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नहीं हुए आम, लीची, केला, टमाटर व मक्के के खाद्य प्रसंस्करण, पिछड़ गया भागलपुर
भागलपुर : भागलपुर प्रक्षेत्र कृषि, बागवानी और सब्जी का बड़ा उत्पादक क्षेत्र है. आम बजट में मेगा फूड पार्क का सपना पूरा नहीं होने से यहां के व्यवसायी वर्ग व किसान निराश हैं. यहां विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न, फल और सब्जियां पैदा होती है. फल में आम, लीची और केला का इस क्षेत्र में पूरा […]
भागलपुर : भागलपुर प्रक्षेत्र कृषि, बागवानी और सब्जी का बड़ा उत्पादक क्षेत्र है. आम बजट में मेगा फूड पार्क का सपना पूरा नहीं होने से यहां के व्यवसायी वर्ग व किसान निराश हैं. यहां विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न, फल और सब्जियां पैदा होती है. फल में आम, लीची और केला का इस क्षेत्र में पूरा उपयोग नहीं होने से दूसरे प्रांतों में सप्लाइ करना पड़ता है, जिससे यहां के किसानों को उत्पादन का सही दाम नहीं मिल पाता है. एक ओर 40 फीसदी फल, सब्जी व खाद्यान्न बर्बाद हो जाते है, तो दूसरी ओर बिना प्रोसेसिंग के किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं किया जा सकता.
40 फीसदी तक बर्बाद हो रहे फल व सब्जी : प्रदेश सरकार खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना के लिए 35 प्रतिशत पूंजी अनुदान देती है. इसके बावजूद भागलपुर में ऐसे उद्योगों की स्थापना नहीं के बराबर हुई. उद्यमियों के अनुसार पूंजी व अनुदान मिलने में लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इससे उद्यमियों काे अपने स्थायी उद्यम करने की परेशानी बढ़ जाती है. रखरखाव के अभाव में 30 से 40 फीसदी फल-सब्जी समेत कृषि उत्पादन बर्बाद हो रहे हैं.
प्रसंस्करण योग्य फसल का अनुमानित उत्पादन : राज्य सरकार के कृषि और बागवानी विभागों के आंकड़े बताते हैं कि भागलपुर जिले में सालाना 75 हजार हेक्टेयर भूमि में 80320 मैट्रिक टन आम, 510 हेक्टेयर में 3615 मैट्रिक टन लीची व 1540 हेक्टेयर भूमि में 51120 मैट्रिक टन केला का उत्पादन होता है. जिले में 1 लाख 60 हजार मीट्रिक टन धान, 1 लाख 10 मीट्रिक टन मक्का, 58 हजार मीट्रिक टन गेहूं, पांच हजार मीट्रिक टन अमरूद, 1 लाख 60 हजार मीट्रिक टन आलू, 52 हजार मीट्रिक टन प्याज और 50 हजार मीट्रिक टन टमाटर की अनुमानित पैदावार होती है.
भागलपुर प्रक्षेत्र है कृषि बागवानी और सब्जी का बड़ा उत्पादक
इस्टर्न बिहार चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष शैलेंद्र सराफ ने कहा कि सरकार की उदासीनता से यहां मेगा फूड पार्क की स्थापना नहीं की जा सकी. जो भी बातें हो रही है, वह हवा-हवाई है. धरातल पर कुछ नहीं है. वर्षों से यहां के व्यवसायी वर्ग व किसान को आस है कि यहां मेगा फूड पार्क व इससे जुड़े उद्योग मिलेंगे.
चेंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष मुकुटधारी अग्रवाल ने बताया कि उत्तर भागलपुर के बिहपुर, नवगछिया, गोपालपुर में केला व लीची व सुलतानगंज, सबौर, कहलगांव, पीरपैंती, बिहपुर, नवगछिया, गोपालपुर, नाथनगर में आम का उत्पादन भारी मात्रा में होता है. यदि इसका सदुपयोग करने के लिए फूड प्रोसेसिंग कराया जाता, तो कृषि उत्पादकों को काफी लाभ मिलता, रोजगार सृजन होते और किसानों को मूल्य संवर्धन का लाभ मिलता. इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप झुनझुनवाला ने कहा कि इस्टर्न बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के संयुक्त तत्वावधान में 2012 के 27 व 28 जनवरी को खाद्य प्रसंस्करण कार्यशाला हुई थी. कार्यशाला में फूड प्रोसेसिंग उद्योग स्थापित कराने की बात कही गयी थी.
खाद्य प्रसंस्करण को लेकर खुल जाती 35 इकाई
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का उद्देश्य दक्ष आपूर्ति शृंखला से समर्थित मजबूत खाद्य प्रसंस्करण की स्थापना के लिए सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ शीत शृंखला आधारित संरचना का विकास करना था. इस मेगा फूड पार्क के जरिये 30 से 35 औद्योगिक इकाई की संभावना थी. यदि यह खुलता तो वार्षिक टर्न ओवर 450 से 500 करोड़ रुपये होता. किसानों को मूल्य संवर्धन का लाभ और बेरोजगार युवाओं व महिलाओं को रोजगार मिलता. संग्रहण केंद्र, प्राथमिक प्रसंस्करण और केले से छाल से सूत तैयार करने का प्रयोग सफल नहीं हुआ.
मई 2011 को भागलपुर में मेगा फूड पार्क लगाने की स्वीकृति केंद्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने दी थी.
बिहार में फल आधारित उद्योग की स्थापना के लिए राज्य सरकार ने नोडल एजेंसी के रूप में आइएलएनएफएस कलस्टर डेवलपमेंट क्रियेटिव लिमिटेड को नियुक्त किया.
कोलकाता के केवेंटर समूह ने मेगा फूड पार्क की स्थापना का बीड़ा उठाया था. इसमें बियानी समूह ने भी अपनी भागीदारी की बात कही थी. कहलगांव स्थित बियाडा की भूमि पर 180 करोड़ की लागत से मेगा फूड पार्क लगाया जाता.
प्रदेश सरकार उन्हें बियाडा में 80 एकड़ भूमि पर कब्जा दिलाने में विफल रही.
महत्वाकांक्षी योजना बिहार से उठ कर झारखंड चली गयी.
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