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200 में बिक रही इवीएम, 30 रुपये में हेलीकॉप्टर

शहर में चुनाव को लेकर बढ़ी चहल-पहल बाजारों में चुनाव चिह्न से अंकित झंडे की सज गयी दुकानें गांधी टोपी की भी है भरमार गया : पिछले दिनों उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न मिलने के बाद शहर में चुनावी दंगल के लिए मैदान पूरी तरह तैयार हो गया है. गली-मुहल्ले में चर्चा शुरू है. झुलसा देनेवाली […]

शहर में चुनाव को लेकर बढ़ी चहल-पहल

बाजारों में चुनाव चिह्न से अंकित झंडे की सज गयी दुकानें
गांधी टोपी की भी है भरमार
गया : पिछले दिनों उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न मिलने के बाद शहर में चुनावी दंगल के लिए मैदान पूरी तरह तैयार हो गया है. गली-मुहल्ले में चर्चा शुरू है. झुलसा देनेवाली गरमी में भी उम्मीदवार वोटरों के घर-घर जाकर वोट देने की अपील कर रहे हैं. सुबह से ही गलियों में ‘हमारा नेता कैसा हो…’, ‘जीतेगा भई जीतेगा…’ जैसे नारे सुने जा रहे हैं.
इस चुनावी दंगल का असर बाजारों में भी दिखने लगा है. इस बार हेलीकॉप्टर, चश्मा, कलम-दवात, मेज, ताला-चाबी समेत 22 चुनाव चिह्न उम्मीदवारों को वितरित किये गये हैं. कई लोग इन चुनाव चिह्नों से अंकित प्रचार सामग्री मसलन प्लास्टिक के झंडे, बैग, डम्मी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (इवीएम) बेच कर कमाई करने में लग गये हैं. समाहरणालय के निकट झंडे व डम्मी इवीएम बेज रहे ब्रजेश सिंह ने कहा कि चुनाव तक ये सामान बेचेंगे और फिर अपने पुराने काम में लग जायेंगे. ब्रजेश सिंह ने कहा कि इवीएम की कीमत 200 रुपये है. वहीं, प्लास्टिक के डंडे में लगा झंडा 30 रुपये में बिक रहा है.
पांच रुपये में गांधी टोपी : लोकपाल को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के आंदोलन से लाइमलाइट में आयी गांधी टोपी ने भी बाजार में जगह बना ली है. गांधी टोपी महज पांच रुपये में मिल रही है.
दिल्ली से आता है सामान: चुनाव चिह्न से अंकित सामान स्थानीय स्तर पर नहीं बनाया जाता है, बल्कि दिल्ली खरीद कर लाया जाता है. ब्रजेश सिंह ने कहा कि यहां कुछ भी नहीं बनता है. उन्होंने कहा, ‘हम बना-बनाया सामान खरीदते हैं। जिन दुकानदारों से सामान खरीदते हैं, उन्हें पता होता है कि यहां क्या-क्या चुनाव चिह्न दिये गये हैं, इसलिए दिक्कत नहीं होती है. अलबत्ता ट्रेनों में सामान लाते वक्त कुछ सामान टूट जाता है, तो थोड़ा-बहुत नुकसान भी झेलना पड़ता है.’
सामान बच गया, तो अगली बार आयेगा काम: सिंह ने कहा कि पिछले चुनाव में जो सामान बच गया था, उसे इस बार बेच रहे हैं. इस बार भी सामान बच गया, तो पांच साल बाद होनेवाले चुनाव में बेचेंगे. असल में हर बार के चुनाव में ये चुनाव चिह्न ही उम्मीदवारों को दिये जाते हैं, इसलिए बचे हुए सामान का इस्तेमाल दोबारा कर लिया जाता है. कई बार बोर्ड के समय से पहले भंग हो जाने की स्थिति में दोबारा चुनाव कराना पड़ता है, तो बचा सामान वहां जाकर बेच देते हैं.

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