15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

बांका में नीतीश फैक्टर के आगे नहीं टिकी विपक्षी एकजुटता

विधानसभा चुनाव में इस बार नीतीश कुमार का फैक्टर कामयाब रहा. खासकर बतौर मुख्यमंत्री उनके हालिया निर्णय ने प्रत्याशियों को ऐतिहासिक जीत दिलाने में सर्वाधिक योगदान दिया.

एनडीए के कैडर वोट की एकजुटता ने सभी प्रत्याशियों की लगायी नैया पार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हालिया योजनाओं ने दिलायी करिश्माई जीत

राजद के कैडर वोटर की गोलबंदी देख एनडीए के वोटर भी हुए एकजुट

बांका. विधानसभा चुनाव में इस बार नीतीश कुमार का फैक्टर कामयाब रहा. खासकर बतौर मुख्यमंत्री उनके हालिया निर्णय ने प्रत्याशियों को ऐतिहासिक जीत दिलाने में सर्वाधिक योगदान दिया, जिसमें सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 से 1100 प्रतिमाह करना, 125 यूनिट फ्री बिजली, जीविका दीदियों व महिलाओं को स्वरोजगार के लिए 10-10 हजार की राशि सीधे बैंक खाते में भेजना सहित कई योजनाएं शामिल हैं. इन योजनाओं ने सीधे घरेलू महिलाओं को साधने के साथ एनडीए के कैडर वोट को अपने पाले में बांध कर रखा. मसलन, इन योजनाओं ने महिला मतदाताओं पर गहरा असर किया. नतीजा यह हुआ कि घरेलू महिलाओं ने घर से निकलकर एनडीए के पक्ष में जबरदस्त वोटिंग की. इसका संकेत 11 नवंबर को रिकॉर्ड तोड़ मतदान ने दे दिया था. इन सब बातों से इतर राजद की हार की वजह एमवाई समीकरण निर्भरता और दूसरी जाति के आधार पर वोट को अपने पक्ष जुटाने में असमर्थता रही. एनडीए गठबंधन यानी भाजपा व जदयू का कैडर वोटर उनके साथ एकजुटता से खड़े रहे. न केवल उन्होंने नीतीश कुमार पर अपना भरोसा कायम रखा, बल्कि एनडीए के प्रत्याशियों के पक्ष में जमकर मतदान भी किया. एनडीए के कैडर वोट की एकजुटता ने सभी प्रत्याशियों की नैया पार लगा दी. एक और बात यह भी नजर आयी कि जैसे-जैसे राजद के कोर वोटर की गोलबंदी मैदान में दिखनी शुरु हुई, वैसे ही एनडीए के कोर वोटर भी तेजी से एकजुट होने लगे. अमरपुर, धोरैया और बेलहर में प्रत्याशी का चेहरा भी महत्वपूर्ण रहा. ये वही चेहरे थे, जो हमेशा क्षेत्र में बने रहे. धोरैया के मनीष कुमार 2020 का आम चुनाव राजद के भूदेव चौधरी से हार गये थे. बावजूद वे पांचों साल क्षेत्र में बने रहे और सड़क, सिंचाई, बिजली सहित जनसुविधाओं से जुड़ी समस्याओं को लेकर मुखर रहे. जनता के बीच सुलभ रहने का उन्हें फलाफल इस चुनाव में मिल गया. यही हाल बांका के संदर्भ में भी लागू होता है. रामनारायण मंडल की उम्र पर सवाल उठाया जा रहा था. उनके पार्टी में ही टिकट के कई दावेदार खड़े हो गये थे. पार्टी को उनसे बेहतर उम्मीदवार अंतिम समय तक कोई दूसरा नहीं मिला पाया. पार्टी को उनके बारे में फीडबैक अनुकूल मिला. वह हमेशा क्षेत्र में बने रहे और कई लाभकारी योजनाओं को धरातल पर उतरवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. अलबत्ता, इस बार भी जनता ने रामनारायण मंडल के पक्ष में मतदान किया.

राजद ने बदले प्रत्याशी, पर नहीं आया काम

बांका में जदयू अमरपुर, बेलहर और धोरैया सीट पर लड़ी. पार्टी ने तीनों सीटों पर प्रत्याशी नहीं बदले. नतीजतन, तीनों ने जीत दर्ज की. इसके पीछे न केवल नीतीश-मोदी फैक्टर रहा, बल्कि प्रत्याशियों के प्रति जनता की सहानुभूति भी बनी रही. महागठबंधन से राजद यहां कटोरिया, धोरैया और बेलहर में चुनाव लड़ रहा था. कटोरिया छोड़ राजद ने बेलहर और धोरैया में अपने पुराने उम्मीदवार का टिकट काट दिया. धोरैया में पार्टी ने मौजूदा विधायक भूदेव चौधरी का टिकट काट कर पूर्व विधायक नरेश दास के पुत्र त्रिभुवन प्रसाद को उतारा. त्रिभुवन विपक्षी प्रत्याशी का प्रभाव और एनडीए के कैडर वोट के सामने टिक नहीं पाए. कटोरिया में स्वीटी सीमा हेम्ब्रम 2015 में विधायक रह चुकी हैं. भाजपा ने यहां पूरण लाल टुडू, जो नये चेहरे थे, उन्हें उतारा, जिसका लाभ पूरण को मिला. पूरण को उनकी पार्टी ने मौजूदा विधायक निक्की हेम्ब्रम का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया था. स्वीटी सीमा हेम्ब्रम के हार का कारण पूरण लाल टुडू का क्षेत्रीय होना और आदिवासियों में बेहतर पकड़ के साथ एनडीए की एकतरफा लहर बनी.

बेलहर में राजद के कैडर वोट में नहीं रही एकजुटता

बेलहर का मामला शुरुआत से ही थोड़ा पेंचिदा रहा. यहां राजद ने रामदेव यादव को टिकट न देकर चाणक्य प्रकाश रंजन को प्रत्याशी बनाया. जदयू सांसद गिरिधारी यादव का पुत्र होने की वजह से चाणक्या का पार्टी के अंदर ही विरोध शुरु हो गया. नतीजा यह हुआ कि राजद के कैडर वोट में भी एकजुटता अंत-अंत तक नहीं बनी रही. इस समाज का खास वोट मनोज यादव के साथ शिफ्ट हो गया, जिसने मनोज यादव को बड़ी बढ़त बनाने में सहयोग किया. अमरपुर में कांग्रेस से जितेंद्र सिंह प्रत्याशी बने. माना जाता है कि संगठन में खींचतान का असर इनके परिणाम पर हुआ. साथ ही नीतीश-मोदी फैक्टर ने भी इन्हें प्रभावित किया. क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इन्हें अपने समाज का अपेक्षानुरुप सहयोग नहीं प्राप्त हुआ, जो इनकी हार की मुख्य वजह बनी. बांका में महागठबंधन समर्थित संजय कुमार मैदान में थे. राजद ने इस बार मुस्लिम चेहरा पर दांव लगाना उचित नहीं समझा. यह सीट सीपीआई के हवाले कर दी. यहां भी एनडीए की लहर ने इन्हें जीत से दूर कर दिया.

रामनारायण सातवीं और मनीष चौथी बार बने विधायक

बिहार में बड़े चुनावी चेहरों में एक बांका से भाजपा प्रत्याशी रामनारायण मंडल लगातार चौथी बार अपने नाम जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की. उनकी जीत की मूल वजह एनडीए सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के साथ 70 पार के उम्र में भी क्षेत्र में सक्रिय रहना बना. 2025 के साथ श्री मंडल बांका से सर्वाधिक सातवीं बार विधायक बनने का रिकॉर्ड भी अपने नाम बना लिया है. ज्ञात हो कि पूरे बिहार में प्रमुख चेहरों पर इस बार नजर टिकी हुई थी, जिसमें बांका के रामनारायण मंडल भी एक थे. ज्ञात हो कि 2020 में चुनाव जीतने के बाद उन्होंने लगातार तीसरी बार यानी हैट्रिक भी अपने नाम किया था. यहां से कोई भी प्रत्याशी अबतक हैट्रिक नहीं बना पाया था.

ज्ञात हो कि रामनारायण मंडल भाजपा में दिग्गज नेता माने जाते हैं और एनडीए सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री का भी शपथ ले चुके हैं. उन्होंने मत्स्य एवं पशुपालन और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री का जिम्मा संभाल है. रामनारायण मंडल ने अपनी राजनीतिक शुरुआत जनसंघ से की थी. भाजपा स्थापना काल से वह पार्टी में सक्रिय बने रहे. ज्ञात कि श्री मंडल पंचायत के मुखिया भी हुआ करते थे. बाद में प्रमुख बने और 1990 में उन्हें पहली दफा विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. एक तरह से उनकी शुरुआत काफी नीचे से हुई है. उन्होंने अपनी सियासी बुद्धि और पार्टी विचारधारा के साथ विकास के आधार पर बांका में हमेशा सियासत को साधा है. इस बार लोगों में यह भ्रम था कि उनकी उम्र उन्हें असहज करेगी. साथ ही एंटी इंकम्बेंसी की बात कही जा रही थी, लेकिन इन दोनों बातों को भी उन्होंने मात दे दिया और अपनी जीत से फिर से अपनी पैठ पार्टी और जनता के बीच मजबूत कर ली. निश्चित रूप से इस जीत से उनके सियासी कद को एक नया मुकाम दिया है. रामनारायण 1990, 2000, 2005, 2014 उपचुनाव, 2015, 2020 और अब 2025 में चुनाव जीता है.

पार्टी संगठन व सरकार, दोनों में मनीष की मजबूत पकड़

नीतीश कुमार की जदयू में मनीष कुमार युवा चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं. पहली बार वह 2009 के उपचुनाव में धोरैया से विधायक निर्वाचित हुए थे. इसके बाद उन्होंने 2010 और 2015 के आम चुनाव में भी भारी मतों से जीत हासिल की थी. लेकिन, 2020 में चुनाव हार गये. इस बार 2025 में चुनाव जीत कर वह धोरैया से चौथी बार विधायक बनने में कामयाब रहे. मनीष कुमार के संदर्भ में कहा जाता है कि धोरैया से इनके विकल्प तक की बात नहीं होती है. पार्टी संगठन और सरकार दोनों में इनकी पकड़ मजबूत है. अपने कार्यकाल में कई ऐसी योजनाओं को धोरैया के क्षेत्र में लाया, जो आज भी ऐतिहासिक बतायी जाती है.

मनोज और जयंत दूसरी बार बने विधायक

बेलहर के मनोज यादव 2020 के चुनाव में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे. 2025 में वह बेलहर से दूसरी बार विधायक बने. लेकिन, मनोज यादव का सियासी सफर इससे काफी पहले शुरु हो चुका है. इससे पहले वह दो-दो बार लगातार एमएलसी का चुनाव जीत चुके हैं. यानी उनका सियासी सफर 15-20 साल पुराना है. दूसरी तरफ जयंत राज पहली बार 2020 में विधायक बने और नीतीश मंत्रिमंडल में जगह भी पक्की कर ली. 2025 में वह अमरपुर से दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुए हैं. इन्होंने अपने पिता जनार्दन मांझी की विरासत को आगे बढ़ाया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel