गोपालगंज : माह-ए-रमजान बरकत के साथ खुशियां भी लेकर आता है. गरीबों व यतीनों को खुशी में शामिल करना हर रोजेदार का फर्ज है. रोजा एक छुपी हुई इबादत है. इसीलिए अल्लाह ने इरशाद फरमाया कि रोजा मेरे लिए है और इसका बदला लूंगा. रोजा रखना इबादत है, क्योंकि इससे नेकी बढ़ती है. रमजान में अल्लाह अपने बंदों के सभी गुनाह माफ कर देता है. रोजेदारों की हर दुआ कुबूल होती है.
जामा मसजिद के इमाम शौकत फहमी का कहना है कि अल्लाह के हुक्म से हर रात एक फरिश्ता ऐलान करता है- है कोई ऐसा शख्स जो गुनाहों से बाज आकर अल्लाह की तरफ रुख करे. है कोई मजलूम मदद चाहे, उसकी मदद की जायेगी. गरीब मजदूर को मदद करने से रोजे का पूरा लाभ प्राप्त होता है. इसलिए इस रोजे में भलाई का मौका नहीं छोड़ें. हाजी नब्बन कहते हैं कि रमजान महीना इबादत का होता है.
इस माह लोग अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा धन खैरात के रूप में निर्धन वर्ग के बीच खर्च करते हैं. इस धन को देने से इस वर्ग का कल्याण हो जाता है. सामाजिक दृष्टिकोण से एक महीने से कठोर तप से समाज में तमाम बुराइयों पर नियंत्रण होता है. सूर्योदय से सूर्यास्त तक पुरुष व महिलाएं अधिक समय इबादत में ही लगाती हैं.