Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी समाजशास्त्र विभाग एवं महाराज कामेश्वर सिंह मेमोरियल चेयर की ओर से सोमवार को निदेशक सह विभागाध्यक्ष प्रो. शाहिद हसन की अध्यक्षता में “भारतीय समाज में डिजिटल क्रांति का युवाओं पर प्रभाव : एक समाजशास्त्रीय अध्ययन ” विषय पर सेमिनार हुआ. प्रो. हसन ने कहा कि भारत में डिजिटल क्रांति 1980 के दशक में शुरू हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जुलाई 2015 को इसमें अप्रत्याशित विस्तार दिया. कहा कि डिजिटल क्रांति ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया है, खासकर युवाओं के जीवन पर इसका प्रभाव बहुत अधिक है. इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं. हमें डिजिटल क्रांति के लाभों का उपयोग करते हुए इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए काम करना होगा.
शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति
प्रो. हसन ने कहा कि डिजिटल क्रांति ने शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. ऑनलाइन पाठ्यक्रम, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल संसाधनों ने युवाओं के लिए शिक्षा को अधिक सुलभ और सुविधाजनक बना दिया है. रोजगार और कैरियर के अवसरों में भी बदलाव लाया है. युवा अब ऑनलाइन नौकरियों, फ्रीलांसिंग और डिजिटल उद्यमिता के माध्यम से अपने कैरियर को आगे बढ़ा सकते हैं. डिजिटल क्रांति ने संचार और सामाजिक संबंधों में भी क्रांति ला दी है. अब सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप और वीडियो कॉलिंग के माध्यम से अपने दोस्तों और परिवार के साथ हम जुड़ सकते हैं. इसने मनोरंजन और संस्कृति के क्षेत्र में भी बदलाव लाया है. युवा अब ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं, गेमिंग प्लेटफॉर्म और डिजिटल कंटेंट के माध्यम से मनोरंजन के विकल्पों को बढ़ा सकते हैं.
डिजिटल क्रांति के कारण सामाजिक अलगाव की समस्या बढ़ी
कहा कि डिजिटल क्रांति के कारण डिजिटल विभाजन की समस्या भी उत्पन्न हुई है. जिन लोगों की डिजिटल संसाधनों तक पहुंच नहीं है, वे इससे वंचित रह जाते हैं. डिजिटल क्रांति के कारण सामाजिक अलगाव की समस्या भी बढ़ी है. युवा अब अपने परिवार और दोस्तों के साथ कम समय बिताते हैं. अधिक समय ऑनलाइन रहते हैं. डिजिटल क्रांति के कारण मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है. मौके पर पीजी इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ नैयर आजम, पूर्व प्रधानाचार्य डॉ सत्यनारायण पासवान, डॉ राफिया, डॉ लक्ष्मी कुमारी, डॉ सारिका पांडेय, डॉ प्रमोद गांधी आदि मौजूद थे.
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