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पूर्णिमा आज, औरंगाबाद में है पुनपुन का तीन संगम स्थल

पूर्णिमा आज, औरंगाबाद में है पुनपुन का तीन संगम स्थल कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी के संगम में स्नान करने का है विशेष महत्व औरंगाबाद (नगर)पूरे मगध क्षेत्र में पुनपुन नदी का तीन प्रमुख संगम स्थल जिला में होना औरंगाबाद के इतिहास को और अधिक गौरवशाली व समृद्ध बनाता है. जानकारों की मानें तो मगध […]

पूर्णिमा आज, औरंगाबाद में है पुनपुन का तीन संगम स्थल कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी के संगम में स्नान करने का है विशेष महत्व औरंगाबाद (नगर)पूरे मगध क्षेत्र में पुनपुन नदी का तीन प्रमुख संगम स्थल जिला में होना औरंगाबाद के इतिहास को और अधिक गौरवशाली व समृद्ध बनाता है. जानकारों की मानें तो मगध क्षेत्र में पुनपुन का तीन संगम तीर्थ स्थल है और वह भी औरंगाबाद में. जम्होर में बटाने पुनपुन का संगम, ओबरा में अदरी व पुनपुन का संगम, गोह प्रखंड के भुगुरारी में मदार व पुनपुन का संगम. कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुनपुन नदी के संगम में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर प्रत्येक वर्ष इन सभी संगम स्थलों पर स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. बुधवार को कार्तिक पूर्णिमा है और इस बार भी महिला-पुरूष श्रद्धालु इन संगमों के अलावे विभिन्न नदी-तालाबों में स्नान कर दान-पूजा आदि करेंगे. कार्तिक महीना में स्नान, दान का विशेष महत्व है. इस माह में संगम में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है. इससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. यही वजह है कि अहले सुबह से ही संगम, नदी व तालाबों पर श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंचने लगती है. पूर्णिमा के दिन भृगुरारी में प्राचीन काल से ही मेला का आयोजन होता है. यहां मदान व पुनपुन के संगम में स्नान कर मां नकटी भवानी का दर्शन किया जाता है. श्रद्धालु विशाल शिवलिंग पर संगम का जल चढ़ा कर अपने आप को धन्य मानते हैं. माना जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान राम ने की थी. पुनपुन में मिलती है मदार : मदार नदी के संबंध में पुराणों में वर्णन किया गया है कि भगवान मधुसूदन ने मदार नाम नदी को प्रकट किया. मदनपुर से होते हुए यह नदी टेकारी गांव के पास केसहर नदी से मिलती है. रफीगंज प्रखंड लट्टा गांव में धावा नदी मदार से मिलती है. इन नदियों को आत्मसात करती हुई मदार भृगुरारी में मिल कर पवित्र तीर्थ का निर्माण करती है. महर्षि भृगु की तप स्थली व अध्यापन का केंद्र इस तीर्थ को माना जाता है. कहा जाता है कि भृगु पुत्र शुक्राचार्य जी ने अपनी माता पुलोमा की अराधना मस्तक रहित धड़ की पूजा की थी. विष्णु के चक्र से काटे जाने के बाद भी मां पुलोमा अपने पति भृगु की साधना से जीवित हो गयी. इसलिए नकटी भवानी के रूप में उनकी पूजा होती आ रही है. इनकी पूजा साधना करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होता है. स्वयं भगवान श्रीराम ने आकर संगम में स्नान कर मान्डारेश महादेव लिंग की स्थापना की थी. पूर्वाभिमुख गढ़ू में है मां का मंदिर : मां का मंदिर पूर्वाभिमुख गढ़ पर स्थित है. जानकारों के अनुसार मंदिर के अंदर का प्राचीन दीवार मिट्टी का है. अनेक प्रतिमाओं के साथ काला पत्थर में मस्तक विहीन विरासन में बैठी एक फुट का मां का विग्रह है और इसके नीचे प्रतिमा के साथ गिरा हुआ मस्तक भी है. मध्य में गौरी-शंकर की सुंदर युगल प्रतिमा है. मंदिर के ईशान कोण में शिवलिंग स्थापित है. मंदिर के बाहर वायव्य कोण में भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है.

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