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परोपकार करने वालों से बढ़कर संसार में कोई धर्मात्मा नहीं : शंकराचार्य शारदानंद सरस्वती

सिकंदरा : प्रखंड क्षेत्र के मंजोष गांव में चल रहे नौ दिवसीय श्री श्री 1008 श्री रामचरित मानस महायज्ञ के धर्ममंच से प्रवचन देते हुए कांगड़ा शक्ति पीठाधीश्वर धर्म सम्राट जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शारदानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि जीवन में सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है और अगर सत्य को अपने जीवन […]

सिकंदरा : प्रखंड क्षेत्र के मंजोष गांव में चल रहे नौ दिवसीय श्री श्री 1008 श्री रामचरित मानस महायज्ञ के धर्ममंच से प्रवचन देते हुए कांगड़ा शक्ति पीठाधीश्वर धर्म सम्राट जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शारदानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि जीवन में सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है और अगर सत्य को अपने जीवन में नहीं उतार पाओ तो परोपकार करो क्योंकि संसार में परोपकार करने वाले से बड़ा कोई धर्मात्मा नहीं हो सकता. महायज्ञ के सातवें दिन मंगलवार को भारी भीड़ उमड़ी.

इस दौरान धर्ममंच से प्रवचन करते हुए शंकराचार्य स्वामी शारदानंद सरस्वती जी ने कहा कि जो व्यक्ति परहित में जीता है उसका हर वाक्य रामायण व प्रत्येक कर्म गीता के समान है. हम लोगों को बड़े भाग्य से मनुष्य तन प्राप्त हुआ है, इसलिए मानव को सद्कर्म नि:स्वार्थ भाव से करते रहना चाहिए. परोपकार शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि संसार में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो उपार्जन करने का कार्य करता है.
जबकि संसार के अन्य प्राणी सिर्फ खाने का काम करते हैं. आप जो भी उपार्जन करते हैं उस पर संसार के सभी प्राणियों का अधिकार है. इसलिये आप संसार के सभी प्राणियों पर समान रूप से दयाभाव रखें और यथासंभव उनकी सेवा करने का प्रयास करें. उन्होंने परोपकार का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस समय भीषण गर्मी पड़ रही है. सभी पशु पक्षी प्यास से व्याकुल रहते हैं. आप अपने घर के समीप एक बर्तन में पानी रख कर वहां अन्न का कुछ दाना छीट दें. प्यास से व्याकुल चिड़ियों को दाना पानी मिल जाएगा ये भी परोपकार का एक अंग है.
इसलिये जीवन में कुछ धर्म करना चाहते हो तो परमार्थी बनो. धर्ममंच से ज्ञान को परिभाषित करते हुए जगद्गुरु शंकराचार्य शारदानंद सरस्वती जी ने कहा कि जीवन में दरिद्रता से बड़ा कोई दुख नहीं है, और जिसके जीवन में विद्या नहीं उस अज्ञानी से बढ़कर कोई दरिद्र नहीं है. इसलिये जो अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं है वो माता शत्रु और पिता बैरी के समान हैं. उन्होंने कथा में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं से मुखातिब होते हुए कहा कि संसार में आना-जाना ये जीव का बंधन है, इस बंधन को काट देना तथा ईश्वर के शरणागत हो जाना जीव का परम उद्देश्य है.
इसके पूर्व धर्ममंच पर यज्ञ समिति के सदस्यों द्वारा शंकराचार्य स्वामी शारदानंद सरस्वती का भव्य स्वागत किया गया. वहीं श्री रामचरित मानस महायज्ञ के सातवें दिन सुप्रसिद्ध कीर्तन कलाकार सुश्री नीलम भारती ने अपनी भावपूर्ण वाणी से श्री राम वन गमन प्रसंग का सजीव वर्णन कर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया. इस दौरान वृंदावन से आये रासलीला मंडली के द्वारा रुक्मिणी हरण कांड की सुंदर प्रस्तुति की गयी.

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