप दिखने लगा था. गांव जाने का एक मात्र पीसीसी सड़क था जो अब इस कदर भी नहीं रहा कि उस पर लोग पैदल चल सकें. नदी के घाट से बस्ती के बीच में करीब छह जगह इस प्रकार टूट गया था कि लोग दिन में तो किसी तरह आ जा भी रहे थे. पर रात को तो किसी भी सूरत में चलना खतरे से खाली नहीं था. नीचे से मिट्टी ही गायब हो गयी थी. जिस कारण पूरा सड़क ही टूट गया था. खैर इस टूटे सड़क के कारण इसकी गुणवत्ता की पूरी पोल भी खुल रही थी.
मुश्किल से दो इंच भी किसी जगह पीसीसी ढलाइ किया गया हो. इसी बीच हमारे पास लक्ष्मी सदा आये. बोले ” की बोलू सरकार बलू सतासियो में एहन तबाही हमरा आउर के नै भेल रहइ. एमरी त कत्त से ने कत्त से भरभरा क पानी एलई आ सबटा भसिया क पानिये में बइह गेलै. ” गिरे घर की ओर इशारा करते हुए कहते हैं. ” देखिये रहल छियै. एमरी केहन तबाही हइ. कुछो बचल दिखाई है. उ घर जे रहई से बलू ओई खेत में भसिया क चैल गेल रहई. ओकरा बलू पईन स छाईन क लइली. इ घर आउर की आब बनतई. हम आउर कत्त स एत्ते मिट्टी अनबई. खद्दा खुइन देले हइ ” लक्ष्मी बताता है कि कैसे कैसे किसके घर में कितनी क्षति हुई और लोगों ने कैसे अपनी जिंदगी को काटा. कहता है कि ”. चार दिन त मालिक हम आउर पइने में रहिये. कत्त जइतिये. किम्हरों रहै के ठाम रहइ. इ जे खरंजा है, ओई पर त बलू डांर भइर पइन के रेत बहई. जान बचनाई कठिन रहई. कतेको लोक भसियाइ. मुदा शनीचर भैया सब के बलू दिन राइत छाइन छाइन क लबै. आब पइन कम भेल ग त कुछो दिखाइतो हइ. हमरा आउर के जाबई तक सरकार घर नै बनौतइ हमर आउर के घर थोरे ने बनतइ. ”