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मेसर्स श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स के बीजों पर लगी रोक

भभुआ : बिहार राज्य में बीजों का व्यवसाय करने वाले मेसर्स श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स द्वारा राज्य में बेचे जाने वाले बीजों के बिक्री के अधिकार पर सरकार स्तर से रोक लगा दिया गया है. बीज विक्रेता प्रतिष्ठान द्वारा गलत एवं भ्रामक ब्रीडर प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर बीज बेचने की अनुज्ञप्ति प्राप्त की गयी थी और […]

भभुआ : बिहार राज्य में बीजों का व्यवसाय करने वाले मेसर्स श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स द्वारा राज्य में बेचे जाने वाले बीजों के बिक्री के अधिकार पर सरकार स्तर से रोक लगा दिया गया है. बीज विक्रेता प्रतिष्ठान द्वारा गलत एवं भ्रामक ब्रीडर प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर बीज बेचने की अनुज्ञप्ति प्राप्त की गयी थी और उसके नवीनीकरण कराने का भी असफल प्रयास किया गया था.

कृषि निदेशक बिहार पटना द्वारा मेसर्स श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स के मामले में सुनवाई करते हुये प्रतिष्ठान के माध्यम से बेचे जाने वाले बीजों के बिक्री पर रोक लगाते हुये प्रतिष्ठान की बीज बक्री अनुज्ञप्ति को भी रद‍्द कर दिया गया है.
इस मामले में कृषि निदेशक द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि प्रतिष्ठान द्वारा डीआरआरएच 2 संकर धान प्रभेद का गलत एवं भ्रामक बीडर प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर बीज अनुज्ञप्ति प्राप्त की गयी है एवं बीज अनुज्ञप्ति नवीनीकरण कराने का असफल प्रयास किया गया है.
जिस आलोक में इनकी बीज अनुज्ञप्ति अनुज्ञप्ति संख्या 139/2012 वैधता तिथि 28.6.18 को तत्काल प्रभाव से रद्द करते हुए इनके द्वारा बिहार राज्य में बिक्री किये जा रहे सभी प्रकार के फसल प्रभेदों के बीजों की बिक्री पर रोक लगाते हुए राज्य में बिक्री हेतु उपलब्ध सभी फसल के सभी प्रभेदों के बीजों का वापस लिये जाने का आदेश दिया जाता है.
प्राप्त की गयी थी बीज अनुज्ञप्ति
जानकारी के अनुसार मेसर्स श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स को बिहार राज्य में बीज बेचने के लिये कृषि निदेशालय पटना द्वारा राज्य स्तरीय बीज अनुज्ञप्ति पूर्व में निर्गत किया गया था. जिसकी अवधि समाप्त होने के बाद प्रतिष्ठान द्वारा नवीनीकरण के लिये विभाग में आवेदन प्रस्तुत किया गया.
जिसमें प्रतिष्ठान द्वारा उपलब्ध कराये गये कागजातों की जांच की गयी तो पाया गया कि डीआरआरएच दो संकर धान प्रभेद का बीडर प्रमाण पत्र सही नहीं है. जिसके बाद कृषि निदेशक द्वारा इस पूरे मामले की सुनवाई की गयी और प्रतिष्ठान को स्पष्टीकरण जारी किया गया. प्रतिष्ठान द्वारा जवाब में 24 सितंबर 2019 को की गयी सुनवाई के दौरान इसे लिपिकीय भूल बताया गया.

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