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शहर में बने पुराने सार्वजनिक शौचालयों का कोई लेखा-जोखा नहीं

नगर निगम को लोगों को मूलभूत सुविधाओं में सफाई व शौचालय आदि उपलब्ध कराना है. इसके बाद भी यहां इसके प्रति उदासीनता है. शहर के सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति पर बहुत दिनों से हर बार बोर्ड की बैठक में हो-हल्ला होता रहा है. शहर में कई जगहों पर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कई शौचालयों को चलाया जा रहा है.

गया़ नगर निगम को लोगों को मूलभूत सुविधाओं में सफाई व शौचालय आदि उपलब्ध कराना है. इसके बाद भी यहां इसके प्रति उदासीनता है. शहर के सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति पर बहुत दिनों से हर बार बोर्ड की बैठक में हो-हल्ला होता रहा है. शहर में कई जगहों पर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कई शौचालयों को चलाया जा रहा है. हालांकि, कुछ जगहों पर शहर में फेब्रिकेटेड शौचालय भी बनाये गये हैं. पुराने शौचालयों की स्थिति देखी जाये, तो यहां का कोई भी कागजात नगर निगम के पास उपलब्ध नहीं है. कई दशक पहले जिस व्यक्ति को शौचालय चलाने की जिम्मेदारी दी गयी, उसका ही कब्जा अब तक शौचालय पर है. नगर निगम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि छह-सात जगहों पर शौचालय शहर में चलाये जा रहे हैं. इसमें किसी जगह के शौचालय संबंधी संचिका नगर निगम में उपलब्ध नहीं है. इतना ही नहीं कई जगहों पर शौचालय के ही अंदर लोग घर बना कर परिवार के साथ रह रहे हैं. इसके साथ ही कई जगहों पर शौचालय को किराये पर दे दिया गया है. इसका उपयोग भी वे अपना सामान रखने के लिए करते हैं. अब निगम के पास कोई कागजात ही नहीं है, तो पहले के ठेकेदार को हटाने की कार्रवाई किस सबूत के बदौलत की जाये. बाजार में देखा जाये, तो शौचालय का घोर अभाव है. इसके चलते बाजार आनेवाले पुरुष व महिलाओं दोनों को जरूरत पड़ने पर काफी फजीहत उठानी पड़ती है. नगर निगम को नहीं मिलता पैसा वार्ड नंबर 16 के पार्षद उपेंद्र कुमार ने बताया कि शौचालय को लेकर कई बार बोर्ड की बैठकों में उनकी ओर से आवाज उठायी गयी. हालात यह है कि नगर निगम की ओर से 1997-98 में शौचालय के संचालन के लिए लीज किया गया. उस वक्त बोर्ड नहीं था. बोर्ड के 2002 में आने के बाद पहले की प्रक्रिया स्वत: ही रद्द हो जानी चाहिए. उस वक्त के एग्रीमेंट में साफ लिखा गया है कि शौचालय का स्वरूप में कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन स्टेशन रोड के शौचालय को तोड़ कर स्वरूप बदल दिया गया. इसमें निगम के भी कुछ कर्मचारियों ने साथ दिया. अब वहां पर शौचालय का संचालन किया जा रहा है. लेकिन, निगम को एक भी रुपया नहीं मिलता है. गांधी मैदान शौचालय को किराया पर दे दिया गया है. वार्ड नंबर 19 के पार्षद प्रतिनिधि मनोज कुमार ने बताया कि पुरानी गोदाम के शौचालय से पहले हर माह निगम को तीन हजार रुपये जमा होते थे, अब पैसा नहीं जा रहा है. इ व बायो-टॉयलेट बिना चालू हुए हो गये खराब शहर को हाइटेक बनाने व स्वच्छ रखने के नाम पर नगर निगम से कई बार शौचालय जगह-जगह लगाये गये. पहले यहां पर कई सीट वाले स्थायी शौचालय उसके बाद बायो-टॉयलेट व इ-टॉयलेट लगाये गये. इ व बायो-टॉयलेट की हालत रखरखाव नहीं होने के कारण बिना चालू के ही खराब है. जगह-जगह से ढांचे तक गायब हो गये. कई जगहों पर फिलहाल डीलक्स शौचालय बनाये गये है, लेकिन उस जगह पर अतिक्रमण कर दुकान लगायी जाती है. पहले के शौचालयों का बंटाधार यहां से कागजात गायब रहने के बाद हो ही गयीा है. बैठक में अधिकारी ने कार्रवाई का किया था दावा निगम बोर्ड की बैठक में उपनगर आयुक्त शिवनाथ ठाकुर ने शौचालय को लेकर जवाब दिया था कि शौचालयों की जांच कर सूची तैयार कर ली गयी है. वर्तमान में शौचालय चलाने वालों को तीन नोटिस देकर खाली कराने के लिए कार्रवाई की जायेगी. लेकिन, फिलहाल इस बयान के बाद कोई कार्रवाई आगे नहीं की गयी है. क्या कहते हैं मेयर शहर में शौचालयों पर कब्जा कई वर्षों से निगम अधिकारी की अनदेखी के चलते लोगों ने कर रखा है. बोर्ड में साफ तौर पर कहा गया है कि सभी शौचालयों को कब्जा से हटाया जाये. कब्जा में रहने के चलते निगम को कोई फायदा नहीं हो रहा है. लोगों से पैसा वसूल कर संचालक खुद ही रखते हैं. शौचालय का ढांचा बदलने का कोई प्रावधान नहीं था, तो स्टेशन रोड पर किसके सह पर इस तरह का बदलाव किया गया. इसकी जांच की जायेगी. वीरेंद्र कुमार उर्फ गणेश पासवान, मेयर

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