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Aurangabad News : सुत कटाई का प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बनेंगी गांवों की महिलाएं

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए चलायी जा रही कई तरह की योजनाएं

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कुटुंबा. आजादी के समय भारतीय खादी ने अंग्रेजी कपड़ा उद्योग को पराजित किया था. खादी सिर्फ वस्त्र नहीं बल्कि राष्ट्रियता व ओजस्विता का प्रतीक है. हमें स्वतंत्रता का याद दिलाती है. ये बातें बीडीओ मनोज कुमार ने कही. वे गुरुवार को प्रखंड क्षेत्र के सैदपुर नौघड़ा गांव में मुख्यमंत्री खादी ग्रामोद्योग योजना के तहत आयोजित सुत कटाई प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर सुत कटाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर महिलाएं स्वावलंबी बनेंगी. आम लोगों की तरक्की से राज्य और राष्ट्र समृद्ध होगा. प्रशिक्षण केंद्र का उद्घाटन बीडीओ के साथ कुटुंबा एसएचओ अक्षयवर सिंह, खादी बोर्ड के जिला पदाधिकारी रविशंकर व संस्था के सचिव शत्रुघ्न सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया. एसएचओ ने कहा कि सरकार ग्रामीण रोजगार के अवसरों और उद्यमिता के बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की योजनाएं शुरू की है. इसके लिए दिल लगन और मन इच्छा शक्ति की जरूरत है. सुत कटाई का प्रशिक्षण प्राप्त कर महिला व पुरुष घर बैठे रोजगार हासिल कर घर परिवार संवार सकते हैं.

30 दिवसीय प्रशिक्षण में शामिल होंगे 25 प्रशिक्षणार्थी

खादी बोर्ड के पदाधिकारी व सचिव ने बताया कि यह प्रशिक्षण तीन दिवसीय होगा. एक बैच में 25 प्रशिक्षणार्थी को शामिल कराया जायेगा. सुत कटाई के लिए हाजीपुर से पुनी मंगाया जा रहा है. सुत तैयार होने के बाद केंद्र परिसर में तरह-तरह के खाद्यी वस्त्र तैयार किये जायेंगे. उन्होंने बताया कि समर्पण खादी ग्रामोद्योग संस्थान औरंगाबाद के तत्वावधान में सुत कटाई ट्रेनिंग दी जा रही है. जिला का यह पहला ट्रेनिंग सेंटर है, जहां रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद प्रतिभागियों को प्रति दिन के रेसियो से 150 रुपये और प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र दिया जायेगा.

बुनकरों में उत्साह

सैदपुर नौघड़ा गांव में सुत कताई प्रशिक्षण शुरू होने से बुनकरों में खासा उत्साह है. इसके पहले बुनकर दूसरे जिले के खादी ग्रामोद्योग से वस्त्र खरीद कर बाजार में बिक्री करते थे. ऐसे में उन्हे काफी पूंजी की जरूरत पड़ती थी. महंगाई के वजह से कई बुनकर पुराने धंधा से मुंह मोड़ने लगे थे. अब प्रखंड क्षेत्र में वस्त्र बुनाई शुरू होने से बुनकर में एक फिर रोजगार की उम्मीद जगी है. इसके पहले सुही मित्रसेनपुर, उदयगंज व मनसारा आदि गांवों में खादी वस्त्र तैयार की जाती थी. वर्तमान में वस्त्र बुनाई धंधा विलुप्त के कगार पर पहुंच गया था. वर्षो बाद सुत कताई और वस्त्र बुनाई शुरू करायी गयी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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