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बिहार शिक्षक नियुक्ति: नहीं मिले कई विषयों के गुरुजी, भाषा के शिक्षकों की फिर रहेगी कमी

जिले में दूसरे चरण की शिक्षक बहाली की प्रक्रिया चल रही है. ज्यादातर प्रखंडों एवं पंचायतों को कई विषयों के शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. शिक्षक नियोजन में भाषागत विषयों के पद खाली रह जा रहे हैं. सरकारी स्‍कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए कितनी मारामारी है, यह बताने की जरूरत नहीं है.

समस्तीपुर. जिले में दूसरे चरण की शिक्षक बहाली की प्रक्रिया चल रही है. ज्यादातर प्रखंडों एवं पंचायतों को कई विषयों के शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. शिक्षक नियोजन में भाषागत विषयों के पद खाली रह जा रहे हैं. सरकारी स्‍कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए कितनी मारामारी है, यह बताने की जरूरत नहीं है.

बड़ी संख्‍या में प्रशिक्षित शिक्षक ऐसे हैं, जिनका चयन सरकारी स्‍कूलों में नहीं हो पा रहा है. दूसरी तरफ चल रही शिक्षक नियोजन प्रक्रिया के लिए कई विषयों में शिक्षा विभाग को शिक्षक ही नहीं मिल रहे हैं.

जानकारी के अनुसार सामाजिक विज्ञान विषयों के लिए ज्यादा अभ्‍यर्थी आ रहे हैं, लेकिन हिंदी, संस्कृत और उर्दू के शिक्षक ही नहीं मिल रहे हैं. हिंदी सूबे की मुख्य भाषा है. लेकिन कई पंचायतों में हिंदी के पद खाली रह गए हैं. नौ अगस्त को हुई काउंसेलिंग के बाद वर्ग 6-8 के लिए आवंटित विभिन्न विषयों के पद रिक्त रह गये हैं.

हिंदी में 100, अंग्रेजी में 73, संस्कृत में 133, उर्दू में 45, विज्ञान व गणित में 45 पद रिक्त रह गये हैं. इसी तरह दस अगस्त को वर्ग 1-5 के लिए हुई काउंसेलिंग के बाद सामान्य शिक्षक के 682 व उर्दू के 344 पद रिक्त रह गए. शिक्षक रणजीत कुमार बताते हैं कि 12वीं के बाद लोग भाषा वाली विषयों को पढ़ने में कम रुचि दिखा रहे हैं.

वह ज्यादातर विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विषय जैसे, फिजिक्स, केमेस्ट्री बायोलॉजी, मैथमेटिक्स, इतिहास, भूगोल और राजनीति शास्त्र में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. हिंदी ऑनर्स जैसे सब्जेक्ट कोई नहीं लेना चाहता.

आंकड़े बता रहे हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाषा विषयों के शिक्षकों की कमी किस हद तक है. सबसे बुरी स्थिति उर्दू में है. एससी- एसटी वर्ग में उर्दू के शिक्षक ही कई जगह नहीं मिल रहे हैं.

यह जरूरी है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को भी आरक्षण के नियम के अनुसार जगह दी जाए. उसी अनुसार रिक्तियां भी निकाली जाती हैं. मुसलमानों में अनुसूचित जाति नहीं है. मुसलमानों में एससी भी नहीं होते हैं और हिंदू एसटी या हिंदी एससी बहुत कम हैं, जो उर्दू पढ़ते हैं.

नतीजा उर्दू में ये सीटें खाली रह जा रही हैं. ज्यादातर जगहों पर यही हुआ कि उर्दू में एससी की सीटों पर कोई आवेदन ही नहीं आए और सीटें खाली रह जा रही हैं. इसका असर उर्दू बच्चों की पढ़ाई पर पढ़ना तय है.

Posted by Ashish Jha

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