कोढ़ा. एक समय था जब कोढ़ा प्रखंड को केलाअंचल के नाम से जाना जाता था. यहां के केले की खुशबू देश के कोने-कोने तक फैलती थी. गेड़ाबाड़ी बाजार केले की थोक मंडी के रूप में चर्चित था. यहां के केले की खेप बिहार से लेकर दिल्ली, कोलकाता, पंजाब, झारखंड और उत्तर प्रदेश तक भेजी जाती थी. किसानों की आमदनी आसमान छू रही थी. मजदूरों से लेकर बड़े कारोबारियों तक के लिए यहां भरपूर रोजगार के अवसर थे. लेकिन वक्त ने ऐसा करवट ली कि आज वही कोढ़ा प्रखंड केले की खेती से लगभग खाली हो चुका है. करीब 10 से 12 साल पहले इस क्षेत्र में पनामा विल्ट नामक फफूंदजनित रोग ने दस्तक दी. यह बीमारी केले की जड़ों पर हमला करती है. पौधे को पूरी तरह से सूखा देती है. शुरुआत में कुछ किसानों ने इसे हल्के में लिया. लेकिन धीरे-धीरे इसने पूरे इलाके को चपेट में ले लिया. लाखों की फसलें बर्बाद हो गयी और किसानों की कमर टूटने लगी. वैज्ञानिकों की टीमें सबौर, चेन्नई, यहां तक कि थाईलैंड से भी भेजी गयी. लेकिन कोई प्रभावी समाधान नहीं निकल सका.
किसानों ने सुनायी आपबीती
स्थानीय किसान हाशिम, कैलाश बिहारी, नित्यानंद मंडल, जैनुलाब्दीन, किशोर यादव जैसे कई लोगों का कहना है कि एक दशक पहले तक उनकी आर्थिक स्थिति बेहद मजबूत थी. केले की खेती से न सिर्फ वे अपनी आजीविका चला पाते थे. बल्कि बच्चों की पढ़ाई, मकान निर्माण और अन्य जरूरतें भी पूरी होती थी. आज हालत यह है कि वे मक्के और गेहूं की खेती कर रहे हैं. जिसमें मेहनत ज्यादा है और मुनाफा बेहद कम होता है.
रोजगार पर पड़ा असर
केले की खेती से जुड़े ट्रांसपोर्ट, मजदूरी, पैकिंग, बाजार और छोटे व्यापारियों तक के लिए यहां रोजगार के भरपूर अवसर थे. खेतों में काम करने वाले मजदूरों से लेकर ट्रक चालकों और आढ़तियों तक को यहां से आमदनी होती थी. अब जब केले की खेती सिमट गई है, तो सैकड़ों लोगों की आजीविका पर संकट गहराया है.
सरकारी प्रयास नाकाफी
हालांकि सरकारी स्तर पर कुछ प्रयास जरूर हुए. कृषि विभाग की ओर से कई बार प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गये. कुछ किसानों को नयी किस्में उगाने की सलाह दी गयी, लेकिन जब तक पनामा विल्ट का स्थायी समाधान नहीं मिलेगा, तब तक केले की खेती को पुनर्जीवित करना मुश्किल दिखता है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

