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नगर निगम के चुनाव में अब नहीं है सादगी
गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ वयोवृद्ध साहित्यकार गया : वयोवृद्ध साहित्यकार गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ ने नगरपालिका से नगर निगम बनने के बाद स्थिति बदल जाने की शिकायत की. उन्होंने कहा कि 1983 में नगरपालिका को नगर निगम बनाने की घोषणा उस वक्त के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर प्रसाद सिंह ने गांधी मैदान में की थी. नगरपालिका से नगर निगम […]
गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ वयोवृद्ध साहित्यकार
गया : वयोवृद्ध साहित्यकार गोवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ ने नगरपालिका से नगर निगम बनने के बाद स्थिति बदल जाने की शिकायत की. उन्होंने कहा कि 1983 में नगरपालिका को नगर निगम बनाने की घोषणा उस वक्त के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर प्रसाद सिंह ने गांधी मैदान में की थी.
नगरपालिका से नगर निगम बनने के बाद सारी चीजें बदल गयी है. 1983 में नगर निगम बनने के बाद भी चुनाव कई वर्षों तक नहीं हो सका. इसके बाद नगर निगम के पास से शिक्षा, स्वास्थ्य व फूड विभाग को अलग कर दिया गया. इससे इन विभागों से मिलने वाले टैक्स भी निगम की आय से घट गयी. निगम बनने के बाद पहली बार 2002 में निकाय चुनाव हुआ था. महापौर आशा देवी व उप महापौर जितेंद्र कुमार यादव उर्फ बच्चू यादव बने. इसके बाद 2007 व 2012 में चुनाव कराया गया. अब 2017 के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है.
पहले व अब के चुनाव में साफ दिखायी पड़ता है कि आम लोगों में इसको लेकर कोई उत्साह नहीं है. पहले लोग चाहते थे कि अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व उन्हीं को सौंपे जो वार्ड को अच्छी तरह से जानते हों. पहले आम लोग भी अपने प्रतिनिधि के सेवाभाव से प्रभावित रहते थे. उन्होंने कहा कि सेवा भाव ने अब पैसा का रूप ले लिया है.
हर तरफ अर्थ की प्रधानता दिख रही है. पहले समाज के बड़े बुजुर्ग को चुनाव के दौरान तरजीह दी जाती थी. अब सारी प्रथा उलटी हो गयी है. अब प्रत्याशियों को लगता है कि उनके पास पैसा है, तो उसकी जीत पक्की होगी. पहले जैसी सेवा भावना होती, तो शहर की तसवीर कुछ अलग होती.
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