संस्कृत बनाती है लोक और परलोक : कुलपति भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर ही बन सकते हैं मनुष्य विजयीपुर में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू फोटो न. 21 , 23, 24 , 25संवाददाता, भोरे/विजयीपुरभारतीय संस्कृति में संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसका अध्ययन करने के बाद ही लोक या परलोक संवरता है. यह भी सच है कि सच्चे मनुष्य का निर्माण तभी हो सकता है, जब वह भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर ले. ग्रंथों में भी यह कहा गया है कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है, जो पूरे विश्व के कल्याण के लिए है. उक्त बातें कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ देव नारायण झा ने अपने संबोधन में कहीं. मौका था विजयीपुर के श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय के परिसर में यूजीसी द्वारा संपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का. उन्होंने कहा कि बाणभट्ट के समय में भी तोता-मैना संस्कृत में वेद का पाठ किया करते थे. लकड़हारा भी संस्कृत जानता था और आपस में संस्कृत भाषा में बातचीत करते थे. उन्होंने कहा कि संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जिसे पढ़ने से सब कुछ जाना जा सकता है. चरित्र निर्माण में इस भाषा का विशेष योगदान है. श्री झा ने संगोष्ठी के विषय भारतीय नारी व मानवाधिकार पर बोलते हुए कहा कि पहले स्त्रियों की लक्ष्मी के रूप में पूजा होती थी. यह कहा जाता था कि जिस घर में स्त्रियों की पूजा होती है, उस घर में देवताओं का वास होता है. हमारे ही देश में स्त्रियों को माता का दर्जा दिया गया है, लेकिन महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार ने वैदिक काल की संस्कृति को झकझोर दिया है. उन्होंने कहा कि हमने ही पूरे विश्व को वसुदेव कुटुम्बकम् का संदेश दिया. इससे पूर्व उन्होंने दीप प्रज्वलित कर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया. उसके बाद उन्होंने मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के डॉ राजेश्वर प्रसाद सिंह द्वारा रचित पुस्तक हरदेव ठाकुर का विमोचन किया. मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद प्रभात खबर मुजफ्फरपुर के संपादक शैलेंद्र कुमार ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया. संबोधित करनेवालों में समन्वयक डॉ विंध्यवासिनी पांडेय, डॉ रामेश्वर राय सहित कई विद्वानों ने संबोधित किया.
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संस्कृत बनाती है लोक और परलोक : कुलपति
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