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गड्ढों में हिचकोले से निकल जाती है जान

गड्ढों में हिचकोले से निकल जाती है जान फोटो – मधेपुरा 01,02कैप्शन – जर्जर सड़क -उदासीनता . अनुमंडल की कई सड़कें गड्ढों में तब्दील, परिचालन हो सकता है ठप-सड़कों की स्थिति बदतर होने से लोगों को हो रही है भारी परेशानी प्रतिनिधि, उदाकिशुनगंज घटिया निर्माण कार्य, गलत मेटेंनेस नीति व समय से मरम्मत नहीं किये […]

गड्ढों में हिचकोले से निकल जाती है जान फोटो – मधेपुरा 01,02कैप्शन – जर्जर सड़क -उदासीनता . अनुमंडल की कई सड़कें गड्ढों में तब्दील, परिचालन हो सकता है ठप-सड़कों की स्थिति बदतर होने से लोगों को हो रही है भारी परेशानी प्रतिनिधि, उदाकिशुनगंज घटिया निर्माण कार्य, गलत मेटेंनेस नीति व समय से मरम्मत नहीं किये जाने के कारण अनुमंडल की कई पक्की सड़कें अपना अस्तित्व तलाश रही है. अंतर जिला को जोड़ने वाली कई सड़कें इतनी बदतर हो चुकी हैं कि वाहनों के चलने लायक नहीं रह गया है. कभी भी वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है. स्थानीय प्रखंड के लक्ष्मीपुर से भवानीपुर, मुख्यालय के कॉलेज चौक से करौती पिपरा एनएच 106 बराटेनी से गोपालपुर मंजौरा से अकबरपुर होते हुए भवानीपुर, उदाकिशुनगंज से फुलौत, उदाकिशुनगंज से विजय घाट, बाराटेनी से लश्करी, खाड़ा से ग्वालपाड़ा, मधैली चौक से विष्णपुर, पुरैनी से कड़ामा, पुरैनी से चटनमा, योगीराज से अकबरपुर, चौसा से रूपौली, फुलौत से चौसा, धनेशपुर चौक से पुरैनी, चौसा से बाबा बिशुराउत स्थान, पुरैनी से औराय, आलमनगर से रतवारा, आलमनगर जीरो माइल से कपसिया, आलमनगर से तिलकपुर, पक्की सड़कों की स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है. वाहनों का चलना खतरा से खाली नहीं है. कभी भी दुर्घटना हो सकती है. ऐसी बात नहीं की दुर्घटना नहीं होती है. रोड गडडों में तब्दील हो चुका है. यूं कहा जा सकता है रोड का अस्तित्व अब समाप्त ही होने वाला है. रोड में गड्ढे हैं या गड्ढे में रोड यह विचारनीय बात हो गयी है. गलत मेटेंनेस की नीति बना अभिशाप जब रोड का निर्माण कार्य शुरू किया जाता है, तो राज्य सरकार यह नियम बना रखी है कि निर्माण कार्य पूरा होने के बाद पांच वर्षों तक उसी संवेदक को रोड का मेटेंनेस भी करना है. इसके लिए अतिरिक्त राशि आवंटित करने का प्रावधान की गयी है. जबकि सच्चाई यही है कि संवेदक द्वारा पांच वर्ष क्या पांच दिन भी मेटेंनेस पर पांच पैसा खर्च नहीं करता है. इस मद में आवंटित राशि संवेदक का शुद्ध बचत है. ऐसी स्थिति में इस नियम बदलाव की जरूरत है. चूंकि यह नीति रोड के लिए अभिशाप बन गया है. जबकि संवेदक के लिए वरदान साबित हो चुका है. रोड टूटने के पीछे घटिया निर्माण कार्य संवेदक द्वारा रोड का निर्माण कार्य प्राक्कलन के मुताबिक नहीं किया जाता है. इसके लिए सिर्फ संवेदक ही दोशी नहीं बल्कि विभागीय अभियंता भी दोषी होते है. दोनों के सांठ गांठ से रोड का घटिया निर्माण कार्य किया जाता है. जब रोड निर्माण कार्य हो तो प्रेसर रोलर, रोड पर चलाया जाना चाहिए. जिससे की रोड की गुणवत्ता बनी रहे. लेकिन ऐसा संवेदक द्वारा नहीं किया जाता है. अगर प्रेसर रोलर रोड पर चलाया जायेगा तो निश्चित ही रोड का भार सहने की क्षमता होगा और रोड जल्दी टूटे का भी नहीं. समय से नहीं की जाती है मरम्मती जब रोड टूटने लगता है तो उसकी मरम्मती समय से नहीं हो पाता है. जिसके कारण रोड दिन प्रतिदिन अधिक दूरी तक टूटते चला जाता है और धीरे – धीरे वहीं रोड गडढों में तब्दील हो जाता है जो वाहनों के दुर्घटना का कारण बन जाता है. सबसे अधिक दुर्गती तो लक्ष्मीपुर से भवानीपुर रोड की है. जिस रोड से होकर विगत दस वर्षों से वाहनों का परिचालन ठप है. शीघ्र ही सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे पा रही है. क्षेत्रीय विधायक का भी इस ओर ध्यान नहीं है. जबकि यह रोड अंतर जिला को जोड़ती है. इस तरह अनुमंडल की अधिकांश कच्ची सड़कें वाहनों के चलने लायक नहीं रही गयी है.

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