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उपभोक्ता फोरम के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की लगी मुहर
मरीज के शरीर के अंदर चिकित्सक ने छोड़ दिया था नट-बोल्ट बक्सर, कोर्ट : वैसे तो बक्सर के बहुत से मामले उच्च न्यायालय होते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचते रहे हैं, जिसमें दीवानी एवं फौजदारी दोनों किस्म के मामले शामिल रहे हैं, लेकिन वर्ष 2005 में बक्सर उपभोक्ता फोरम द्वारा दिये गये एक फैसले […]
मरीज के शरीर के अंदर चिकित्सक ने छोड़ दिया था नट-बोल्ट
बक्सर, कोर्ट : वैसे तो बक्सर के बहुत से मामले उच्च न्यायालय होते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचते रहे हैं, जिसमें दीवानी एवं फौजदारी दोनों किस्म के मामले शामिल रहे हैं, लेकिन वर्ष 2005 में बक्सर उपभोक्ता फोरम द्वारा दिये गये एक फैसले को न सिर्फ राज्य आयोग,
पटना और राष्ट्रीय आयोग दिल्ली में चुनौती दी गयी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के बेंच तक ले जाया गया. चिकित्सकीय सेवा में की गयी त्रुटि के इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के चर्चित न्यायमूर्ति मरकडेय काटजू ने डॉक्टरों को फटकार लगाते हुए दाखिल एसएलपी को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही माना. उक्त मामला बक्सर स्टेशन रोड निवासी पिंटू कुमार का था, जिसके पैर में हड्डी रोग विशेषज्ञ एक डॉक्टर द्वारा नट-बोल्ट छोड़ दिया गया था, जिसके चलते उक्त युवक को सालों विस्तर पर तकलीफ भरा समय बिताना पड़ा.
उक्त सेवा में त्रुटि को लेकर आवेदक ने बक्सर जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद पत्र 88/2005 दाखिल किया था, जिसकी सुनवाई फोरम के अध्यक्ष सह न्यायाधीश शिव मूरत राम द्वारा किया गया, जो समस्तीपुर अपर जिला जज के पद पर रह चुके थे तथा लगभग एक दर्जन आपराधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाने के कारण खासे चर्चा में थे.
श्री राम ने उक्त चिकित्सक की सेवा में की गयी त्रुटि के कारण परिवाद को पांच लाख रुपये बतौर हर्जाना के रूप में देने का आदेश पारित किया, जिसे अपील संख्या 247/2006 के माध्यम से राज्य उपभोक्ता आयोग में चुनौती दी गयी,
लेकिन जस्टिस पीएन यादव ने भी डॉक्टर की सेवा में त्रुटि माना अलबत्ता हर्जाने की राशि को पांच लाख से घटा कर चार लाख अवश्य कर दिया गया.
काफी सुर्खियों में रहे राज्य आयोग के फैसले को मानने की जगह डॉक्टर ने राष्ट्रीय आयोग में रिविजन संख्या 748/2009 दाखिल कर चुनौती दे डाली, लेकिन जस्टिस डीके जैन ने जिला फोरम बक्सर के आदेश को पालन करने का आदेश पारित कर दिया, जिससे असंतुष्ट आवेदक चिकित्सक ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर देश के सबसे ऊपरी अदालत में पहुंचा दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के सबसे चर्चित जस्टिस एमएस काटजू के द्वारा सुनवाई की गयी. मामले की सुनवाई में डॉक्टरों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कड़ी फटकार लगायी गयी. न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से साफ इनकार कर दिया. अंत में लंबी लड़ाई लड़ने के बाद इसी वर्ष पूर्व के आदेश को न सिर्फ पूरी तरह बहाल किया गया, बल्कि पालन भी किया गया.
क्या कहते हैं अधिवक्ता
अधिवक्ता दिग्विजय कुमार सिंह ने कहा कि यहां का व्यवहार न्यायालय सैकड़ों परिवारों के लिए जीविका का साधन है, जिसे और समृद्ध करने की जरूरत है.यहां के फैसलों का सुप्रीम कोर्ट तक बरकरार रखना एक गौरव की बात है.
अधिवक्ता साधना पांडेय कहतीं हैं कि समय के साथ-साथ बक्सर व्यवहार न्यायालय विकसित हुआ है, लेकिन महिलाओं को यहां कोई सुविधाएं नहीं मिलती, जिसे बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही महिला अधिवक्ताओं के लिए भी बैठने की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए.
अधिवक्ता अरविंद कुमार भगत-फोटो-13-ने कहा कि यहां की गौरव गाथा पुरानी है और बक्सर कोर्ट में अधिवक्ताओं को भी उसी तरह सम्मान मिलना चाहिए.
अधिवक्ता कृपाशंकर राय-फोटो-14-कहते हैं कि बक्सर कोर्ट एक बढ़िया कोर्ट है और शताब्दी वर्ष का मनाया जाना अधिवक्ताओं के साथ-साथ आमजनों के लिए हर्ष की बात है.
इंश्योरेंस कंपनी देगी एक लाख 30 हजार रुपये
बक्सर, कोर्ट. समाहरणालय के लिए टिकट लेकर पटना से बक्सर लौट रहे बस का चुरामनपुर में दिनांक 16.7.2012 को दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद बीमा की राशि नहीं चुकानेवाले विपक्षी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को एक लाख 29 हजार 268 रुपये के साथ 10 हजार क्षतिपूर्ति के रूप में देने का आदेश दिया गया. मामला बक्सर के शिव दयाल तिवारी का था, जिन्हें रोड परमिट नहीं होने के कारण बीमा कंपनी द्वारा नकार दिया गया था.
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