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सामाजिक न्याय के पुरोधा थे कर्पूरी ठाकुर

दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए संघर्ष करने वाले सामाजिक नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व कर्पूरी ठाकुर को उनकी जयंती पर याद किया गया.

सोनो. दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए संघर्ष करने वाले सामाजिक नेता और पूर्व मुख्यमंत्री स्व कर्पूरी ठाकुर को उनकी जयंती पर याद किया गया. सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्ट विचार और अदम्य इच्छाशक्ति विराट व्यक्तित्व के धनी कर्पूरी ठाकुर अपनी लोकप्रियता के कारण ही जन नायक कहे जाते थे. जयंती पर सोनो निवासी इतिहासकार डॉ सुबोध कुमार गुप्ता ने उनके जीवन दर्शन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कर्पूरी ठाकुर ने बिहार और उत्तर भारत की राजनीति में ऐसी लकीर खींच दी जिसे छोटा कर पाना किसी के लिए संभव नहीं हुआ. गरीबों और वंचितों के लिए उन्होंने जो किया वह एक मिसाल है. पूरे उत्तर भारत में कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे समाजवादी नेता के रूप में याद किये जाते हैं जिनकी कथनी और करनी में फर्क नहीं रहता था. उनके विरोधी भी उनकी सादगी और ईमानदारी के कायल रहते थे. दक्षिण भारत में जो महत्व पेरियार रामसामी नायकर और अन्ना दुरै का है कुछ वैसा ही महत्व उत्तर भारत में राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर का है. जननायक कर्पूरी ठाकुर सामाजिक न्याय के पुरोधा थे. उनकी राजनीतिक यात्रा को एक ऐसे समाज के निर्माण के महान प्रयासों द्वारा चिह्नित किया गया था जहां संसाधनों को उचित रूप से वितरित किया गया था. बिहार के समस्तीपुर जिले में एक गांव है पितौंझिया जिसे अब कर्पूरी ग्राम कहा जाता है. इसी गांव के एक नाई परिवार में 24 जनवरी 1924 को कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था. उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन से जुड़ गये. 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. वे कांग्रेस की नीतियों के विरोधी थे. वे 1952 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव जीता और महज 28 वर्ष की उम्र में विधायक बने. इसके बाद जब तक जीवित रहे लोकतंत्र के किसी न किसी सदन में सदस्य के रूप में मौजूद रहे. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर पूरा किया. उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ किया था. इतने पद और सफलता के बाद भी घर, गाड़ी, जमीन कुछ भी नहीं था. राजनीति की इसी ईमानदारी ने उन्हें जननायक बना दिया. राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब उनका देहांत हुआ तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. कर्पूरी ठाकुर समाज के पिछड़ों के विकास के लिए जितने जागरूक थे राजनीति में परिवारवाद के उतने ही विरोधी भी थे. इसीलिए जब तक वह जीवित रहे उनके परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं आ पाया. 17 फरवरी 1988 को 64 वर्ष की उम्र में उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया. देश के लिए उनका योगदान आज भी हमारे देशवासियों के दिलों में बसा हुआ है. बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति के सूत्रधार माने जाने वाले व दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर का नाम मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ 2024 के लिए चुना गया. पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ा.

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Prabhat Khabar News Desk
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