बोधगया. बोधगया स्थित दलाईलामा तिब्बती एवं भारतीय प्राचीन विद्या केंद्र में गुरुवार को दो दिवसीय अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें प्राचीन भारतीय व तिब्बती विधा की स्थायी प्रासंगिकता के अध्ययन के लिए बौद्ध विद्वानों व चिंतकों ने अपनी बातें रखीं. इस दौरान दलाईलामा का संदेश भी सुनाया गया. अपने संदेश में दलाईलामा ने कहा कि मुझे यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि बोधगया में तिब्बती और भारत के प्राचीन ज्ञान के लिए दलाईलामा केंद्र अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है. मैं सभी प्रतिभागियों को अपनी शुभकामनाएं भेजता हूं. भारत से तिब्बत आये बौद्ध विज्ञान, दर्शन और धर्म ने लगातार पीढ़ियों से तिब्बतियों की मानसिक सोच को आकार दिया है. उनमें मन और भावनाओं के कामकाज की गहन समझ शामिल है और यह करुणा और अहिंसा के लंबे समय से चले आ रहे भारतीय सिद्धांतों पर आधारित है. मैंने पाया है कि गर्मजोशी से भरे दिल की खेती करने से मन को शांति प्राप्त करने में मदद मिली है. कुछ ऐसा जिसे मैं दूसरों के साथ साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं. तिब्बती लोग 1300 से अधिक वर्षों से इस प्राचीन भारतीय ज्ञान के संरक्षक रहे हैं. तिब्बत पर कम्युनिस्ट चीनी कब्जे के बाद हमें कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा. हालांकि, भारत में निर्वासन के दौरान हम अपने धर्म, संस्कृति और ज्ञान के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक मजबूत आधार स्थापित करने में सक्षम थे.
भारत के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा के साथ उपयोगी तरीके से जोड़ा जा सकता है
दलाईलामा ने कहा कि बचपन से ही विज्ञान के बारे में मेरी जिज्ञासा ने बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच संवादों की एक लंबी शृंखला को प्रेरित किया है जो परस्पर लाभकारी हैं. केंद्र की योजना केवल प्राचीन भारतीय ज्ञान की ओर ध्यान आकर्षित करना नहीं है, बल्कि यह देखना है कि इसे आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, जिसके माध्यम से हम एक सुरक्षित, खुशहाल और अधिक सामंजस्यपूर्ण दुनिया में योगदान करने की बहुत संभावना देखते हैं. मुझे लगता है कि भारत के प्राचीन ज्ञान को जब धर्मनिरपेक्ष, शैक्षणिक दृष्टिकोण से देखा जाता है, तो इसे आधुनिक शिक्षा के साथ एक उपयोगी तरीके से जोड़ा जा सकता है, ताकि समकालीन समाज के भीतर एक अधिक एकीकृत और नैतिक रूप से आधारित जीवन शैली को बढ़ावा दिया जा सके. सम्मेलन में स्वागत भाषण केंद्र के चीफ प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर कुंगो तेंपा शेरिंग ने दिया. की नोट संबोधन प्रो सादोंग रिनपोचे ने दिया व धन्यवाद ज्ञापन कर्मा चुंगडक ने दिया. सम्मेलन का उद्घाटन महायान बौद्ध लामाओं के सुत्रपाठ के साथ किया गया. सम्मेलन में बीटीएमसी की सचिव डॉ महाश्वेता महारथी सहित अन्य बौद्ध भिक्षु, लामा व श्रद्धालु शामिल हुए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है